जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने अपने भाई की शादी एक युवती से कराने से मना करने पर दर्ज आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रकरण को निरस्त कर दिया है, जस्टिस अंजली पॉलो की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि युवती के पास अन्य कानूनी विकल्प भी मौजूद थे, लेकिन वह आत्महत्या का रास्ता चुनी, इसलिए आरोपी पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला बनाने का कोई औचित्य नहीं है.
MP हाईकोर्ट में 27% OBC आरक्षण पर आज अंतिम सुनवाई
जबलपुर निवासी गोविंद चढ़ार की ओर से याचिका दायर किया गया था, जिसमें माढ़ोताल थाने में दर्ज आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को चुनौती दी गई थी, आवेदक का कहना था कि उसके खिलाफ उक्त प्रकरण इसलिये दर्ज किया गया क्योंकि एक युवती ने खुदकुशी कर ली थी, आत्महत्या के पूर्व एक कथित सुसाइड नोट मृतका ने छोड़ा था, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता के भाई ने उसका दो साल तक शादी का झांसा देकर शारीरिक शोषण किया था और जब वह शादी करने का दबाब देती तो याचिकाकर्ता तथा याचिकाकर्ता का भाई उसके साथ अभद्र व्यवहार करते और शादी करने से मना कर देते थे. इस प्रकार आरोपियों ने उसके मान-सम्मान को ठेस पहुंचाया है, इसलिए वह आत्महत्या कर रही है.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता असीम त्रिवेदी ने पैरवी करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध महज इस आरोप से आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं बनता है क्योंकि याचिकाकर्ता के भाई ने मृतका से यह कहा कि उसका भाई उससे विवाह नहीं करेगा और वह उसे भूल जाए, यदि मृतका को याचिकाकर्ता से कोई शिकायत थी भी तो उसे याचिकाकर्ता के विरुद्ध विधिक उपचार अपनाना चाहिए था. मामले की सुनवाई पश्चात न्यायालय ने अपने निर्णय में अवधारित किया कि आत्महत्या के लिए उकसाने हेतु यह सिद्ध करना आवश्यक है कि अभियुक्त की यह मंशा थी कि वह आत्महत्या करे.
इसके लिए अभियुक्त की सक्रिय भागीदारी होना आवश्यक है, जिसके कारण मृतका आत्महत्या के लिए मजबूर हुई और मृतका के पास आत्महत्या की स्थिति के अतिरिक्त कोई विकल्प शेष नहीं बचा था. प्रस्तुत प्रकरण में याचिकाकर्ता का यह कभी इरादा नहीं था कि मृतका आत्महत्या करे, इसके अलावा मृतका आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा सकती थी या वह कानूनी उपायों का सहारा ले सकती थी, लेकिन वह कानूनी और वैध कार्रवाई करने के स्थान पर अपने कष्टदाता से प्रतिशोध लेने के लिए आत्महत्या कर ली. उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में निष्कर्ष देते हुए सुविचारित मत दिया कि याचिकाकर्ता ने किसी भी तरह से मृतका को आत्महत्या करने के लिए उकसाया नहीं है.