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जबलपुर में बुंदेली कलाकृतियों वाली दुर्गा प्रतिमाओं का है चलन, अद्भुत आभूषणों से होता है मां का शृंगार

जबलपुर में बुंदेली कलाकृतियों वाली दुर्गा प्रतिमाएं काफी प्रचलित हैं. बताया जाता है कि, यहां बीते 100 सालों से इन्हें रखने का चलन चला आ रहा है. हालांकि कोरोना वायरस की वजह से इस साल पिछले साल की अपेक्षा कम पंडाल लगाए गए हैं.

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Published : Oct 23, 2020, 2:01 PM IST

जबलपुर। शारदीय नवरात्रि में आदि शक्ति के नौ रुपों की उपासना होती है. जहां भक्त नौ दिन तक मां दुर्गा की भक्ति में लीन रहते हैं. इस बार कोरोना के कहर ने त्योहार की चमक फीकी कर दी है. कोरोना काल में सरकार ने भले ही दुर्गा पंडाल सजाने की अनुमति दे दी हो, लेकिन कोरोना के डर से शहर में कम ही पंडाल देखने को मिल रहे हैं. जबलपुर में बुंदेली कलाकृतियों वाली दुर्गा प्रतिमाएं काफी प्रचलित हैं. बताया जाता है कि, यहां बीते 100 सालों से इन्हें रखने का चलन चला आ रहा है. हालांकि कोरोना वायरस की वजह से इस साल पिछले साल की अपेक्षा कम पंडाल लगाए गए हैं.

बुंदेली कलाकृतियों वाली दुर्गा प्रतिमा

जबलपुर में दुर्गा पंडाल रखने की परंपरा अंग्रेजों के समय की है. ऐसा कहा जाता है कि, जबलपुर में सबसे पहले बंगाली परिवारों ने बंगाली क्लब में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की थी, शहर के दूसरे लोगों को इन प्रतिमाओं को देखने का मौका नहीं मिलाता था. इससे नाराज होकर जबलपुर के लोगों ने भी अपने पंडाल रखने शुरू कर दिए और इस परंपरा को लगभग 100 साल हो गए हैं. इसी दौरान जबलपुर के कारीगरों ने अनोखी शैली से दुर्गा प्रतिमाएं बनाई, ये मूर्तियां बंगाली मूर्तियों से पूरी तरह से अलग थी. तब से बुंदेलखंडी शैली की इन प्रतिमाओं का चलन चला आ रहा है, आज भी ये प्रतिमा है बुंदेली कला का अद्भुत नमूना हैं.

अद्भुत आभूषणों से होता है मां दुर्गा का श्रृंगार

100 साल पहले जिस तरीके से प्रतिमाओं को ठेठ बुंदेलखंडी अंदाज में सजाया गया था. आज भी इन प्रतिमाओं को लगभग वैसे ही सजाया और संवारा जा रहा है. इन प्रतिमाओं में बुंदेलखंड के इस इलाके में उस जमाने में चलन में रहे जेवर लगभग उसी तरीके से बनाकर दुर्गा प्रतिमाओं में सजाए जाते हैं. ऐसे जेवर जिनके अब नाम ही बचे हैं. यह चलन से पूरी तरह बाहर हो गए हैं. मूर्तिकार टोडल, बगअंता, बिछिया, गजरा जैसे अद्भुत आभूषणों से मां दुर्गा का शृंगार करते हैं. हालांकि यहां भी कोरोना वायरस का असर स्पष्ट नजर आया. जबलपुर में बुंदेली तरीके से बनाई हुई एक दर्जन प्रतिमाएं रखी जाती थीं, लेकिन अब मात्र 5 प्रतिमाएं ही बनाई गई हैं. जिन्हें पंडालों में सजाया जाएगा, बाकी मूर्तियां प्रदेश के दूसरे इलाकों में भेजी जा रही हैं. वहीं कारीगरों का कहना है कि, उन्होंने आधे से कम दाम में इन प्रतिमाओं को बेचा है, क्योंकि खरीददार ही नहीं मिल रहे थे.

जबलपुर। शारदीय नवरात्रि में आदि शक्ति के नौ रुपों की उपासना होती है. जहां भक्त नौ दिन तक मां दुर्गा की भक्ति में लीन रहते हैं. इस बार कोरोना के कहर ने त्योहार की चमक फीकी कर दी है. कोरोना काल में सरकार ने भले ही दुर्गा पंडाल सजाने की अनुमति दे दी हो, लेकिन कोरोना के डर से शहर में कम ही पंडाल देखने को मिल रहे हैं. जबलपुर में बुंदेली कलाकृतियों वाली दुर्गा प्रतिमाएं काफी प्रचलित हैं. बताया जाता है कि, यहां बीते 100 सालों से इन्हें रखने का चलन चला आ रहा है. हालांकि कोरोना वायरस की वजह से इस साल पिछले साल की अपेक्षा कम पंडाल लगाए गए हैं.

बुंदेली कलाकृतियों वाली दुर्गा प्रतिमा

जबलपुर में दुर्गा पंडाल रखने की परंपरा अंग्रेजों के समय की है. ऐसा कहा जाता है कि, जबलपुर में सबसे पहले बंगाली परिवारों ने बंगाली क्लब में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की थी, शहर के दूसरे लोगों को इन प्रतिमाओं को देखने का मौका नहीं मिलाता था. इससे नाराज होकर जबलपुर के लोगों ने भी अपने पंडाल रखने शुरू कर दिए और इस परंपरा को लगभग 100 साल हो गए हैं. इसी दौरान जबलपुर के कारीगरों ने अनोखी शैली से दुर्गा प्रतिमाएं बनाई, ये मूर्तियां बंगाली मूर्तियों से पूरी तरह से अलग थी. तब से बुंदेलखंडी शैली की इन प्रतिमाओं का चलन चला आ रहा है, आज भी ये प्रतिमा है बुंदेली कला का अद्भुत नमूना हैं.

अद्भुत आभूषणों से होता है मां दुर्गा का श्रृंगार

100 साल पहले जिस तरीके से प्रतिमाओं को ठेठ बुंदेलखंडी अंदाज में सजाया गया था. आज भी इन प्रतिमाओं को लगभग वैसे ही सजाया और संवारा जा रहा है. इन प्रतिमाओं में बुंदेलखंड के इस इलाके में उस जमाने में चलन में रहे जेवर लगभग उसी तरीके से बनाकर दुर्गा प्रतिमाओं में सजाए जाते हैं. ऐसे जेवर जिनके अब नाम ही बचे हैं. यह चलन से पूरी तरह बाहर हो गए हैं. मूर्तिकार टोडल, बगअंता, बिछिया, गजरा जैसे अद्भुत आभूषणों से मां दुर्गा का शृंगार करते हैं. हालांकि यहां भी कोरोना वायरस का असर स्पष्ट नजर आया. जबलपुर में बुंदेली तरीके से बनाई हुई एक दर्जन प्रतिमाएं रखी जाती थीं, लेकिन अब मात्र 5 प्रतिमाएं ही बनाई गई हैं. जिन्हें पंडालों में सजाया जाएगा, बाकी मूर्तियां प्रदेश के दूसरे इलाकों में भेजी जा रही हैं. वहीं कारीगरों का कहना है कि, उन्होंने आधे से कम दाम में इन प्रतिमाओं को बेचा है, क्योंकि खरीददार ही नहीं मिल रहे थे.

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