जबलपुर। आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 73वीं पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. गांधी जी आजादी की लड़ाई के महानायक थे. उन्होंने हर हिंदुस्तानी के दिल में अंग्रेजों से लड़ने का जज्बा पैदा किया था. इसीलिए उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा भी मिला. 30 जनवरी, 1948 को उनकी हत्या के बाद उनकी चिता की राख और अस्थियां देश की अलग-अलग नदियों में विसर्जित की गई थी. जहां-जहां अस्थियां विसर्सित की गईं, वहां उनकी याद में बापू स्मारक भी बनाए गए. जबलपुर में भी तिलवारा घाट में उनकी अस्थियां विसर्जित की गईं थी. आज के दिन राजनेता और अफसर गांधी जी को याद तो करते हैं, लेकिन तिलवारा में उस स्थान पर बने बापू स्मारक की सुध कोई नहीं लेता है.
- दो दशक बाद ही बिगड़ गई बापू के स्मारक की हालत
जबलपुर के धनंजय शर्मा बताते है कि, यह सम्मान की बात है कि तिलवारा में गांधी जी की अस्थियां विसर्जित करके यहां स्मारक बनाया गया था. इस स्थान से हमेशा सत्य और अहिंसा का संदेश मिलता है. उन्हें अफसोस है कि करीब दो दशक पहले तक यह स्मारक अच्छी हालात में रहा, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे इसकी हालत बिगड़ती गई. गांधी स्मारक के सुधार के लिए केंद्र और राज्य सरकार को भी शिकायत भेजी गईं लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ.
- तिलवारा घाट में तिलक ने विशाल जनसमूह को किया था संबोधित
तिलवारा घाट को गंगा जितना ही पवित्र माना जाता है. यहां हर साल लाखों श्रद्धालू डुबकी लगाते हैं. तिलवारा घाट पर 1939 में लोकमान्य तिलक ने एक विशाल जनसमूह को संबोधित भी किया था. तब से इस स्थान को तिलक भूमि के नाम से भी जाना जाता है. इसके अलावा राजनीति के क्षेत्र से जुड़ी कई बड़ी हस्तियों ने भी इस स्थान का भ्रमण किया है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.
- ब्यौहार जी के परिवार में रुके थे गांधी जी
गांधी जी 3 दिसंबर 1933 को जबलपुर आए थे. इससे पहले भी एक बार वे यहां आ चुके थे. जब वे दूसरी बार यहां आए तो इस दौरान हरिजन और छुआछूत आंदोलन जोरों पर था. समस्या के निराकरण के लिए वे महादेव भाई देसाई और कनु गांधी के साथ आए थे. इस दौरान वे सांठिया कुआं स्थित ब्यौहार राजेंद्र सिंह के घर पर ठहरे थे. पूरे शहर में अब भी ब्यौहार जी का परिवार गांधी के नाम से ही पहचाना जाता है.
जब बापू की अस्थियों को शहर लाया गया तो, दूर-दूर से लोग राख को स्पर्श करने और अंतिम दर्शन के लिए बैलगाडि़यों में सवार होकर पहुंचे थे. चार बार संस्कारधानी आ चुके बापू का सपना भी यही था कि उनकी अस्थियां भी संस्कारधानी के सुपुर्द की जाए.