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लाला रामस्वरूप कैलेंडर देते हैं समय की सही गणना, जबलपुर में सालों पुराना है इनका इतिहास - लाला रामस्वरूप कैलेंडर

Jabalpur Lala Ramswaroop Calendar: अगर किसी को भी कोई तिथी, त्योहार या व्रत देखना होता है, तो वह लाला रामस्वरुप पंचाग को सबसे पहले उठाता है. यह कैलेंडर सबसे पहले जबलपुर से प्रिंट होना शुरू हुए थे. इन कैलेंडरों का इतिहास 90 साल पुराना है.

Jabalpur Lala Ramswaroop Calendar
जबलपुर में सालों पुराना कैलेंडर इतिहास
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 30, 2023, 3:30 PM IST

जबलपुर में सालों पुराना है इनका इतिहास

जबलपुर। जिले में बीते 90 सालों से पंचांग कैलेंडर निकाले जा रहे हैं. धीरे-धीरे इन कैलेंडर ने पूरे भारत में जगह बना ली है. दरअसल आज से लगभग 90 साल पहले जबलपुर के एक लालजी पंचांग देखना जानते थे, तो लोग अक्सर उनके पास अंग्रेजी तारीख के साथ हिंदी तारीख का लेखा-जोखा जानने के लिए आते थे. बस यही से लाला रामस्वरूप ने एक पंचांग निकालने की शुरुआत की. लालाजी ने मात्र 25 कैलेंडर छपवाए थे, जिन्हें अपने जानने वालों को बांट दिया था. लालाजी को बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि उनके बनाए हुए यह 25 कैलेंडर लोगों को इतने पसंद आएंगे कि दूसरे साल उनकी मांग कई गुना हो जाएगी.

इसके बाद लालजी रुके नहीं और उन्होंने कैलेंडर के मामले में और शोध करना शुरू किया. अपने साथ जबलपुर और बिहार के पंडितों से ज्योतिष की गणना के आधार पर कैलेंडर छापने की शुरुआत की.

ट्रेडमार्क का झगड़ा: लाला रामस्वरूप के नाम से बाजार में तीन किस्म के कैलेंडर आते हैं. दरअसल लाला रामस्वरूप ने शुरुआत में जो कारोबार जमाया था. उनके जाने के बाद उनके बच्चों ने इसे अलग-अलग कर लिया और जैसे-जैसे कारोबार अलग होते गए कारोबारी झगड़ा भी बढ़ने लगे. परिवार के दूसरे सदस्य भी लाला रामस्वरूप ब्रांड पर अपना स्वामित्व चाहते थे. जब यह कारोबारी झगड़ा बढ़ा तो सभी ने अपने ब्रैंड रजिस्टर करवाए, लेकिन नाम एक से रखा इसलिए रजिस्टर ने सभी को अलग-अलग ट्रेडमार्क जारी किए. आज जबलपुर में लाला रामस्वरूप के अलग-अलग ट्रेडमार्क के कई कैलेंडर बिकने आते हैं.

Jabalpur Lala Ramswaroop Calendar
लालाजी ने निकालते थे तिथी

कुछ जानकारियां पंचांगों में होती है अलग: इन्हीं में से एक सदस्य प्रहलाद अग्रवाल बताते हैं कि सभी कैलेंडर में महीना और तारीख एक सी होती है, लेकिन पंचांग से जुड़ी हुई जानकारी थोड़ी भिन्न-भिन्न होती है. सभी का यह दावा है कि उनके कैलेंडर में यह पूरी तरह सटीक होती है. प्रहलाद अग्रवाल का कहना है कि उनके कैलेंडर में समय के अलावा दूसरी इतनी अधिक जानकारियां होती हैं. जो दूसरे कैलेंडर में देखने को नहीं मिलते और उनके कैलेंडर में राष्ट्रीय त्योहार, धार्मिक त्योहार अच्छी बुरी घड़ी के बारे में सटीक जानकारी देते हैं.

Jabalpur Lala Ramswaroop Calendar
सबसे पहले जबलपुर में प्रिंट हुए कैलेंडर

कैलेंडर में बिमारियों से बचाव की भी जानकारी: इन कैलेंडर में समय के अलावा कई जानकारियां भी होती हैं. मसलन प्रहलाद अग्रवाल के कैलेंडर में डेंगू और मच्छर जनित रोगों से लड़ने और उनसे बचाव के तरीके सुझाए गए हैं. वहीं इनका कहना है कि समाज में मानसिक बीमारी का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा है. इसके सही उपाय लोगों के पास नहीं है. इसलिए वह कैलेंडर में मानसिक रोग से जुड़ी हुई बीमारियों के बारे में भी जानकारी साझा करते हैं.

यहां पढ़ें...

छिंदवाड़ा का देवगढ़ इकलौता गांव जहां आबादी से ज्यादा गोंड राजाओं की ऐतिहासिक विरासत, खोजकर्ता हैरान

हालांकि इस मामले में भी अब जबलपुर के अलावा देश के कई दूसरे शहरों में भी कैलेंडर निकाले जाने लगे हैं. वहीं सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से कैलेंडर का चलन भी कुछ काम हो रहा है. इसके अलावा लोग अपनी जरूरत के हिसाब से स्थानीय इलाकों के कैलेंडर को ज्यादा महत्व दे रहे हैं. इसलिए जबलपुर का यह कारोबार भी पहले जितना बड़ा नहीं रहा. वहीं प्रहलाद अग्रवाल बताते हैं कि बीते सालों में कोरोना वायरस की वजह से भी उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़े हैं.

जबलपुर में सालों पुराना है इनका इतिहास

जबलपुर। जिले में बीते 90 सालों से पंचांग कैलेंडर निकाले जा रहे हैं. धीरे-धीरे इन कैलेंडर ने पूरे भारत में जगह बना ली है. दरअसल आज से लगभग 90 साल पहले जबलपुर के एक लालजी पंचांग देखना जानते थे, तो लोग अक्सर उनके पास अंग्रेजी तारीख के साथ हिंदी तारीख का लेखा-जोखा जानने के लिए आते थे. बस यही से लाला रामस्वरूप ने एक पंचांग निकालने की शुरुआत की. लालाजी ने मात्र 25 कैलेंडर छपवाए थे, जिन्हें अपने जानने वालों को बांट दिया था. लालाजी को बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि उनके बनाए हुए यह 25 कैलेंडर लोगों को इतने पसंद आएंगे कि दूसरे साल उनकी मांग कई गुना हो जाएगी.

इसके बाद लालजी रुके नहीं और उन्होंने कैलेंडर के मामले में और शोध करना शुरू किया. अपने साथ जबलपुर और बिहार के पंडितों से ज्योतिष की गणना के आधार पर कैलेंडर छापने की शुरुआत की.

ट्रेडमार्क का झगड़ा: लाला रामस्वरूप के नाम से बाजार में तीन किस्म के कैलेंडर आते हैं. दरअसल लाला रामस्वरूप ने शुरुआत में जो कारोबार जमाया था. उनके जाने के बाद उनके बच्चों ने इसे अलग-अलग कर लिया और जैसे-जैसे कारोबार अलग होते गए कारोबारी झगड़ा भी बढ़ने लगे. परिवार के दूसरे सदस्य भी लाला रामस्वरूप ब्रांड पर अपना स्वामित्व चाहते थे. जब यह कारोबारी झगड़ा बढ़ा तो सभी ने अपने ब्रैंड रजिस्टर करवाए, लेकिन नाम एक से रखा इसलिए रजिस्टर ने सभी को अलग-अलग ट्रेडमार्क जारी किए. आज जबलपुर में लाला रामस्वरूप के अलग-अलग ट्रेडमार्क के कई कैलेंडर बिकने आते हैं.

Jabalpur Lala Ramswaroop Calendar
लालाजी ने निकालते थे तिथी

कुछ जानकारियां पंचांगों में होती है अलग: इन्हीं में से एक सदस्य प्रहलाद अग्रवाल बताते हैं कि सभी कैलेंडर में महीना और तारीख एक सी होती है, लेकिन पंचांग से जुड़ी हुई जानकारी थोड़ी भिन्न-भिन्न होती है. सभी का यह दावा है कि उनके कैलेंडर में यह पूरी तरह सटीक होती है. प्रहलाद अग्रवाल का कहना है कि उनके कैलेंडर में समय के अलावा दूसरी इतनी अधिक जानकारियां होती हैं. जो दूसरे कैलेंडर में देखने को नहीं मिलते और उनके कैलेंडर में राष्ट्रीय त्योहार, धार्मिक त्योहार अच्छी बुरी घड़ी के बारे में सटीक जानकारी देते हैं.

Jabalpur Lala Ramswaroop Calendar
सबसे पहले जबलपुर में प्रिंट हुए कैलेंडर

कैलेंडर में बिमारियों से बचाव की भी जानकारी: इन कैलेंडर में समय के अलावा कई जानकारियां भी होती हैं. मसलन प्रहलाद अग्रवाल के कैलेंडर में डेंगू और मच्छर जनित रोगों से लड़ने और उनसे बचाव के तरीके सुझाए गए हैं. वहीं इनका कहना है कि समाज में मानसिक बीमारी का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा है. इसके सही उपाय लोगों के पास नहीं है. इसलिए वह कैलेंडर में मानसिक रोग से जुड़ी हुई बीमारियों के बारे में भी जानकारी साझा करते हैं.

यहां पढ़ें...

छिंदवाड़ा का देवगढ़ इकलौता गांव जहां आबादी से ज्यादा गोंड राजाओं की ऐतिहासिक विरासत, खोजकर्ता हैरान

हालांकि इस मामले में भी अब जबलपुर के अलावा देश के कई दूसरे शहरों में भी कैलेंडर निकाले जाने लगे हैं. वहीं सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से कैलेंडर का चलन भी कुछ काम हो रहा है. इसके अलावा लोग अपनी जरूरत के हिसाब से स्थानीय इलाकों के कैलेंडर को ज्यादा महत्व दे रहे हैं. इसलिए जबलपुर का यह कारोबार भी पहले जितना बड़ा नहीं रहा. वहीं प्रहलाद अग्रवाल बताते हैं कि बीते सालों में कोरोना वायरस की वजह से भी उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़े हैं.

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