जबलपुर। जिले में होने वाली दिव्यांग प्रीमियर लीग में दिव्यांग क्रिकेटर्स के शानदार क्रिकेट को देखकर आपको किसी मशहूर शायर की 2 लाइनें जरूर याद आएगी. मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है. मध्यप्रदेश दिव्यांग क्रिकेट टीम के क्रिकेटर्स के जीवन की अनोखी कहानियां है.
राहुल कुशवाहा: राहुल कुशवाहा छतरपुर के रहने वाले हैं, बचपन में इन्हें तेज बुखार आया तो डॉक्टर ने एक गलत इंजेक्शन लगा दिया. इंजेक्शन के तुरंत बाद इनका पैर खराब हो गया, तब से राहुल दिव्यांग हैं, लेकिन राहुल को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था. अच्छी बात यह थी की इनके कमजोर पैर के बावजूद इनके साथी इन्हें गली क्रिकेट खिलाते थे. राहुल बताते हैं कि ड्यूस बॉल से ही खेलते थे. उनकी जरूरत के हिसाब के पैसे नहीं मिलते थे. इसलिए वे लकड़ी के पैड लगाकर क्रिकेट खेलते थे, लेकिन उन्होंने कभी अपने जुनून को खत्म नहीं होने दिया. लाचारी की जिंदगी से निकलकर राहुल कुशवाहा मध्यप्रदेश दिव्यांग क्रिकेट टीम के सदस्य हैं. उनकी वजह से छतरपुर का भी नाम रोशन हुआ है. राहुल का कहना है कि उन्होंने मध्यप्रदेश के लिए देश के कई बड़े शहरों में क्रिकेट खेला है. हालांकि यह क्रिकेट उनकी आर्थिक परिस्थिति नहीं सुधार पाई. वह अपने जीवन यापन के लिए सिलाई मशीन चलाते हैं और कपड़े सिलते हैं. राहुल का कहना है कि यदि दिव्यांगों के लिए भी आईपीएल जैसे टूर्नामेंट होने लगे तो हम लोगों की भी परिस्थिति सुधर सकती है.
रामबरन यादव: रामबरन यादव ग्वालियर के रहने वाले हैं. इनकी उम्र 28 साल के लगभग हैं. रामबरन बचपन में एक शादी समारोह में गरम जलेबी की चाशनी में गिर गए थे. इसकी वजह से इनके दोनों हाथ कोहनी तक खराब हो गए. यह ठीक तो हो गए, लेकिन हाथों में सामान्य संरचना नहीं बन पाई. इन्हें भी क्रिकेट खेलने का शौक था, लेकिन अपने कमजोर हाथों से इन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वे क्रिकेट खेल पाएंगे. क्रिकेट का शौक उन्हें मैदान तक खीच लाता था. रामबरन बाउंड्री पर बैठकर बाउंड्री के बाहर आने वाली गेंद को पकड़कर वापस मैदान में फेंकते थे. जब उन्होंने देखा कि वह गेंद फेंक सकते हैं, तो उन्होंने भी क्रिकेट खेलने का मन बनाया. इसके बाद उनका बल्ला ऐसा चला कि यह मध्यप्रदेश दिव्यांग क्रिकेट टीम के कैप्टन बन गए. अभी फिलहाल राष्ट्रीय दिव्यांग के टीम के सदस्य हैं और भारत के लगभग हर बड़े राज्य में इन्होंने क्रिकेट खेला है. जीवन यापन के लिए रामबरन दूध बेचते हैं, जो इनका पुश्तैनी कारोबार था. इनका दर्द यह है कि मध्य प्रदेश क्रिकेट टीम के कैप्टन होने के बाद भी इनकी दिव्यांगता की वजह से इनसे कोई लड़की शादी करने को तैयार नहीं है.
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ब्रजेश सिंह: ब्रजेश सिंह की उम्र अभी मात्र 21 साल है. यह बीते 1 साल से दिव्यांग क्रिकेट टीम के सदस्य हैं. इनके दोनों हाथ नहीं हैं. इनकी कहानी भी बड़ी दर्दनाक है. 11 साल की उम्र तक सब कुछ सामान्य था, लेकिन एक शादी समारोह में उन्होंने एक जलता हुआ पटाखा अपने हाथ में उठा लिया था. वह पटाखा उसके बाद फूट गया. घटना में ब्रजेश के दोनों हाथ चले गए और एक आंख फूट गई. शरीर के तीन महत्वपूर्ण अंग खराब होने के बाद ब्रजेश की जिंदगी कठिन हो गई, लेकिन हौसले पस्त नहीं हुए. ब्रजेश बहुत होनहार हैं, उन्होंने अब तक पीएससी की मेंस परीक्षा दो बार लिखी है. हालांकि अभी तक इंटरव्यू तक नहीं पहुंचे हैं, लेकिन उनका कहना है कि वह एक दिन मध्य प्रदेश संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को पास करके ही मानेंगे. दोनों हाथ नहीं है लेकिन इसके बावजूद क्रिकेट में महारत हासिल कर चुके हैं और गैंद को कैच कर सकते हैं, जो किसी चुनौती से कम नहीं है.
ऐसे लोगों पर गर्व है: जन्मजात विकलांगता या जीवन की कोई दुर्घटना आपके शरीर को कमजोर कर सकती है, लेकिन इन लोगों की कहानी समाज के उन सभी लोगों के लिए एक उदाहरण है. जो खुद को कमजोर समझते हैं और अपने सपनों को अपनी लाचारी का नाम देकर खत्म कर देते हैं. इसलिए आपके सपनों में जान है तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती.