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न जीवन-न मरण, फिर भी यहां की गलियों में बिखरी हैं सुभद्रा कुमारी चौहान की यादें - story of subhadra kumari chauhan

सुभद्रा कुमारी चौहान के देहांत के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा जबलपुर में लगवाई थी, ये प्रतिमा इटली से बनवाकर लाई गई थी. हालांकि अब न तो इस प्रतिमा के बारे में लोग जानते हैं और न ही इस लेखिका से जुड़ी कहानियां जबलपुर के लोगों को याद हैं. फिलहाल सुभद्रा कुमारी चौहान के पर पोते ईशान चौहान उनकी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद कर रहे हैं.

सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रतिमा
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Published : Jul 1, 2019, 8:45 PM IST

जबलपुर। बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी... वीर रस से भरी सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता लगभग सभी ने पढ़ी होगी, पर शायद कम ही लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि ये कविता जबलपुर में लिखी गई थी. जिसकी यादें आज भी इस शहर में बिखरी पड़ी हैं.

जानकारी देते हुए ईशान चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म भले ही इलाहाबाद में हुआ था, लेकिन उनकी कर्मभूमि जबलपुर रही है. 1919 में उनका विवाह खंडवा के लक्ष्मण सिंह से हुआ था और शादी के बाद ये परिवार जबलपुर में बस गया था.


जबलपुर के राइट टाउन में सुभद्रा कुमारी चौहान का घर था, अब इस घर में उनकी तीसरी पीढ़ी रहती है अभी भी उस घर के कुछ हिस्से बाकी हैं. जहां कभी देश की एक महान कवियत्री कालजयी रचनाएं लिखा करती थी. उन दिनों जबलपुर एक बड़ा गांव हुआ करता था और महिलाओं को ऐसी आजादी नहीं थी कि वे खुलकर अपना जीवन जी सकें.


सुभद्रा जबलपुर की सड़कों पर साइकिल से आती जाती थीं. आंदोलनकारियों की बैठक लेना, आंदोलनों में भाग लेना, स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर उनका जुनून इस कदर था कि 1921 में वे जब मात्र 17 साल की थी, तब गांधीजी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेते हुए दो बार जबलपुर जेल में बंद रहीं. जबलपुर जेल में उनके नाम से आज भी एक बैरक है.


क्रांतिकारी करते थे बच्चों की परवरिश
1922 में जब गांधीजी ने सत्याग्रह की घोषणा की तो सुभद्रा पहली महिला सत्याग्रही बनीं, सुभद्रा के चार बच्चे थे, आंदोलनों में जाती थीं तो दूसरे क्रांतिकारी उनके बच्चों का लालन-पालन करते थे और आंदोलनों की वजह से अपने बच्चों को जितना समय देना चाहिए था, वह नहीं दे पाती थी. इसलिए उनकी कविताओं में बच्चों के प्रति प्रेम अलग दिखता है.


पुत्र के गंभीर चोट देख हुआ था हार्टअटैक
स्वतंत्रता के बाद सुभद्रा कुमारी चौहान जबलपुर से विधायक चुनी गई थीं और उन दिनों मध्य भारत की राजधानी नागपुर हुआ करती थी, यहीं से लौटते हुए सिवनी के पास एक एक्सीडेंट हुआ, जिसमें सुभद्रा के पुत्र को गंभीर चोट लगी थी, इन चोटों को देख कर सुभद्रा कुमारी सहन नहीं कर पाईं और यहीं पर हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई. आज भी नागपुर रोड पर उनकी समाधि बनी हुई है.

कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद-
सुभद्रा कुमारी चौहान के देहांत के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा जबलपुर में लगवाई थी, ये प्रतिमा इटली से बनवाकर लाई गई थी. हालांकि अब न तो इस प्रतिमा के बारे में लोग जानते हैं और न ही इस लेखिका से जुड़ी कहानियां जबलपुर के लोगों को याद हैं. फिलहाल सुभद्रा कुमारी चौहान के पर पोते ईशान चौहान उनकी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद कर रहे हैं.

जबलपुर। बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी... वीर रस से भरी सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता लगभग सभी ने पढ़ी होगी, पर शायद कम ही लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि ये कविता जबलपुर में लिखी गई थी. जिसकी यादें आज भी इस शहर में बिखरी पड़ी हैं.

जानकारी देते हुए ईशान चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म भले ही इलाहाबाद में हुआ था, लेकिन उनकी कर्मभूमि जबलपुर रही है. 1919 में उनका विवाह खंडवा के लक्ष्मण सिंह से हुआ था और शादी के बाद ये परिवार जबलपुर में बस गया था.


जबलपुर के राइट टाउन में सुभद्रा कुमारी चौहान का घर था, अब इस घर में उनकी तीसरी पीढ़ी रहती है अभी भी उस घर के कुछ हिस्से बाकी हैं. जहां कभी देश की एक महान कवियत्री कालजयी रचनाएं लिखा करती थी. उन दिनों जबलपुर एक बड़ा गांव हुआ करता था और महिलाओं को ऐसी आजादी नहीं थी कि वे खुलकर अपना जीवन जी सकें.


सुभद्रा जबलपुर की सड़कों पर साइकिल से आती जाती थीं. आंदोलनकारियों की बैठक लेना, आंदोलनों में भाग लेना, स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर उनका जुनून इस कदर था कि 1921 में वे जब मात्र 17 साल की थी, तब गांधीजी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेते हुए दो बार जबलपुर जेल में बंद रहीं. जबलपुर जेल में उनके नाम से आज भी एक बैरक है.


क्रांतिकारी करते थे बच्चों की परवरिश
1922 में जब गांधीजी ने सत्याग्रह की घोषणा की तो सुभद्रा पहली महिला सत्याग्रही बनीं, सुभद्रा के चार बच्चे थे, आंदोलनों में जाती थीं तो दूसरे क्रांतिकारी उनके बच्चों का लालन-पालन करते थे और आंदोलनों की वजह से अपने बच्चों को जितना समय देना चाहिए था, वह नहीं दे पाती थी. इसलिए उनकी कविताओं में बच्चों के प्रति प्रेम अलग दिखता है.


पुत्र के गंभीर चोट देख हुआ था हार्टअटैक
स्वतंत्रता के बाद सुभद्रा कुमारी चौहान जबलपुर से विधायक चुनी गई थीं और उन दिनों मध्य भारत की राजधानी नागपुर हुआ करती थी, यहीं से लौटते हुए सिवनी के पास एक एक्सीडेंट हुआ, जिसमें सुभद्रा के पुत्र को गंभीर चोट लगी थी, इन चोटों को देख कर सुभद्रा कुमारी सहन नहीं कर पाईं और यहीं पर हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई. आज भी नागपुर रोड पर उनकी समाधि बनी हुई है.

कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद-
सुभद्रा कुमारी चौहान के देहांत के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा जबलपुर में लगवाई थी, ये प्रतिमा इटली से बनवाकर लाई गई थी. हालांकि अब न तो इस प्रतिमा के बारे में लोग जानते हैं और न ही इस लेखिका से जुड़ी कहानियां जबलपुर के लोगों को याद हैं. फिलहाल सुभद्रा कुमारी चौहान के पर पोते ईशान चौहान उनकी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद कर रहे हैं.

Intro:वीर रस की कविता झांसी की रानी जबलपुर में लिखी गई थी सुभद्रा कुमारी चौहान की कर्मभूमि था जबलपुर में आज भी उनकी यादें बिखरी पड़ी हैं


Body:जबलपुर
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में फिर से आई नई जवानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
चमक उठी सन 57 में व तलवार पुरानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

शादी के बाद जबलपुर आई थी सुभद्रा

कम ही लोगों को यह जानकारी होगी की झांसी की रानी की यह कविता जबलपुर में लिखी गई थी स्कूल के दिनों में हमने अपने पाठ्यक्रम में इन पंक्तियों को पड़ा था इन पंक्तियों को सुनकर दो तस्वीरें उभरती हैं एक तो झांसी की रानी की और दूसरी सुभद्रा कुमारी चौहान की सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म तो इलाहाबाद में हुआ था लेकिन उनकी कर्मभूमि जबलपुर रही है सुभद्रा कुमारी चौहान का विवाह खंडवा के लक्ष्मण सिंह से हुआ था और शादी के बाद यह परिवार जबलपुर आ गया था 1919 में सुभद्रा कुमारी चौहान की शादी हुई थी

जबलपुर जेल मैं दो बार रही सुभद्रा कुमारी चौहान

जबलपुर के राइट टाउन में सुभद्रा कुमारी चौहान का घर था अब इस घर में उनकी तीसरी पीढ़ी रहती है अभी भी उस घर के कुछ हिस्से बाकी हैं जहां कभी देश की एक महान कवियत्री कालजई रचनाएं लिखा करती थी उन दिनों जबलपुर एक बड़ा गांव हुआ करता था और महिलाओं को ऐसी आजादी नहीं थी कि वे खुलकर अपना जीवन जी सकें लेकिन विद्रोही सुभद्रा कहां मानने वाली थी जबलपुर सुभद्रा जबलपुर की सड़कों पर साइकिल से आती जाती थी आंदोलनकारियों की बैठक लेना आंदोलनों में भाग लेना स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर उनका जुनून इस कदर था कि 1921 में वे जब मात्र 17 साल की थी तब गांधीजी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेते हुए दो बार जबलपुर जेल में बंद रही जबलपुर जेल में उनके नाम से आज भी एक बैरक है

क्रांतिकारी करते थे बच्चों की परवरिश

1922 में जब गांधी जी ने झंडा सत्याग्रह की घोषणा की तो सुभद्रा पहली महिला सत्याग्रही बनी सुभद्रा के चार बच्चे थे आंदोलनों में जाती थी तो दूसरे क्रांतिकारी उनके बच्चों का लालन-पालन करते थे और आंदोलनों की वजह से अपने बच्चों को जितना समय देना चाहिए था वह नहीं दे पाई इसलिए उनकी कविताओं में बच्चों के प्रति प्रेम अलग दिखता है

सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं

सुभद्रा कुमारी चौहान का पहला काव्य संग्रह मुकुल 1930 में प्रकाशित हुआ था उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में
झांसी की रानी
जलिया वाले बाग में बसंत
यह कदंब का पेड़
कोयल
मेरा जीवन
मुरझाया फूल
आराधना
वेदना
प्रतीक्षा
स्वदेश के प्रेम
प्रभु तुम मेरे मन की जानु
सभा का खेल
विदाई

सुभद्रा कुमारी चौहान न सिर्फ वीर रस की कवित्री थी बल्कि उन्होंने तीन कहानी संग्रह भी लिखे जिनमें बिखरे मोती उन्मादनी
सीधे-साधे चित्र कविता संग्रह मुकुल और त्रि धारा

देहावसान

स्वतंत्रता के बाद सुभद्रा कुमारी चौहान जबलपुर से विधायक चुनी गई और उन दिनों मध्य भारत की राजधानी नागपुर हुआ करती थी यहीं से लौटते हुए सिवनी के पास एक एक्सीडेंट हुआ जिसमें सुभद्रा के पुत्र को गंभीर चोट लगी इन चोटों को देख कर कवि ह्रदय मां सुभद्रा कुमारी चौहान सहन नहीं कर पाए और यहीं पर हार्टअटैक से उनकी मृत्यु हो गई आज भी नागपुर रोड पर वह जो है उनकी समाधि बनी हुई है

सुभद्रा कुमारी चौहान के देहांत के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा जबलपुर नगर निगम में लगवाई थी यह प्रतिमा इटली से बन कर आई थी हालांकि अब ना तो इस प्रतिमा के बारे में लोग जानते हैं और ना ही इस कालजई लेखिका से जुड़ी कहानियां जबलपुर के लोगों को याद है


Conclusion:सुभद्रा कुमारी चौहान के पर पोते ईशान चौहान उनकी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद कर रहे हैं

बाइट ईशान चौहान पर पोते सुभद्रा कुमारी चौहान
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