जबलपुर. अनुकंपा को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट ने अहम फैसला दिया है. ये फैसला जस्टिस सुजय पॉल ने दिया है. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि अनुकंपा नियुक्ति मूल आधार है. संकट में फंसे परिवार को राहत देने के लिए. दरअसल, हाईकोर्ट की एकलपीठ ने विवाहित बेटी की तरफ से दायर याचिका को खारिज किया और कहा कि आवेदन निरस्त होने के कई साल दावा नहीं किया जा सकता है.
क्या है पूरा मामला: याचिकाकर्ता अनिला खान की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था- "उनकी मां पुलिस विभाग में पदस्थ थी. अनुकंपा नियुक्ति के लिए उन्होने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मिनाक्षी दुबे के केस का जिक्र किया था. इसमें कहा था कि विवाहित महिला भी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार है."
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इसके बाद हाईकोर्ट ने 6 महीने में अभ्यावेदन का निराकरण करने का आदेश दिए. अभ्यावेदन निरस्त किये जाने की चलते उनकी याचिका दायर की गई. सरकार की तरफ से बताया गया कि याचिकाकर्ता के अनुकंपा नियुक्ति के आदेश को दो साल 2012 और 2015 में निरस्त कर दिए गए. मिनाक्षी दुबे मामले में हाईकोर्ट ने साल 2014 को आदेश पारित किए थे. इसके अलावा याचिकाकर्ता ने पूर्व में आवेदन निरस्त किए जाने को चुनौती नहीं दी थी. याचिकाकर्ता के मामले में मिनाक्षी दुबे के केस में पारित आदेश प्रभावशील नहीं होते हैं.
क्या कहा एकलपीठ ने?: एकलपीठ ने पूर्व में पारित अपने आदेश का हवाला देते हुए कहा कि साल 1997 में पिता की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए 2010 में आवेदन किया था. देर से आवेदन किए जाने की वजह से उस दावे को खारिज कर दिया. अनुकंपा नियुक्ति का आधार है कि संकट में फंसे परिवार को तत्कालीन राहत प्रदान की जाए.
एकलपीठ ने अपने आदेश में पूर्व में पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा- साल 1997 में पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए साल 2010 में आवेदन किया गया था. देर से आवेदन किये जाने के कारण उसके दावे को निरस्त कर दिया गया था. अनुकंपा नियुक्ति का आधार है कि संकट में फंसे परिवार को तत्कानील राहत प्रदान की जाये. पूर्व में निरस्त किये गये आवेदन को तत्परता से चुनौती नही दी गयी है. इसके अलावा 2021 में दायर याचिका देरी के बचाव का कारण नहीं हो सकती है.