जबलपुर। बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी... वीर रस से भरी सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता लगभग सभी ने पढ़ी होगी, पर शायद कम ही लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि ये कविता जबलपुर में लिखी गई थी. जिसकी यादें आज भी इस शहर में बिखरी पड़ी हैं.
जबलपुर के राइट टाउन में सुभद्रा कुमारी चौहान का घर था, अब इस घर में उनकी तीसरी पीढ़ी रहती है अभी भी उस घर के कुछ हिस्से बाकी हैं. जहां कभी देश की एक महान कवियत्री कालजयी रचनाएं लिखा करती थी. उन दिनों जबलपुर एक बड़ा गांव हुआ करता था और महिलाओं को ऐसी आजादी नहीं थी कि वे खुलकर अपना जीवन जी सकें.
सुभद्रा जबलपुर की सड़कों पर साइकिल से आती जाती थीं. आंदोलनकारियों की बैठक लेना, आंदोलनों में भाग लेना, स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर उनका जुनून इस कदर था कि 1921 में वे जब मात्र 17 साल की थी, तब गांधीजी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेते हुए दो बार जबलपुर जेल में बंद रहीं. जबलपुर जेल में उनके नाम से आज भी एक बैरक है.
क्रांतिकारी करते थे बच्चों की परवरिश
1922 में जब गांधीजी ने सत्याग्रह की घोषणा की तो सुभद्रा पहली महिला सत्याग्रही बनीं, सुभद्रा के चार बच्चे थे, आंदोलनों में जाती थीं तो दूसरे क्रांतिकारी उनके बच्चों का लालन-पालन करते थे और आंदोलनों की वजह से अपने बच्चों को जितना समय देना चाहिए था, वह नहीं दे पाती थी. इसलिए उनकी कविताओं में बच्चों के प्रति प्रेम अलग दिखता है.
पुत्र के गंभीर चोट देख हुआ था हार्टअटैक
स्वतंत्रता के बाद सुभद्रा कुमारी चौहान जबलपुर से विधायक चुनी गई थीं और उन दिनों मध्य भारत की राजधानी नागपुर हुआ करती थी, यहीं से लौटते हुए सिवनी के पास एक एक्सीडेंट हुआ, जिसमें सुभद्रा के पुत्र को गंभीर चोट लगी थी, इन चोटों को देख कर सुभद्रा कुमारी सहन नहीं कर पाईं और यहीं पर हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई. आज भी नागपुर रोड पर उनकी समाधि बनी हुई है.
कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद-
सुभद्रा कुमारी चौहान के देहांत के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा जबलपुर में लगवाई थी, ये प्रतिमा इटली से बनवाकर लाई गई थी. हालांकि अब न तो इस प्रतिमा के बारे में लोग जानते हैं और न ही इस लेखिका से जुड़ी कहानियां जबलपुर के लोगों को याद हैं. फिलहाल सुभद्रा कुमारी चौहान के पर पोते ईशान चौहान उनकी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद कर रहे हैं.