जबलपुर। मप्र उच्च न्यायालय के जस्टिस संजय यादव और जस्टिस अतुल श्रीधरन की युगलपीठ ने संज्ञान याचिका का निराकरण करते हुए अपने आदेश में रेलवे विभाग से आग्रह किया है. उन्होंने कहा है कि लोवर बर्थ के आवंटन में सबसे पहले गर्भवती महिला, गंभीर मरीज और दिव्यांग व्यक्तियों को प्राथमिकता दें, इसके बाद वरिष्ठ व्यक्तियों को और उसके बाद व्हीव्हीआईपी व्यक्तियों को प्राथमिकता दी जाए.
हाईकोर्ट जस्टिस एके श्रीवास्तव ने पत्र में कटनी स्टेशन की घटना का उल्लेख करते हुए कहा था कि वह स्टेशन पर चाय पीने के लिए उतरे ही थे कि ट्रेन चल दी. कटनी स्टेशन में ट्रेन का स्टाॅपेज सिर्फ दो मिनट का था. ट्रेन में उनकी पत्नी थी इसलिए उन्हें दौडकर उसमें चढ़ना पड़ा. पत्र में दो मिनट के स्टॉपेज को अव्यवहारिक करार देते हुए पत्र में कहा गया था कि चढ़ने और उतरने के लिए बोगी में प्लेटफॉर्म साईड दो गेट रहते हैं. गेट तक पहुंचे और प्लेटफॉर्म में उतरने तक में इतना समय लग जाता है.
पत्र में बोगी गेट की चौड़ाई कम होने के कारण यात्रियों को सामान सहित चढ़ने और उतरने में होने वाली दिक्कत का उल्लेख किया गया था. पत्र में यह भी कहा गया था कि प्रत्येक बोगी में ऐसा सिग्नल सिस्टम होना चाहिए, जिससे यात्रियों को पता चल सके कि ट्रेन रवाना होने वाली है. टिकट आरक्षण को अधिक पारदर्शी बनाने का मुद्दा भी उठाया गया था.
याचिका की सुनवाई के दौरान रेलवे विभाग की तरफ से बताया गया था कि केंद्र मंत्री, सांसद, सर्वोच्च न्यायालय और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जस्टिस को विशेष वर्ग में रखा गया है. उनके लिए आरक्षण को विशेष कोटा निर्धारित है, जवाब में कहा गया था कि प्लेटफाॅर्म से चलने के पहले ट्रेन सायरन देती है. इसके अलावा डिब्बों का डिजाइन निर्धारित मापदंड अनुसार किया गया है.
युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने तीन सुझाव दिये हैं. न्यायालय रेल्वे की पाॅलिसी में हस्ताक्षेप नहीं कर रहा है लेकिन ये सुझाव दिया जाता है. रिजर्वेशन और लोवर बर्थ आवंटन में सबसे पहले मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के जस्टिस संजय यादव और जस्टिस अतुल श्रीधरन की युगलपीठ ने संज्ञान याचिका का निराकरण करते हुए सोमवार को जारी अपने आदेश में रेलवे विभाग को सुझाव दिया है कि लोवर वर्थ के आवंटन में सबसे पहले गर्भवती महिला और गंभीर मरीज और दिव्यांग व्यक्तियों को प्राथमिकता दें.