जबलपुर। पन्ना जिले की अजयगढ़ सिविल कोर्ट में पदस्थ न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी मनोज सोनी के शासकीय आवास को सील करने के मामले में जबलपुर हाई कोर्ट से तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रियाज इकबाल और महिला थाना प्रभारी को राहत मिली है. हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने प्रकरण की सुनवाई के बाद दोनों के खिलाफ आपराधिक अवमानना समाप्त करने के आदेश जारी किए हैं.
13 जून 2018 का मामलाः पन्ना पुलिस ने एक महिला की शिकायत पर अजयगढ़ सिविल कोर्ट में पदस्थ न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी मनोज सोनी के खिलाफ 13 जून 2018 को बलात्कार का प्रकरण दर्ज कर विवेचना में लिया था. न्यायिक दंडाधिकारी की गिरफ्तारी नहीं होने और उसकी 18 जून 2018 को होने वाली शादी पर रोक लगाने की मांग करते हुए पीड़िता ने हाई कोर्ट की शरण ली थी. युगलपीठ ने विवाह पर रोक लगाने से इनकार करते हुए अपने आदेश में कहा था कि न्यायिक दंडाधिकारी को ज्यूडिशियल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत विशेष अधिकार प्राप्त है. युगलपीठ ने अपने आदेश में दिल्ली ज्यूडिशियल सर्विस एसोसिएशन तीस हजारी कोर्ट दिल्ली विरुद्ध स्टेट ऑफ गुजरात मामले में सर्वाेच्च न्यायालय की ओर से निर्धारित गाइडलाइन का पालन करने के आदेश जारी किए थे.
प्रकरण को खारिज किए जाने की याचिकाः पुलिस की ओर से दर्ज किए गए बलात्कार के प्रकरण को खारिज किए जाने की मांग करते जेएमएफसी मनोज सोनी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया था कि उन पर लगाए गए आरोप आधारहीन हैं और पुलिस द्वारा दर्ज किया गया प्रकरण खारिज करने योग्य है. उसके और शिकायतकर्ता के बीच विवाह के संबंध में परिवारिक चर्चा हुई थी. शिकायतकर्ता के खिलाफ लोकायुक्त में प्रकरण दर्ज होने की जानकारी मिलने पर विवाह संबंधित बात पर विराम लग गया था. इस कारण उसके खिलाफ झूठी शिकायत की गई है.
न्यायिक अधिकारी को प्राप्त विशेष अधिकारों का हनन: याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान पेश किए गए आवेदन में कहा गया था कि विवेचना अधिकारी की ओर से 27 जून 2018 को जज मनोज सोनी के सरकारी बंगले को सील किया गया है, जो न्यायिक अधिकारी को प्राप्त विशेष अधिकारों का हनन है. हाई कोर्ट ने पुलिस कार्रवाई पर नाराजगी व्यक्त करते हुए पुलिस अधीक्षक को तलब किया था. तत्कालीन पुलिस अधीक्षक पन्ना रियाज इकबाल हाई कोर्ट में पेश हुए थे. उनकी तरफ से पेश हलफनामा में कहा गया था कि विवेचना अधिकारी को सर्वाेच्च न्यायालय की ओर से निर्धारित की गई गाइडलाइन की जानकारी नहीं थी. विवेचना अधिकारी ने सरकारी बंगले में तालाबंदी नहीं की थी. पहले से लगे तालों को सील किया गया था, जिससे सीन ऑफ क्राइम सुरक्षित रहे. उच्च न्यायालय के आदेश का परिपालन करते हुए तत्काल उन्हें खोल दिया गया था.
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अवमानना याचिका खारिजः विवेचना अधिकारी अंजना दुबे की तरफ से पेश किये गए जवाब में कहा गया कि पीड़िता द्वारा बताया गया था कि शासकीय बंगले में घटना संबंधित आवश्यक साक्ष्य है, जिसके कारण बंगले को सीज किया गया था. शिकायतकर्ता और उपस्थित जनसमुदाय बंगला सील करने का दबाव बना रहे थे. स्थिति उत्तेजक थी और कानून-व्यवस्था के मददेनजर उन्होंने ऐसा किया था. दोनों ने हाई कोर्ट में बिना शर्त माफीनामा भी पेश किया था. युगलपीठ ने सुनवाई के बाद अवमानना याचिका को खारिज कर दिया.