जबलपुर। करीब तीन दशक पहले जिस फसल का अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो गया था, अब उसी फसल को आदिवासी एक बार फिर सहेज रहे हैं. मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल में पैदा होने वाली अमराई फसल (HIBISCUS SABDARIFFA) को आदिवासी लोग पसंद कर उसे फिर से पैदा करने में जुट गए हैं. खास बात यह है कि आदिवासियों की फसल अमराई नागपुर की कंपनी(Super Food) को इस कदर भा गई है, की उन्होंने इसे बहुतायत में खरीदने की पेशकश कर डाली, ऐसे में अब मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल में रहने वाले किसान अमराई फसल को अपनी मूल फसल में बनाने की तैयारी में लगे है.
सालों पहले नष्ट हो गया था अमराई फसल का बीज
करीब तीन दशक पहले अमराई फसल का बीज पूरी तरह से नष्ट हो गया था, उसके बाद फिर नागपुर की कंपनी ने कृषि विभाग के सहयोग से फिर फसल को लगाने के लिए आदिवासियों किसानों की मांग पर करीब 20 किलो अमराई फसल का बीज दिया. साथ ही कंपनी ने आश्वासन दिया कि अगर किसान इस फसल को बहुतायत में लगाते हैं तो उनकी सारी फसल को कंपनी खरीदेगी. दरअसल अमराई फसल को किसानों अनुपयोगी जमीन पर भी लगा सकते है. जबलपुर का आदिवासी बाहुल्य इलाका कुंडम जो कि पथरीले इलाका कहा जाता है, उस जमीन पर भी आसानी से अमराई फसल को लगाया जा सकता है. अमराई (HIBISCUS SABDARIFFA) भाजी को आयुर्वेदिक दवाइयां और हर्बल-टी में उपयोग किया जाता है, साथ ही यह विटामिन सी सहित रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी कारगर साबित होती है.
कुंडम के आधा दर्जन गांव में अमराई की फसल
कृषि विभाग के सहयोग से अमराई(खाटूआ) को कुंडम तहसील के करीब आधा दर्जन से ज्यादा गांव में शुरुआती दौर में लगाया गया है. अमराई फसल लगाने के लिए नहीं अधिक मेहनत की जरूरत होती है, और ना ही अधिक पानी की, इसके अलावा पथरीली जमीन पर भी इस फसल को आसानी से लगाया जा सकता है. यही कारण है कि कुंडम क्षेत्र के ज्यादातर आदिवासी किसान अब इस फसल को अपनी मूल फसल में शामिल कर रहे हैं.
अमराई की पंखुड़ी खरीदेगी नागपुर की कंपनी
अमराई की पंखुड़ी को नागपुर की कंपनी सुपर फूड ने किसानों से खरीदने का अनुबंध किया है. नागपुर की कंपनी अमराई की पंखुड़ी को डेढ़ सौ रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदने के लिए तैयार हुई है. इसके अलावा इस फसल के बीज को भी कंपनी 100 से 150 रुपए किलो में खरीदेगी. बताया जा रहा है कि अमराई की पंखुड़ी और इनके बीच को नागपुर की कंपनी आयुर्वेदिक दवाइयों बनाने में उपयोग करेगी, साथ ही इस फसल के बीच से जो तेल निकलेगा वह भी दवाइयों में ही इस्तेमाल होगा.
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अब आत्मनिर्भर होंगे आदिवासी
जबलपुर अंचल का कुंडम पथरीला क्षेत्र कहा जाता है इस क्षेत्र में आदिवासियों के पास जमीन तो बहुत सारी हैं पर वह पूरी तरह से पथरीली होती थी, लिहाजा इस जमीनों में आदिवासी किसान कोदू- कुटकी फसल लगाया करते थे. कृषि विभाग ने आदिवासी किसानों का सहयोग करते हुए उन्हें अमराई फसल लगाने की सलाह दी, जो कि उनके लिए कारगर भी साबित हुई. किसानों ने तय किया है कि वह अब ज्यादा से ज्यादा जमीन में अमराई फसल को लगाकर ना सिर्फ आत्मनिर्भर बनेंगे, बल्कि उनकी आमदनी भी अच्छी खासी होगी. कृषि विभाग के जिला विस्तार अधिकारी बताते हैं कि पहले आदिवासी अंचल में किसान अपनी पथरीली जमीन का उपयोग नहीं कर पाते थे पर अब जबकि नागपुर की एक कंपनी ने इनकी मदद की है तो निश्चित रूप से अब आदिवासी किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी.
दशकों पहले खत्म हो गई पुरानी परंपरा को फिर किया जीवित
करीब तीन दशक पहले जो अमराई (HIBISCUS SABDARIFFA) फसल पूरी तरह से खत्म हो गई थी उसे फिर एक बार जीवित किया जा रहा है. आदिवासी लोग पहले इस फसल को अपने खाने में खट्टापन लाने के लिए इस्तेमाल किया करते थे पर धीरे-धीरे आदिवासियों ने इसका उपयोग करना बंद कर दिया था. अब शुरुआती दौर में करीब 15 एकड़ में आदिवासी किसानों ने इस फसल को लगाया है. कृषि विभाग के सहयोग से अमराई फसल को नागपुर भी भेजा जाएगा, जो कि महाराष्ट्र वासियों के खाने का जायका भी बढ़ाएगी. बता दें, की अमराई का इस्तेमाल सब्जी, दाल सहित अन्य खाद्य पदार्थों को खट्टा करने के लिए भी होता है.