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हाईकोर्ट ने तीन अलग-अलग याचिकाओं पर की सुनवाई, एक खारिज

जबलपुर हाईकोर्ट में दायर तीन मामलों में सुनवाई हुई. प्रवासी मजदूरों को सरकारी योजनाओं के लाभ से संबंधित याचिका पर प्रदेश सरकार की तरफ से रिज्वाइंडर पेश किया गया. इसके अलावा सागर जिले की मेन रोड से लगी बेशकीमती 5 हजार वर्ग फीट जमीन मामले में फैसले को सुरक्षित रख लिया गया है. जबकि चीन की नियंत्रण वाली भारतीय कंपनियों को लेकर लगाई गई याचिका खारिज कर दी गई है.

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Published : Oct 6, 2020, 8:00 PM IST

High Court
हाईकोर्ट

जबलपुर। कोरोना महामारी की वजह से वापस प्रदेश लौटे प्रवासी मजदूरों को शासकीय योजना का लाभ प्रदान किया जाने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजय यादव और जस्टिस राजीव कुमार दुबे की युगलपीठ के समक्ष मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ रिज्वाइंडर पेश किया गया. युगलपीठ ने याचिका पर अगली सुनवाई दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह में निर्धारित की है.

बंधुआ मुक्ति मोर्चा की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि कोरोना वायरस के कारण दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर प्रदेश में लौट रहे हैं. प्रवासी मजदूरों को खाद्य और आर्थिक मदद करने के लिए कई शासकीय योजनाएं संचालित की जा रही है, लेकिन उन्हें इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. जिससे उनकी स्थिति बहुत दयनीय हो गई है.

पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से प्रवासी मजदूरों को योजना का लाभ कैसे मिले,इस पर सुझाव पेश किए गए थे. सरकार ने रिज्वाइंडर दायर करने के लिए समय मांगा था. याचिका पर मंगलवार को हुई सुनवाई के बाद युगलपीठ ने उक्त आदेश जारी किया है.

जमीन के मामले में फैसला सुरक्षित

सागर जिले की मेन रोड से लगी बेशकीमती 5 हजार वर्ग फीट जमीन पर मिलीभगत से कब्जा किये जाने को चुनौती देने वाले मामले में लगाए गए संगीन आरोपों को हाईकोर्ट ने काफी गंभीरता से लिया. दायर मामले में आरोप है कि हर जगह शिकायत के बाद कार्रवाई न होने पर पीएम कार्यालय के आदेश पर ग्राम नगर निवेश ने जांच की और पूरी जमीन खुर्दबुर्द किया जाना पाया. लेकिन इसके बाद जांच ठंडे बस्ते में चली गई. एक्टिंग चीफ जस्टिस संजय यादव व जस्टिस राजीव कुमार दुबे की युगलपीठ ने उभयपक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

ये जनहित का मामला सागर निवासी जगदीश प्रसाद तिवारी की ओर से दायर की गई थी.जिसमें कहा गया है कि सागर के पॉश इलाका पराकोटा में मेन रोड से लगी पांच हजार वर्ग फीट जमीन पूर्व से ही नगर निगम के रिकॉर्ड पर दर्ज है. आरोप है कि उक्त बेशकीमती जमीन के आस-पास के निवासियों ने नगर निमग अधिकारियों से सांठ-गाठ कर उक्त जमीन पर कब्जा कर लिया.

इतना ही नहीं आरोप है कि जब मामले की शिकायत तहसीलदार व सीएम हेल्पलाइन में की गई, तो वहां भी गलत रिपोर्ट पेश की गई. आवेदक का कहना है कि इसके बाद पीएम को पत्र लिखा गया. पीएम कार्यालय के आदेश पर ग्राम नगर निवेश ने जांच की, जिसमें मिलीभगत से जमीन खुर्द-बुर्द होना पाया और सारे रिकॉर्ड पेश करने को कहा.

आरोप है कि राजनीतिक दबाव के कारण आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया.उक्त जमीन पर बाउंड्रीबाल बनाकर शेड डालने की तैयारी की जा रहीं है, जिस पर हाईकोर्ट की शरण ली गई है. मामले में मप्र शासन के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव, निगामायुक्त व कलेक्टर सागर, एसडीओं तहसीलदार सहित तारादेवी, विद्या राजपूत, जवाहर सिंह, हेमंत कुमार व बसंतीबाई व अरविंद कुमार को पक्षकार बनाया गया है. मामले में मंगलवार को उभयपक्षों के तर्क पूरे होने पर न्यायालय ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता संजीव कुमार चंसौरिया ने पक्ष रखा.

चीन की नियंत्रण वाली भारतीय कंपनियों को लेकर लगाई गई याचिका खारिज

मप्र बिजली ट्रांसमिशन कंपनी द्वारा चीन की नियंत्रण वाली भारतीय कंपनियों को डाटा संचार का वर्क ऑर्डर दिये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय यादव और जस्टिस राजीव कुमार दुबे की युगलपीठ ने पाया, कि सरकार ने चीन कंपनियों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगा है. युगलपीठ ने सरकार की पाॅलिसी में हस्ताक्षेप करने से इनकार कर दिया. जिसके बाद याचिकाकर्ता की तरफ से याचिका वापस लेने का आग्रह किया गया. जिसे स्वीकार करते हुए युगलपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया.

नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डाॅ पीजी नाजपांडे,रजत भार्गव और डाॅ एम के खान की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि मप्र टांसमिशन कंपनी ने 17 मार्च 2020 को शंघाई स्टाॅक एक्सचेंस में शामिल चीन की कंपनी द्वारा भारत में नियंत्रित जेआईटी कंपनी को ऑप्टीकल फाइवर लगाने का वर्क ऑर्डर दिया गया है. इस ऑप्टीकल फाइवर से डाटा संचार का नेटवर्क बनेगा.

याचिका में कहा गया है कि भारत के सीमा पर लद्दाख में चीन के साथ सैनिक लड़ाई की स्थिति बनी हुई है. जबलपुर में डिफेंस फैक्ट्री का हवाला देते हुए भारत में स्थापित इन कंपनियों की जांच कर वर्क ऑर्डर निरस्त करने की मांग याचिका में की गई थी.

जबलपुर। कोरोना महामारी की वजह से वापस प्रदेश लौटे प्रवासी मजदूरों को शासकीय योजना का लाभ प्रदान किया जाने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस संजय यादव और जस्टिस राजीव कुमार दुबे की युगलपीठ के समक्ष मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ रिज्वाइंडर पेश किया गया. युगलपीठ ने याचिका पर अगली सुनवाई दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह में निर्धारित की है.

बंधुआ मुक्ति मोर्चा की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि कोरोना वायरस के कारण दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर प्रदेश में लौट रहे हैं. प्रवासी मजदूरों को खाद्य और आर्थिक मदद करने के लिए कई शासकीय योजनाएं संचालित की जा रही है, लेकिन उन्हें इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. जिससे उनकी स्थिति बहुत दयनीय हो गई है.

पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से प्रवासी मजदूरों को योजना का लाभ कैसे मिले,इस पर सुझाव पेश किए गए थे. सरकार ने रिज्वाइंडर दायर करने के लिए समय मांगा था. याचिका पर मंगलवार को हुई सुनवाई के बाद युगलपीठ ने उक्त आदेश जारी किया है.

जमीन के मामले में फैसला सुरक्षित

सागर जिले की मेन रोड से लगी बेशकीमती 5 हजार वर्ग फीट जमीन पर मिलीभगत से कब्जा किये जाने को चुनौती देने वाले मामले में लगाए गए संगीन आरोपों को हाईकोर्ट ने काफी गंभीरता से लिया. दायर मामले में आरोप है कि हर जगह शिकायत के बाद कार्रवाई न होने पर पीएम कार्यालय के आदेश पर ग्राम नगर निवेश ने जांच की और पूरी जमीन खुर्दबुर्द किया जाना पाया. लेकिन इसके बाद जांच ठंडे बस्ते में चली गई. एक्टिंग चीफ जस्टिस संजय यादव व जस्टिस राजीव कुमार दुबे की युगलपीठ ने उभयपक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

ये जनहित का मामला सागर निवासी जगदीश प्रसाद तिवारी की ओर से दायर की गई थी.जिसमें कहा गया है कि सागर के पॉश इलाका पराकोटा में मेन रोड से लगी पांच हजार वर्ग फीट जमीन पूर्व से ही नगर निगम के रिकॉर्ड पर दर्ज है. आरोप है कि उक्त बेशकीमती जमीन के आस-पास के निवासियों ने नगर निमग अधिकारियों से सांठ-गाठ कर उक्त जमीन पर कब्जा कर लिया.

इतना ही नहीं आरोप है कि जब मामले की शिकायत तहसीलदार व सीएम हेल्पलाइन में की गई, तो वहां भी गलत रिपोर्ट पेश की गई. आवेदक का कहना है कि इसके बाद पीएम को पत्र लिखा गया. पीएम कार्यालय के आदेश पर ग्राम नगर निवेश ने जांच की, जिसमें मिलीभगत से जमीन खुर्द-बुर्द होना पाया और सारे रिकॉर्ड पेश करने को कहा.

आरोप है कि राजनीतिक दबाव के कारण आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया.उक्त जमीन पर बाउंड्रीबाल बनाकर शेड डालने की तैयारी की जा रहीं है, जिस पर हाईकोर्ट की शरण ली गई है. मामले में मप्र शासन के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव, निगामायुक्त व कलेक्टर सागर, एसडीओं तहसीलदार सहित तारादेवी, विद्या राजपूत, जवाहर सिंह, हेमंत कुमार व बसंतीबाई व अरविंद कुमार को पक्षकार बनाया गया है. मामले में मंगलवार को उभयपक्षों के तर्क पूरे होने पर न्यायालय ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता संजीव कुमार चंसौरिया ने पक्ष रखा.

चीन की नियंत्रण वाली भारतीय कंपनियों को लेकर लगाई गई याचिका खारिज

मप्र बिजली ट्रांसमिशन कंपनी द्वारा चीन की नियंत्रण वाली भारतीय कंपनियों को डाटा संचार का वर्क ऑर्डर दिये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय यादव और जस्टिस राजीव कुमार दुबे की युगलपीठ ने पाया, कि सरकार ने चीन कंपनियों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगा है. युगलपीठ ने सरकार की पाॅलिसी में हस्ताक्षेप करने से इनकार कर दिया. जिसके बाद याचिकाकर्ता की तरफ से याचिका वापस लेने का आग्रह किया गया. जिसे स्वीकार करते हुए युगलपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया.

नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डाॅ पीजी नाजपांडे,रजत भार्गव और डाॅ एम के खान की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि मप्र टांसमिशन कंपनी ने 17 मार्च 2020 को शंघाई स्टाॅक एक्सचेंस में शामिल चीन की कंपनी द्वारा भारत में नियंत्रित जेआईटी कंपनी को ऑप्टीकल फाइवर लगाने का वर्क ऑर्डर दिया गया है. इस ऑप्टीकल फाइवर से डाटा संचार का नेटवर्क बनेगा.

याचिका में कहा गया है कि भारत के सीमा पर लद्दाख में चीन के साथ सैनिक लड़ाई की स्थिति बनी हुई है. जबलपुर में डिफेंस फैक्ट्री का हवाला देते हुए भारत में स्थापित इन कंपनियों की जांच कर वर्क ऑर्डर निरस्त करने की मांग याचिका में की गई थी.

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