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स्मैक तस्कर को हाईकोर्ट से झटका, निचली अदालत की सजा को रखा बरकारा, खारिज की याचिका - हाईकोर्ट याचिका खारिज

जबलपुर हाईकोर्ट ने स्मैक तस्कर द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा है.

Jabalpur High Court
हाईकोर्ट
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Published : Dec 25, 2020, 7:19 AM IST

जबलपुर। स्मैक के अवैध कारोबार में सजा से दण्डित युवक को हाईकोर्ट से झटका लगा है. हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल की एकलपीठ ने निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया है.

याचिकाकर्ता राजू उर्फ सुरेन्द्र नाथ सोनकर की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि निचली अदालत ने 51 ग्राम स्मैक रखने के आरोप में उसे तीन साल के कारावास और 25 हजार रूपये के अर्थदण्ड की सजा से दण्डित किया था. याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया था कि पुलिस द्वारा कार्रवाई में एनडीपीसी एक्ट की धारा 50 के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है. तलाशी के दौरान जिन्हें गवाह बनाया गया था, वह कोर्ट में अपने बयान से पलट गये थे.

एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आरोपी को पंचनामा में लिखित सहमति प्रदान की है कि वह पुलिसकर्मी को तलाशी देने तैयार है. पुलिस द्वारा उसे बताया गया था कि कानूनी संवैधानिक अधिकार है कि वह अपनी तलाशी राजपत्रित अधिकारी या मजिस्टेट के सामने दे सकता है. पुलिस ने कार्रवाई में किसी कानूनी संवैधानिक अधिकारों का उल्लंधन नहीं किया है. नीचली अदालत ने प्रस्तुत अन्य साक्ष्यों के आधार पर याचिकाकर्ता को सजा से दण्डित किया है. एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ याचिका को खारिज कर दिया है.

जबलपुर। स्मैक के अवैध कारोबार में सजा से दण्डित युवक को हाईकोर्ट से झटका लगा है. हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल की एकलपीठ ने निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया है.

याचिकाकर्ता राजू उर्फ सुरेन्द्र नाथ सोनकर की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि निचली अदालत ने 51 ग्राम स्मैक रखने के आरोप में उसे तीन साल के कारावास और 25 हजार रूपये के अर्थदण्ड की सजा से दण्डित किया था. याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया था कि पुलिस द्वारा कार्रवाई में एनडीपीसी एक्ट की धारा 50 के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है. तलाशी के दौरान जिन्हें गवाह बनाया गया था, वह कोर्ट में अपने बयान से पलट गये थे.

एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आरोपी को पंचनामा में लिखित सहमति प्रदान की है कि वह पुलिसकर्मी को तलाशी देने तैयार है. पुलिस द्वारा उसे बताया गया था कि कानूनी संवैधानिक अधिकार है कि वह अपनी तलाशी राजपत्रित अधिकारी या मजिस्टेट के सामने दे सकता है. पुलिस ने कार्रवाई में किसी कानूनी संवैधानिक अधिकारों का उल्लंधन नहीं किया है. नीचली अदालत ने प्रस्तुत अन्य साक्ष्यों के आधार पर याचिकाकर्ता को सजा से दण्डित किया है. एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ याचिका को खारिज कर दिया है.

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