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Buxwaha Forest की जमीन आवंटन पर कोर्ट सख्त, जिम्मेदारों को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

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Published : Jun 22, 2021, 10:39 PM IST

छतरपुर में नेशनल टाइगर कंजरवेटर अथॉरिटी और वाइल्ड लाइफ बोर्ड की अनुमति के बगैर टाइगर कॉरीडोर में हीरा खदान के लिए बक्सवाहा जंगल की जमीन आवंटित किए जाने पर हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. हाई कोर्ट की युगलपीठ ने सरकार की उन दलीलों को नकार दिया, जिसमें कहा गया था कि अनुमति की आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने जिम्मेदारों को नोटिस भी जारी किया है.

High Court seeks answer on Buxwaha Forest
Buxwaha Forest पर हाई कोर्ट ने मांगा जवाब

जबलपुर। प्रदेश के छतरपुर में नेशनल टाइगर कंजरवेटर अथॉरिटी और वाइल्ड लाइफ बोर्ड की अनुमति बगैर टाइगर कॉरीडोर में हीरा खदान के लिए बक्सवाहा जंगल की जमीन आवंटित किए जाने को चुनौती देने वाले मामले को हाई कोर्ट ने सख्ती से लिया है. चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने सरकार की उन दलीलों को नकार दिया, जिसमें कहा गया था कि जंगल काटने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं है. युगलपीठ ने मामले में अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के आदेश दिए है. युगलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की है.

  • एनटीसीए और वाइल्ड लाइफ बोर्ड से नहीं ली गई अनुमति

हरियाणा फरिदाबाद निवासी रमित बासु, महाराष्ट्र पुणे निवासी हर्षवर्धन मेलांता और उत्तर प्रदेश निवासी पंकज कुमार की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने हीरे की खदान के लिए आदित्य बिरला ग्रुप की एस्सल माइनिंग एंड इंड्रस्ट्री को छतरपुर स्थित बक्सवाहा के जंगल की 382 हैक्टेयर जमीन 50 साल की लीज के लिए प्रदान की गई है. हीरा उत्खन्न के लिए रेन फारेस्ट के लगभग सवा दो लाख पेड़ों को काटा जाएगा. जबकि बक्सवाहा जंगल पन्ना टाइगर रिजर्व से लगा हुआ है, जो टाइगर कॉरीडोर में आता है. इसके लिए एनटीसीए और वाइल्ड लाइफ बोर्ड से अनुमति भी नहीं ली गई.

हीरे के लिए Buxwaha के जंगलों को 'जलाने' की तैयारी! National Green Tribunal ने मांगा जवाब

  • सरकार का यह निर्णय गलत है- आवेदक

आवेदकों का कहना है कि वनजीवों को जीवन का अधिकार प्राप्त है. वो जंगल में रहते है. जब जंगल नष्ट हो जाएंगे, तो वनप्राणी कहां रहेंगे. पृथ्वी में सभी को जीवन का अधिकार प्राप्त है. बक्सावाहा के जंगल में बड़ी संख्या में वन संपदा है. ऐसे जंगल पनपने में हजारों साल लगते है. राज्य सरकार ने लाभ के लिए जंगल की जमीन को लीज पर दिया है, जो गलत निर्णय है. वहीं सरकार की ओर से कहा गया कि एनटीसीए की अनुमति की आवश्यकता नहीं है, क्योकि जंगल पन्ना टाइगर रिजर्व से 50 किमी दूर है. वहीं मामले में आवेदकों की ओर से कहा गया कि पूरी प्रकिया के लिए विभागों की अनुमति की आवश्यकता है. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 38 (ओ) व 38 (बी) में वर्ष 2006 में संशोधन किया गया, जिसके तहत टाइगर कॉरीडोर में माइनिंग जैसी किसी भी गतिविधि के लिए वाइल्ड लाइफ बोर्ड की अनुमति आवश्यक है.

हीरे के लिए हलाल नहीं होने देंगे हरियाली, बक्सवाहा में तेज हुआ जंगल काटने का विरोध, NGT ने मांगा जवाब

  • कोर्ट ने जारी किए नोटिस

पर्यावरण वन मंत्रालय के सचिव, खनिज संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव, फॉरेस्ट विभाग के प्रमुख सचिव, पीसीसीएफ और एनटीसीए, कलेक्टर छतरपुर और एस्सल माइनिंग एंड इंडस्ट्री के एमडी आदित्य बिरला को पक्षकार बनाया गया है. मामले की सुनवाई के बाद न्यायालय ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब पेश करने के निर्देश दिए है. याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने पक्ष रखा.

जबलपुर। प्रदेश के छतरपुर में नेशनल टाइगर कंजरवेटर अथॉरिटी और वाइल्ड लाइफ बोर्ड की अनुमति बगैर टाइगर कॉरीडोर में हीरा खदान के लिए बक्सवाहा जंगल की जमीन आवंटित किए जाने को चुनौती देने वाले मामले को हाई कोर्ट ने सख्ती से लिया है. चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने सरकार की उन दलीलों को नकार दिया, जिसमें कहा गया था कि जंगल काटने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं है. युगलपीठ ने मामले में अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के आदेश दिए है. युगलपीठ ने मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की है.

  • एनटीसीए और वाइल्ड लाइफ बोर्ड से नहीं ली गई अनुमति

हरियाणा फरिदाबाद निवासी रमित बासु, महाराष्ट्र पुणे निवासी हर्षवर्धन मेलांता और उत्तर प्रदेश निवासी पंकज कुमार की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने हीरे की खदान के लिए आदित्य बिरला ग्रुप की एस्सल माइनिंग एंड इंड्रस्ट्री को छतरपुर स्थित बक्सवाहा के जंगल की 382 हैक्टेयर जमीन 50 साल की लीज के लिए प्रदान की गई है. हीरा उत्खन्न के लिए रेन फारेस्ट के लगभग सवा दो लाख पेड़ों को काटा जाएगा. जबकि बक्सवाहा जंगल पन्ना टाइगर रिजर्व से लगा हुआ है, जो टाइगर कॉरीडोर में आता है. इसके लिए एनटीसीए और वाइल्ड लाइफ बोर्ड से अनुमति भी नहीं ली गई.

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  • सरकार का यह निर्णय गलत है- आवेदक

आवेदकों का कहना है कि वनजीवों को जीवन का अधिकार प्राप्त है. वो जंगल में रहते है. जब जंगल नष्ट हो जाएंगे, तो वनप्राणी कहां रहेंगे. पृथ्वी में सभी को जीवन का अधिकार प्राप्त है. बक्सावाहा के जंगल में बड़ी संख्या में वन संपदा है. ऐसे जंगल पनपने में हजारों साल लगते है. राज्य सरकार ने लाभ के लिए जंगल की जमीन को लीज पर दिया है, जो गलत निर्णय है. वहीं सरकार की ओर से कहा गया कि एनटीसीए की अनुमति की आवश्यकता नहीं है, क्योकि जंगल पन्ना टाइगर रिजर्व से 50 किमी दूर है. वहीं मामले में आवेदकों की ओर से कहा गया कि पूरी प्रकिया के लिए विभागों की अनुमति की आवश्यकता है. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 38 (ओ) व 38 (बी) में वर्ष 2006 में संशोधन किया गया, जिसके तहत टाइगर कॉरीडोर में माइनिंग जैसी किसी भी गतिविधि के लिए वाइल्ड लाइफ बोर्ड की अनुमति आवश्यक है.

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  • कोर्ट ने जारी किए नोटिस

पर्यावरण वन मंत्रालय के सचिव, खनिज संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव, फॉरेस्ट विभाग के प्रमुख सचिव, पीसीसीएफ और एनटीसीए, कलेक्टर छतरपुर और एस्सल माइनिंग एंड इंडस्ट्री के एमडी आदित्य बिरला को पक्षकार बनाया गया है. मामले की सुनवाई के बाद न्यायालय ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब पेश करने के निर्देश दिए है. याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने पक्ष रखा.

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