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नर्मदा किनारे ग्वारीघाट तट पर पड़े थे गुरुनानक देव जी के चरण, यहीं ऋषि सरबंग से हुई थी मुलाकात - Gurunanak Dev stayed on Gwarighat

आज सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी महाराज की 551वीं जयंती है. कहा जाता है कि जब गुरुनानक देव ने अपनी पंजाब से यात्रा शुरू की थी तो उस दौरान वो जबलपुर के ग्वारीघाट तट पर रुके थे और यहां उन्होंने तप किया था. यही वो जगह है जहां सरबंग ऋषि का उन्होंने उद्धार किया था.

Guru Nanak Jayanti
गुरुनानक जयंती
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Published : Nov 30, 2020, 7:06 PM IST

जबलपुर। पूरे देश में गुरू नानक देव की 551वीं जयंती पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. प्रकाश पर्व पर संस्कारधानी जबलपुर के नर्मदा तट किनारे गुरूद्वारा ग्वारीघाट का उल्लेख ना हो ऐसा हो नहीं सकता. इतिहास के पन्नों में लिखा हुआ है कि जब 1507 ईसवीं को गुरु नानक देव जी महाराज ने पंजाब से अपनी यात्रा शुरू की थी तो उस दौरान उनके चरण ग्वारीघाट तट पर भी पड़े थे. गुरु नानक देव जी ने तब नर्मदा किनारे बनी पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर तप किया था.

जबलपुर में रुके थे गुरुनानक देव

दक्षिण भारत यात्रा से लौटते समय जबलपुर आए थे गुरु नानक देव

सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव ने दक्षिण भारत की यात्रा से लौटते समय संस्कारधानी में नर्मदा किनारे काफी समय बिताया था. उनके साथ उनके चिर सहयोगी भाई मरदाना भी थे, जो कि हमेशा उनके साथ ही रहा करते थे. गुरु नानक देव ने ग्वारीघाट स्थित इसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर तप किया था. तभी से उनका यह स्थान ऐतिहासिक माने जाने लगा. आज सिख समाज का ये स्थान धार्मिक बन चुका है. जहां रोजाना सैकड़ों अनुयायी उनके आते हैं.

Gwarighat gurudwara
ग्वारीघाट गुरुद्वारा

यहां हुई थी गुरु नानकदेव की ऋषि सरबंग से मुलाकात

कहा जाता है कि जब गुरु नानक देव जी अपने साथी मरदाना के साथ मां रेवा किनारे आए थे, तो यहीं पर उनकी ऋषि रसबंग से उनकी मुलाकात हुई थी. जानकारों के मुताबिक ऋषि सरबंग अपने आडंबर, कर्मकांड को लेकर काफी प्रसिद्ध थे पर जब उन्हें पता चला कि वह जो सब कर रहे हैं यह गलत है तब उनके उद्धार के लिए ही गुरु नानक देव जी नर्मदा किनारे ग्वारीघाट आए थे. यही पर उनके साथ शास्त्रार्थ किया था.

Guru Nanak Jayanti
गुरुनानक जयंती

जहां पड़े गुरू नानक जी के चरण वहां है आज गुरूद्वारा

जिस जगह पर कभी गुरु नानक देव जी रुके थे, आज वहां पर सिख संप्रदाय के प्रत्यन के चलते भव्य गुरुद्वारा बना दिया गया है. यह गुरुद्वारा गुरु नानक देव की स्मृति सहेजे हुए सिख समुदाय की आस्था का बड़ा केंद्र बन गया है. इतिहासकारों के मुताबिक 1507 ईसवीं में गुरु नानक देव ने विश्व में ज्ञान की अलख जगाने और अकाल पुरख की सर्वभोम सत्ता स्थापित करने के लिए देश देशांतर यात्राएं आरंभ की थी. इस क्रम में उन्होंने उपमहाद्वीप सहित अरब देश, मक्का, बगदाद, चीन, काबुल सहित भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्राएं की थी. इन यात्राओं को उदासी नाम दिया गया था.

Guru Nanak Dev Ji Maharaj
गुरुनानक देव जी महाराज

ये भी पढ़ें: इंदौर में इस स्थान पर रुके थे गुरु नानक देव जी, पढ़िए उनके चमत्कार

ग्वारीघाट की यात्रा

गुरु नानक देव जी की कुल 4 उदासियों में से अंतिम उदासी से लौटते समय दक्षिण भारत से नांदेड, नासिक होते हुए खंडवा ओंकारेश्वर इंदौर पहुंचे. वहां से नर्मदा के किनारे- किनारे होते हुए वह ग्वारीघाट जिसे के वर्तमान में जबलपुर कहा जाता है. वहां आए थे, यह प्राकृतिक स्थल गुरु नानक देव को इतना भाया कि वह अपने भाई मरदाना के साथ कई दिनों तक यही पर विश्राम किया. फिर आगे की यात्रा आरंभ की.

Gurudwara along Narmada coast
नर्मदा तट के किनारे गुरुद्वारा

कोड़े भील का भी यहीं हुआ था उद्धार

कहा जाता है कि आंध्रप्रदेश से जबलपुर आते समय भाई मरदाना बहुत थक गए थे, घर से निकले हुए भी उन्हें बहुत दिन हो चुके थे. लिहाजा उन्हें घर की याद सताने लगी. गुरु नानक देव जी से मरदाना ने आज्ञा मांगी और घनघोर जंगलों के रास्ते अपने घर की ओर चल दिए. राह में कोड़े भील नाम के दुर्दांत दस्यु के बिछाए जाल में मरदाना फंस गए, दुर्दांत दस्यु ने उन्हें पेड़ से बांध दिया. कोड़े के बारे में विख्यात था कि वह जंगल के राहगीरों को खा जाता था. भयभीत होकर भाई मरदाना ने गुरु नानक देव जी को आवाज लगाई तब गुरुदेव भी तत्काल वहां पहुंचे और उन्हें बंधन मुक्त किया. उन्होंने अपनी मधुर वाणी से कोड़े को सन्मार्ग में चलने की प्रेरणा दी और उसका भी उद्धार हुआ.

Gurunana Dev Ji Maharaj with Bhai Mardana
गुरुनाना देव जी महाराज भाई मरदाना के साथ

प्रशासन की गाइडलाइन के तहत बड़ा कार्यक्रम नहीं

स्थानीय निवासी बताते हैं कि नर्मदा तट के किनारे बने इस गुरुद्वारे में दर्शन मात्र से ही शांति मिलती है. क्योंकि इस जगह की काफी महत्ता है. यह तपो भूमि गुरूनानक देव की भी है और यहां बड़े-बड़े ऋषियों ने भी तप किया है. वहीं इस बार प्रशासन की गाइडलाइन के तहत बड़ा कार्यक्रम नहीं हो रहा है.

कोरोना काल में नहीं रही भीड़

गुरुद्वारा में आमतौर पर गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के समय तमाम गुरुद्वारों में उनके भक्तों की भारी भीड़ रहती थी. लेकिन कोरोना वायरस के चलते प्रशासन ने इस बार लंगर और भीड़ की अनुमति नहीं दी. जिस वजह से प्रकाश पर्व थोड़ा फीका नजर आ रहा है.

जबलपुर। पूरे देश में गुरू नानक देव की 551वीं जयंती पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. प्रकाश पर्व पर संस्कारधानी जबलपुर के नर्मदा तट किनारे गुरूद्वारा ग्वारीघाट का उल्लेख ना हो ऐसा हो नहीं सकता. इतिहास के पन्नों में लिखा हुआ है कि जब 1507 ईसवीं को गुरु नानक देव जी महाराज ने पंजाब से अपनी यात्रा शुरू की थी तो उस दौरान उनके चरण ग्वारीघाट तट पर भी पड़े थे. गुरु नानक देव जी ने तब नर्मदा किनारे बनी पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर तप किया था.

जबलपुर में रुके थे गुरुनानक देव

दक्षिण भारत यात्रा से लौटते समय जबलपुर आए थे गुरु नानक देव

सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव ने दक्षिण भारत की यात्रा से लौटते समय संस्कारधानी में नर्मदा किनारे काफी समय बिताया था. उनके साथ उनके चिर सहयोगी भाई मरदाना भी थे, जो कि हमेशा उनके साथ ही रहा करते थे. गुरु नानक देव ने ग्वारीघाट स्थित इसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर तप किया था. तभी से उनका यह स्थान ऐतिहासिक माने जाने लगा. आज सिख समाज का ये स्थान धार्मिक बन चुका है. जहां रोजाना सैकड़ों अनुयायी उनके आते हैं.

Gwarighat gurudwara
ग्वारीघाट गुरुद्वारा

यहां हुई थी गुरु नानकदेव की ऋषि सरबंग से मुलाकात

कहा जाता है कि जब गुरु नानक देव जी अपने साथी मरदाना के साथ मां रेवा किनारे आए थे, तो यहीं पर उनकी ऋषि रसबंग से उनकी मुलाकात हुई थी. जानकारों के मुताबिक ऋषि सरबंग अपने आडंबर, कर्मकांड को लेकर काफी प्रसिद्ध थे पर जब उन्हें पता चला कि वह जो सब कर रहे हैं यह गलत है तब उनके उद्धार के लिए ही गुरु नानक देव जी नर्मदा किनारे ग्वारीघाट आए थे. यही पर उनके साथ शास्त्रार्थ किया था.

Guru Nanak Jayanti
गुरुनानक जयंती

जहां पड़े गुरू नानक जी के चरण वहां है आज गुरूद्वारा

जिस जगह पर कभी गुरु नानक देव जी रुके थे, आज वहां पर सिख संप्रदाय के प्रत्यन के चलते भव्य गुरुद्वारा बना दिया गया है. यह गुरुद्वारा गुरु नानक देव की स्मृति सहेजे हुए सिख समुदाय की आस्था का बड़ा केंद्र बन गया है. इतिहासकारों के मुताबिक 1507 ईसवीं में गुरु नानक देव ने विश्व में ज्ञान की अलख जगाने और अकाल पुरख की सर्वभोम सत्ता स्थापित करने के लिए देश देशांतर यात्राएं आरंभ की थी. इस क्रम में उन्होंने उपमहाद्वीप सहित अरब देश, मक्का, बगदाद, चीन, काबुल सहित भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्राएं की थी. इन यात्राओं को उदासी नाम दिया गया था.

Guru Nanak Dev Ji Maharaj
गुरुनानक देव जी महाराज

ये भी पढ़ें: इंदौर में इस स्थान पर रुके थे गुरु नानक देव जी, पढ़िए उनके चमत्कार

ग्वारीघाट की यात्रा

गुरु नानक देव जी की कुल 4 उदासियों में से अंतिम उदासी से लौटते समय दक्षिण भारत से नांदेड, नासिक होते हुए खंडवा ओंकारेश्वर इंदौर पहुंचे. वहां से नर्मदा के किनारे- किनारे होते हुए वह ग्वारीघाट जिसे के वर्तमान में जबलपुर कहा जाता है. वहां आए थे, यह प्राकृतिक स्थल गुरु नानक देव को इतना भाया कि वह अपने भाई मरदाना के साथ कई दिनों तक यही पर विश्राम किया. फिर आगे की यात्रा आरंभ की.

Gurudwara along Narmada coast
नर्मदा तट के किनारे गुरुद्वारा

कोड़े भील का भी यहीं हुआ था उद्धार

कहा जाता है कि आंध्रप्रदेश से जबलपुर आते समय भाई मरदाना बहुत थक गए थे, घर से निकले हुए भी उन्हें बहुत दिन हो चुके थे. लिहाजा उन्हें घर की याद सताने लगी. गुरु नानक देव जी से मरदाना ने आज्ञा मांगी और घनघोर जंगलों के रास्ते अपने घर की ओर चल दिए. राह में कोड़े भील नाम के दुर्दांत दस्यु के बिछाए जाल में मरदाना फंस गए, दुर्दांत दस्यु ने उन्हें पेड़ से बांध दिया. कोड़े के बारे में विख्यात था कि वह जंगल के राहगीरों को खा जाता था. भयभीत होकर भाई मरदाना ने गुरु नानक देव जी को आवाज लगाई तब गुरुदेव भी तत्काल वहां पहुंचे और उन्हें बंधन मुक्त किया. उन्होंने अपनी मधुर वाणी से कोड़े को सन्मार्ग में चलने की प्रेरणा दी और उसका भी उद्धार हुआ.

Gurunana Dev Ji Maharaj with Bhai Mardana
गुरुनाना देव जी महाराज भाई मरदाना के साथ

प्रशासन की गाइडलाइन के तहत बड़ा कार्यक्रम नहीं

स्थानीय निवासी बताते हैं कि नर्मदा तट के किनारे बने इस गुरुद्वारे में दर्शन मात्र से ही शांति मिलती है. क्योंकि इस जगह की काफी महत्ता है. यह तपो भूमि गुरूनानक देव की भी है और यहां बड़े-बड़े ऋषियों ने भी तप किया है. वहीं इस बार प्रशासन की गाइडलाइन के तहत बड़ा कार्यक्रम नहीं हो रहा है.

कोरोना काल में नहीं रही भीड़

गुरुद्वारा में आमतौर पर गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के समय तमाम गुरुद्वारों में उनके भक्तों की भारी भीड़ रहती थी. लेकिन कोरोना वायरस के चलते प्रशासन ने इस बार लंगर और भीड़ की अनुमति नहीं दी. जिस वजह से प्रकाश पर्व थोड़ा फीका नजर आ रहा है.

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