जबलपुर। 5 जुलाई रविवार को गुरू पूर्णिमा मनाया जा रहा है. इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है. इस दिन शिष्य अपने गुरू की उपासना करते हैं और गुरू को यथाशक्ति दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र आदि भेंट करते हैं, लेकिन कोरोना का असर इस पर्व पर भी पड़ रहा है. इसी के चलते अधिकतर जगहों पर गुरू पूर्णिमा उत्सव ऑनलाइन मनाया जा रहा है.
जबलपुर के धर्मगुरूओं ने शिष्यों से अपील की है कि गुरू के दर्शन और पूजन ऑनलाइन ही करें क्योंकि कोरोना वायरस के संकट काल में गुरू और शिष्य दोनों ही निकट आने से परेशानी में पड़ सकते हैं.
गौ संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वर आनंद गिरि महाराज ने एक वीडियो जारी कर शिष्यों से अपील की है कि गुरू पूर्णिमा के दिन मंदिर में न आएं, बल्कि सावन के सोमवार पर भी पूजा-पाठ घर पर ही करें, पार्थिव शिवलिंग बनाएं और उनकी पूजा करें, इस बार मंदिरों पूजा न करें.
रविवार के दिन भी जबलपुर में लॉकडाउन है, ऐसी स्थिति में प्रशासन भी निर्देश जारी किया है कि कोई भी घर से बाहर न निकले, जिसे भी पूजा-पाठ करना है वो घरों में करें या ऑनलाइन करें. लिहाजा इस बार गुरू पूर्णिमा उत्सव कोरोना की वजह से गुरू शिष्य परंपरा के लिए फीका रहने वाला है.
गुरु पूर्णिमा का पौराणिक महत्व क्या है?
विभिन्न हिन्दू पौराणिक वेदों के अनुसार गुरु को त्रिदेवों से भी सर्वोपरी बताया गया है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गुरु ही व्यक्ति को सही दिशा दिखलाता है और अपने शिष्य का मार्गदर्शन भी करता है. इस दिन को प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है. ऐसा भी माना जाता है कि गुरु के लिए शिष्यों की अपार श्रद्धा उस समय गुरु के लिए असली दक्षिणा होती थी. ऐसा भी देखा गया है कि इस दिन लोग पवित्र नदियों, कुंडों, तालाबों में स्नान करते हैं और दान-दक्षिणा भी देते हैं.