जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में जिला दंडाधिकारी के द्वारा जिला बदर के आदेश को निरस्त करते हुए 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है. जस्टिस जीएस आहलुवालिया की एकलपीठ ने जिला दंडाधिकारी को 30 दिन के अंदर जुर्माने की रकम हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में जमा कराने के निर्देश दिए है. एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को उक्त रकम लेने की स्वतंत्रता दी है.
डुमना रोड ककरतला निवासी रज्जन यादव ने जिला बदर की कार्रवाई को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसमें कहा गया था कि बरसों पुराने अपराधिक मामलों के आधार पर उसके खिलाफ कार्रवााई की गई है. जिला दंडाधिकारी ने पर्याप्त अवसर दिए बिना ही उसके खिलाफ आदेश पारित किया है. इसके पहले भी जिला जिला दंडाधिकारी ने 29 सितंबर 2018 को उसके जिला बदर का आदेश पारित किया. जिसके खिलाफ उसने संभागायुक्त के समक्ष अपील पेश की गई. संभागायुक्त ने यह कहते हुए जिला दंडाधिकारी का आदेश निरस्त कर दिया कि उन्होंने इस दौरान याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर क्यों नहीं दिया और पुलिस कर्मियों के बयान भी दर्ज नहीं किए गए. संभागायुक्त ने मामला वापस जिला दंडाधिकारी को भेज दिया है.
खमरिया थाना पुलिस ने उसके खिलाफ 28 जुलाई 2020 को धारा 327, 294, 506 के तहत प्रकरण दर्ज किया था. इसके बाद पुलिस अधीक्षक ने उसके खिलाफ जिला बदल की कार्रवाई करने जिला दंडाधिकारी से अनुशंसा की थी. एसपी ने जिस दिन अनुशंसा की थी उसी दिन जिला दंडाधिकारी ने नोटिस जारी कर दिए. सुनवाई के दौरान खमरिया थाना प्रभारी ने अपने बयान में बताया था कि उसके खिलाफ साल 2016 से 2020 तक कोई अपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं हुआ था. जिला दंडाधिकारी द्वारा उसके खिलाफ 28 जुलाई 2020 को जिला बदर का आदेश पारित कर दिया.
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सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पूर्व में भी एनएसए की कार्रवाई की गई. जिला बदर की कार्रवाई के बाद भी याचिकाकर्ता आपराधिक प्रकरणों में लिप्त रहा है. याचिकाकर्ता के डर के चलते गवाह भी बयान दर्ज कराने नहीं आते. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा कि जिला दंडाधिकारी ने आदेश जारी करते समय अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया. जिला दंडाधिकारी के आदेश से साफहै कि उन्होंने दुर्भावना से प्रेरित होकर यह कार्रवाई की है. इसके पहले भी जिला दंडाधिकारी ने जो जिला बदर का आदेश पारित किया था उससे स्पष्ट है कि उन्होंने प्रकिया पालन में केवल औपचारिकता निभाई है. पूर्व में जारी जिला बदल आदेश के फैसले की कॉपी को कट और पेस्ट किया है.
अधिकारी को आदेश जारी करते समय कट-पेस्ट की प्रवृत्ति को अपनाने की बजाय तार्किक निर्णय पारित करना चाहिए. एकल पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि अपील का निराकरण करना महज औपचारिकता नहीं है. अपीलीय अधिकारी को यांत्रिकता पूर्वक नहीं वरन प्रकरण की सूक्ष्म जांच के बाद उसकी गंभीरता देखते हुए फैसला करना चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वसंत डेनियल ने पैरवी की.