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बेटे के अंतिम संस्कार के लिए नहीं थे पैसे, मसीहा बनकर आया मुस्लिम समाज, अर्थी को दिया कांधा - Garib Nawaz Committee last rites of Hindu

कहते हैं कि नियति की मार के आगे किसी की नहीं चलती. जिस बेटे को बुढ़ापे की लाठी समझकर पिता ने विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए पाला और खुद से ज्यादा प्यार दिया, उसी जवान बेटे ने पिता की आंखों के सामने दम तोड़ दिया. लेकिन उस पिता के पास इतने पैसे भी नही थे कि उस बेटे का अंतिम संस्कार कर सके. जिसके बाद मुस्लिम समाज ने इंसानियत का परिचय देते हुए बेटे का अंतिम संस्कार करवाया है.

example of humanity in jabalpur
मुस्लिम समाज ने किया हिंदू युवक का अंतिम संस्कार
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Published : Feb 5, 2023, 12:38 PM IST

Updated : Feb 5, 2023, 1:23 PM IST

गरीब नवाज कमेटी ने किया हिंदू का अंतिम संस्कार

जबलपुर। बेटे की मौत के बाद अस्पताल के बाहर टकटकी लगाकर बूढ़ा बाप घंटों तक देखता रहा, उसे उम्मीद थी कि कोई फरिश्ता उसके पास आकर उसकी परेशानी पूछेगा और फिर मदद करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जिला अस्पताल के बाहर के बैठे बुजुर्ग की जब किसी ने मदद नहीं की तो सामने आए गरीब नवाज कमेटी के सदस्यों ने कौमी एकता की मिसाल कायम करते हुए हिन्दू रीति रिवाज से पिता के हाथों मुक्ति धाम में बेटे का अंतिम संस्कार करवाया.

Muslim society performed last rites of Hindu boy
मुस्लिम समाज ने किया हिंदू युवक का अंतिम संस्कार

पन्नी बेचकर गुजारा करता था रामदास: कभी भरा पूरा परिवार था रामदास का, गरीबी शुरू से थी. रामदास अपनी पत्नी और बेटे के साथ कचरा-पन्नी बीनकर किसी तरह गुजर बसर करता था. अचानक से पत्नी का देहांत हो गया, किराए के कमरे में रहते थे कुछ दिन बाद उसे खाली करके सड़क किनारे रहने लगे. दिन भर में बाप-बेटे कचरा-पन्नी बीनकर उसे बेचते और जो भी मिलता उसी से भरण पोषण करते. जिंदगी इसी तरह से बाप-बेटे की चल रहीं थी कि बेटे प्रमोद की तबियत बिगड़ी, बूढ़ा बाप किसी तरह सहारा देते हुए उसे जिला अस्पताल लेकर पहुंचा जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. जवान बेटे की मौत से ज्यादा बूढ़े पिता को यह चिंता हो गई कि बेटे का अंतिम संस्कार कैसे करूंगा, मेरे जेब में तो फूटी कौड़ी भी नहीं है.

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बेटे के शव के पास घंटों बैठा रहा पिता: अस्पताल कर्मचारियों ने प्रमोद की मौत के बाद बूढ़े पिता को शव सौंप दिया. शव को जिला अस्पताल के पास रखकर रामदास अब चिंता में था, उसे चिंता थी कि अब बेटे का अंतिम संस्कार कैसे करूं. अगर शव अस्पताल में ही छोड़कर चला गया तो कहीं पुलिस में शिकायत ना हो जाए. यही सोचकर बेटे के शव के पास बूढ़ा बाप घंटों बैठा रहा. इस बीच कई लोग निकले भी पर मदद करने की वजह उसे भला-बुरा कहते हुए चले गए. जैसे-जैसे समय बीत रहा, वैसे-वैसे बुजुर्ग बाप की चिंता भी बढ़ रही थी. इस बीच किसी ने गरीब नवाज कमेटी के सदस्यों को इसकी जानकारी दी.

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गरीब नवाज कमेटी ने करवाया अंतिम संस्कार: गरीब नवाज कमेटी के सदस्य इनायत अली आपने साथियों के साथ जिला अस्पताल पहुंचे तो देखा कि 70 वर्षीय बुजुर्ग रामदास अपने बेटे का शव लिए बैठा हुआ था. आंखों के आंसू भी शायद रामदास के इसलिए सूख गए थे कि मदद का इंतजार करते घंटों बीत गए थे. गरीब नवाज कमेटी के सदस्यों ने जब रामदास से बात की और मदद का आश्वासन दिया तब जाकर उसकी जान में जान आई. इनायत अली, बुजर्ग और उसके बेटे के शव को लेकर रानीताल मुक्तिधाम पहुंचे जहां हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया. इनायत अली ने बताया कि जब जिला अस्पताल पहुंचे थे तो बुजुर्ग अपने बेटे का शव को लेकर बैठें हुए थे. उनसे पूछा तो बताया कि बेटे की तबियत कब से खराब यह पता नहीं है, तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उसे अस्पताल लाया था, जहां उसकी मौत हो गई. बहरहाल एक बार फिर समाजसेवी इनायत अली ने एक मजबूर पिता की मदद कर उसके बेटे का अंतिम संस्कार किया है.

गरीब नवाज कमेटी ने किया हिंदू का अंतिम संस्कार

जबलपुर। बेटे की मौत के बाद अस्पताल के बाहर टकटकी लगाकर बूढ़ा बाप घंटों तक देखता रहा, उसे उम्मीद थी कि कोई फरिश्ता उसके पास आकर उसकी परेशानी पूछेगा और फिर मदद करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जिला अस्पताल के बाहर के बैठे बुजुर्ग की जब किसी ने मदद नहीं की तो सामने आए गरीब नवाज कमेटी के सदस्यों ने कौमी एकता की मिसाल कायम करते हुए हिन्दू रीति रिवाज से पिता के हाथों मुक्ति धाम में बेटे का अंतिम संस्कार करवाया.

Muslim society performed last rites of Hindu boy
मुस्लिम समाज ने किया हिंदू युवक का अंतिम संस्कार

पन्नी बेचकर गुजारा करता था रामदास: कभी भरा पूरा परिवार था रामदास का, गरीबी शुरू से थी. रामदास अपनी पत्नी और बेटे के साथ कचरा-पन्नी बीनकर किसी तरह गुजर बसर करता था. अचानक से पत्नी का देहांत हो गया, किराए के कमरे में रहते थे कुछ दिन बाद उसे खाली करके सड़क किनारे रहने लगे. दिन भर में बाप-बेटे कचरा-पन्नी बीनकर उसे बेचते और जो भी मिलता उसी से भरण पोषण करते. जिंदगी इसी तरह से बाप-बेटे की चल रहीं थी कि बेटे प्रमोद की तबियत बिगड़ी, बूढ़ा बाप किसी तरह सहारा देते हुए उसे जिला अस्पताल लेकर पहुंचा जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. जवान बेटे की मौत से ज्यादा बूढ़े पिता को यह चिंता हो गई कि बेटे का अंतिम संस्कार कैसे करूंगा, मेरे जेब में तो फूटी कौड़ी भी नहीं है.

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बेटे के शव के पास घंटों बैठा रहा पिता: अस्पताल कर्मचारियों ने प्रमोद की मौत के बाद बूढ़े पिता को शव सौंप दिया. शव को जिला अस्पताल के पास रखकर रामदास अब चिंता में था, उसे चिंता थी कि अब बेटे का अंतिम संस्कार कैसे करूं. अगर शव अस्पताल में ही छोड़कर चला गया तो कहीं पुलिस में शिकायत ना हो जाए. यही सोचकर बेटे के शव के पास बूढ़ा बाप घंटों बैठा रहा. इस बीच कई लोग निकले भी पर मदद करने की वजह उसे भला-बुरा कहते हुए चले गए. जैसे-जैसे समय बीत रहा, वैसे-वैसे बुजुर्ग बाप की चिंता भी बढ़ रही थी. इस बीच किसी ने गरीब नवाज कमेटी के सदस्यों को इसकी जानकारी दी.

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गरीब नवाज कमेटी ने करवाया अंतिम संस्कार: गरीब नवाज कमेटी के सदस्य इनायत अली आपने साथियों के साथ जिला अस्पताल पहुंचे तो देखा कि 70 वर्षीय बुजुर्ग रामदास अपने बेटे का शव लिए बैठा हुआ था. आंखों के आंसू भी शायद रामदास के इसलिए सूख गए थे कि मदद का इंतजार करते घंटों बीत गए थे. गरीब नवाज कमेटी के सदस्यों ने जब रामदास से बात की और मदद का आश्वासन दिया तब जाकर उसकी जान में जान आई. इनायत अली, बुजर्ग और उसके बेटे के शव को लेकर रानीताल मुक्तिधाम पहुंचे जहां हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया. इनायत अली ने बताया कि जब जिला अस्पताल पहुंचे थे तो बुजुर्ग अपने बेटे का शव को लेकर बैठें हुए थे. उनसे पूछा तो बताया कि बेटे की तबियत कब से खराब यह पता नहीं है, तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उसे अस्पताल लाया था, जहां उसकी मौत हो गई. बहरहाल एक बार फिर समाजसेवी इनायत अली ने एक मजबूर पिता की मदद कर उसके बेटे का अंतिम संस्कार किया है.

Last Updated : Feb 5, 2023, 1:23 PM IST
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