जबलपुर। कोरोना संक्रमण की जब पहली लहर 2020 में आई थी, तब वैक्सीन नहीं बनी थी. ऐसे में संक्रमण से बचने के लिए आयुर्वेदिक दवाओं और घरेलू नुस्खे पर लोग आश्रित हो गए थे, इसी घरेलू नुस्खे में सबसे ऊपर थी हल्दी (turmeric). जिसका लोगों ने कोरोनो से बचने के लिए खूब उपयोग भी किया था. कोरोना की तीसरी लहर में अब एक बार पुनः हल्दी की मांग बढ़ गई है, जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्विद्यालय में कई प्रकार की हल्दियों पर शोध (research on 13 types of turmeric in Jawaharlal Nehru Agricultural University) चल रहा है.
13 किस्म की हल्दियों पर चल रहा है शोध
जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्विद्यालय में एमएससी फाइनल ईयर की छात्रा साक्षा अग्रवाल ने अपने शोध को ईटीवी भारत से साझा करते हुए बताया कि विश्विद्यालय में 13 किस्मों की हल्दियों पर काम चल रहा है, शोध के दौरान देखा जा रहा है कि उसका उत्पादन कितना होगा, कैसे होगा. साक्षा ने बताया कि (करक्यूमिन) हल्दी का रसायन है, जोकि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के काम आता है. कोरोना के समय हल्दी का बहुत ज्यादा प्रयोग हुआ था, ऐसे में अब ये शोध किया जा रहा हैं कि हल्दी की किस किस्म में कितना करक्यूमिन है.
हल्दी से तेल निकालने पर जल्द होगा शोध
जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University Jabalpur) में 13 किस्मों की हल्दी पर काम किया जा रहा है, इसमें मुख्यत: कड़पा, वियतनाम, काली, आमा, वायगाव, सेलम, सोनाली सहित 13 किस्मों पर काम किया जा रहा है. हल्दियों पर चल रहे शोध के बाद इन हल्दियों से तेल निकालने की प्रक्रिया पर भी जल्द ही शोध शुरू होगा, देखा जाएगा कि किस हल्दी में कितना तेल निकल रहा है और किस हल्दी में कितना करक्यूमिन है.
हल्दी की हर किस्म दूसरे से बिल्कुल अलग
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में छात्रों के साथ वैज्ञानिक भी लगातार हल्दी के नए किस्मों पर शोध कर रहे हैं, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मोनी थामस बताते हैं कि जिन 13 किस्मों की हल्दी पर अभी शोध (disease control research on 13 types of turmeric) चल रहा है. उसमें यह देखा जा रहा है कि हल्दी की कौन सी किस्म एक दूसरे से भिन्न है, साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि हल्दी में एंटीबायोटिक कितना है, थॉमस ने बताया कि विश्वविद्यालय में हल्दियों को जमीन में नहीं बल्कि बोरियों में लगाया गया है.