जबलपुर। मध्यप्रदेश की 28 सीटों में होने वाले उपचुनाव को लेकर भले ही सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशियों को टिकट देकर प्रचार किया हो, लेकिन टिकट देने में पार्टियों के लिए सबसे महत्यपूर्ण होती है जीत, जिसके हिसाब से पार्टियां टिकट देती है. लेकिन जनता के लिए जरूरी होता प्रत्याशी उसका व्यवहार और आचरण. इसके अलावा सबसे ज्यादा जरूरी होता है, प्रत्याशी का बैकग्राउंड, तो आइए जानते हैं, क्या है मध्य प्रदेश के प्रत्याशियों का आपराधिक रिकार्ड.
हाल ही में जिन 28 सीटों पर चुनाव हो रहे है उन सीटो में 18 फीसदी ऐसे प्रत्याशी हैं, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, वहीं 11 फीसदी ऐसे प्रत्याशी हैं, जिन पर गंभीर अपराध यानी हत्या, हत्या का प्रयास, रेप जैसे संगीन अपराध करने अथवा उनमें संलिप्त होने के मामले दर्ज हैं. एडीआर (Association for Democratic Reforms) ने मध्यप्रदेश की 28 सीट पर होने वाले उपचुनाव में खड़े हुए राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों का बायोडेटा निकाला है, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. एडीआर के रिपोर्ट के मुताबिक
पार्टीवार उम्मीदवारोंं पर दर्ज आपराधिक मामले
एडीआर के रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस 50 प्रतिशत उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, वहीं बीजेपी के 43 तो सपा, बसपा के 29-29 प्रतिशत उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. जबकि निर्दलीय मैदान में उतरे प्रत्याशियों में केवल 9 प्रतिशत उम्मीदवारों पर ही आपराधिक मामले दर्ज हैं.
दल | कुल प्रत्याशी | आपराधिक बैकग्राउंड वाले उम्मीदवार | प्रतिशत |
बीजेपी | 28 | 12 | 43 |
कांग्रेस | 28 | 14 | 50 |
बीएसपी | 28 | 08 | 29 |
सपा | 14 | 04 | 29 |
निर्दलीय | 178 | 16 | 09 |
आरटीआई एक्टिविस्ट ने की मांग
आरटीआई एक्टिविस्ट मनीष शर्मा ने मांग की है चुनाव आयोग को इस ओर ध्यान देना आवश्यक है कि जो प्रत्यासी जनता का बहूमूल्य वोट पाकर विधानसभा तक पहुंचते है, उनकी छवि दागदार तो नही है. क्योंकि अगर आपराधिक लोगों के जीतने पर अंदेशा रहता है कि कहीं उसने अपने बाहूबल का उपयोग करके तो चुनाव नहीं जीता है. मनीष शर्मा बताते हैं कि उपचुनाव में खड़े हुए 355 प्रत्याशियों में से 63 यानी 18 फीसद नेता ऐसे है जिनके खिलाफ कई गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं.
पार्टीवार उम्मीदवारोंं पर दर्ज गंभीर अपराधिक मामले
एडीआर के रिपोर्ट के मुताबिक गंभीर अपराधिक दर्ज मामलों के प्रत्याशियों की संख्या को लेकर यहां बीजेपी कांग्रेस से आगे है. कांग्रेस के 8 उम्मीदवारों गंभीर आपराधिक दर्ज है, जबकी कांग्रेस के 6 प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं बसपा के 3 और सपा के 4 और 13 निर्दलियों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
दल | कुल प्रत्याशी | गंभीर आपराधिक बैकग्राउंड | प्रतिशत |
बीजेपी | 28 | 08 | 29 |
कांग्रेस | 28 | 06 | 21 |
बीएसपी | 28 | 03 | 11 |
सपा | 14 | 04 | 29 |
निर्दलीय | 178 | 13 | 07 |
एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया है कि बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टीयों में 40 से 50 प्रतिशत तक प्रत्याशी आपराधिक छवि वाले हैं, जिनके खिलाफ कई जघन्य अपराध दर्ज हैं. हालांकि इन प्रत्याशियों का अपने अपराध को छिपाने के लिए दावा होता है कि हमारा प्रकरण अभी न्यायालय में विचाराधीन हैं, और जब तक अपराध साबित नहीं हो जाता तब तक हमें अपराधी न माने. रिपोर्ट में सामने आया है कि हाल ही में होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस के 50 फीसदी तो भारतीय जनता पार्टी के 43 फीसदी ऐसे प्रत्याशी हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.
- उम्मीदवारों द्वारा घोषित आपराधिक मामले- 365 में से 63 (18 फीसदी) उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज.
- उम्मीदवारों के गंभीर आपराधिक मामले- उपचुनाव में खड़े 63 आपराधिक बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों में से 39 प्रत्याशी ऐसे हैं, जिनके खिलाफ गंभीर अपराध दर्ज हैं.
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं, होता है बाहूबलियों का दबदबा
राजनीतिक विश्लेषक चैतन्य भट्ट की माने तो अब चुनाव धनबल के बूते ही लड़ा जा रहा है. जनता की सेवा करने की अब कोई भी राजनीतिक दल को चिंता नहीं है, उनका यह एकमात्र उद्देश्य होता है सत्ता, जिसके लिए वो साम-दाम-दंड-भेद जितनी भी तरह की चीजें होती हैं, उसे आजमाते हैं. चैतन्य भट्ट ने कहा, आज पार्षद जैसे छोटे चुनाव में लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में एक आम आदमी जो अच्छी छवि का व्यक्ति है, वो राजनीति से दूर हो जाता है.
बता दें कि एडीआर (Association for Democratic Reforms) वह संस्था है, जो कि चुनाव में होने वाले कई तरह के गड़बड़ियां जैसे कि ईवीएम, प्रत्याशियों का अपराधिक रिकॉर्ड सहित कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुकी है. हालांकि अभी तक किसी भी मामले में निर्णय सामने नहीं आया है. बहरहाल, देखना यह होगा कि आगामी तीन नवंबर को होने वाले मतदान में जनता इतने आपराधिक उम्मीदवारों में से किस को कितना समर्थन देते हैं.