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Rani Durgavati:आदिवासी वोट बैंक के लिए सियासी घोषणाएं,स्कूली सिलेबस को सिर्फ इंतजार, आइए- हम बताते हैं उनके शौर्य व पराक्रम की पूरी गाथा - आदिवासी वोट के लिए रानी दुर्गावती

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में आदिवासी वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए सत्ता पक्ष बीजेपी ने रानी दुर्गावती का सहारा लिया है. रानी दुर्गावती शौर्य व पराक्रम की मूर्ति थीं. आदिवासियों के बीच रानी दुर्गावती का नाम काफी सम्मान से लिया जाता है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने बीते 4 शासनकाल के दौरान कई बार कह चुके हैं कि रानी दुर्गावती की जीवनी स्कूली सिलेबस में शामिल किया जाएगा. लेकिन अभी तक ये कोरी घोषणा ही साबित हुई है. आइए जानते हैं-रानी दुर्गावती के शौर्य व पराक्रम की पूरा गाथा.

Biography of Rani Durgavati
रानी दुर्गावती पर केवल सियासी घोषणाएं, स्कूली सिलेबस को सिर्फ इंतजार
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Published : Jun 24, 2023, 1:33 PM IST

रानी दुर्गावती पर केवल सियासी घोषणाएं, स्कूली सिलेबस को सिर्फ इंतजार

जबलपुर। आज 24 जून को रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने पहले शासन काल से अब तक अपने भाषण में इस बात का जिक्र करते हैं कि रानी दुर्गावती की कहानी बच्चों को सुनाई जानी चाहिए. लेकिन अब तक यह कहानी मध्यप्रदेश के स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल नहीं हुई. मध्य भारत की सबसे प्रतापी महिला रानी दुर्गावती की कहानी, एक कहानी नहीं है बल्कि यह शौर्य और पराक्रम का ऐसा उदाहरण है, जिसे सुनकर किसी को भी जोश आ जाए. इतिहासकारों का कहना है कि गौंड राजाओं का इतिहास भारत के दूसरे राजाओं जैसा नहीं लिखा गया. लेकिन अलग-अलग किताबों में इसका थोड़ा उल्लेख है. जिसके आधार पर यह पता लगता है कि रानी दुर्गावती भारत की महान निडर और साहसी रानियों में से एक थीं.

चंदेल राजा की बेटी थी रानी दुर्गावती : रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के कालिंजर रियासत में राजा कीरत सिंह चंदेल के घर हुआ था. रानी दुर्गावती राजपूत चंदेल वंश की लड़की थी. दुर्गावती अपने पिता कीरत सिंह को राजकाज करने में पूरी मदद करती थीं और वह एक अच्छी योद्धा भी थीं. गोंडवाना साम्राज्य में उस समय राजा संग्राम शाह का शासन था. गोंडवाना साम्राज्य कालिंजर रियासत से सटा हुआ था. उस जमाने में राजा दूसरे राज्य के राजघरानों पर विशेष नजर रखते थे. संग्राम शाह गोंडवाना साम्राज्य के अब तक के सबसे प्रतापी राजा थे. इसलिए कीरत सिंह और संग्राम शाह ने मिलकर संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह की शादी दुर्गावती के साथ करवाई. हालांकि इसके पहले कि इन दोनों की शादी हो पाती, संग्राम शाह की मौत हो गई. संग्राम शाह की मौत के बाद दलपत शाह भी ज्यादा दिनों तक नहीं रहे. दलपत शाह का भी बीमारी के चलते निधन हो गया. उस समय रानी महज 24 साल की ही थीं. उनका 1 साल का बेटा वीरनारायण उनके साथ था.

16 साल तक किया राज : 24 साल की उम्र में रानी दुर्गावती विधवा हो गईं और गोंडवाना साम्राज्य की पूरी कमान उनके हाथ में आ गई. उनके पिता कीरत सिंह पहले ही शेरशाह सूरी को मारने के बाद शहीद हो गए थे. इसलिए कालिंजर से लेकर पूरे गोंडवाना साम्राज्य की कमान इस 24 साल की महिला के हाथ में थी. रानी दुर्गावती ने तय किया कि वे जबलपुर को अपनी राजधानी बनाएंगी. जिसे उनके ससुर संग्राम शाह ने विकसित किया था. मध्य भारत में गोंडवाना साम्राज्य में रानी दुर्गावती ने अपने मंत्रियों के साथ राजकाज शुरू किया. जबलपुर में गढ़ा और कटंगा के बीच में पूरा नगर विकसित किया गया.

जबलपुर में 52 तालाब बनवाए : लोगों के उपयोग के लिए शहरभर में बावड़ियां बनाई गई थीं, जो आज भी खुदाई के दौरान मिलती हैं. उनमें से कुछ ठीक-ठाक स्थिति में हैं और कुछ बर्बाद हो गईं. रानी के मंत्री आधार सिंह के नाम से जबलपुर का आधारताल खोदा गया था. रानी की सहेली के नाम से चेरीताल बनाया गया. इस तरह से शहर के अलग-अलग 52 ताल-तालाब बनाए गए. गोंडवाना साम्राज्य 52 गढ़ों में बटा हुआ था, जो मालवा से शुरू होकर महाराष्ट्र और मध्य भारत से शुरू होकर उत्तर प्रदेश तक जाते थे. इन सबकी राजधानी जबलपुर हुआ करती थी.

सेना में 2 हजार हाथी : इतिहासकार बताते हैं कि रानी दुर्गावती व्यापार करने में भी बहुत चतुर थीं. उन्होंने गोंडवाना साम्राज्य के हजारों गांवों में एक सी कर व्यवस्था लागू की थी, जिसमें कुल फसल का एक तिहाई राज्य को देना होता था और इसके एवज में राज्य उन लोगों को सुरक्षा देता था. रानी के पास में दो हजार हाथी थे. हाथी रानी की फौज में तो शामिल थे ही. इनके साथ ही इनका व्यापार भी किया जाता था. यहां से राजा हाथी खरीद कर ले जाते थे. रानी ने अपनी टकसाल बनाकर रखी थी, जिसमें सोने और चांदी की मोहर चला करती थी. उस समय रानी के पास टैक्स के रूप में पर्याप्त पैसा आता था.

रानी ने बाज बहादुर को खदेड़ा : रानी दुर्गावती ने अपने जीवन काल में 52 युद्ध लड़े. इसमें सबसे बड़ी शिकस्त उन्होंने बाज बहादुर को दी थी. बाज बहादुर मांडू के पास का मुगल शासक था और उसे पता था कि गोंडवाना राज में एक महिला राज कर रही है और उसको संरक्षण देने वाला भी कोई पुरुष नहीं है. रानी दुर्गावती को लेकर भी उसकी सोच गंदी थी. रानी ने बाज बहादुर को ना केवल हराया बल्कि राजस्थान की सीमा तक 300 किलोमीटर दौड़ाया. इस घटना के बाद से बाज बहादुर का पता नहीं लगा. बाज बहादुर के बाद इस रियासत पर अकबर ने अपनी दाई मां के लड़के आसिफ खान को राज करने के लिए भेज दिया. रानी ने भी इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई, क्योंकि वह राज्य जबलपुर से काफी दूर था. लेकिन बाद में आर्थिक रूप से पनपने वाले गोंडवाना साम्राज्य पर मुगल शासकों की निगाह भी टेढ़ी हो गई. कुछ दिनों बाद आसिफ खान ने रानी दुर्गावती पर 5 बार हमले किए और पांचों बार उसे हार का मुंह देखना पड़ा.

रानी के सहयोगी ने की गद्दारी : छठवीं बार जब आसिफ खान जबलपुर आया तब रानी दुर्गावती के पास तोप गाड़ी चलाने की सुविधा नहीं थी. इसलिए रानी ने अपनी रणनीति के अनुसार आसिफ खान को जंगल में फंसाने की रणनीति बनाई. रानी धीरे-धीरे लड़ाई में पीछे हटती गईं आसिफ खान को लग रहा था कि रानी हार की वजह से पीछे हट रही हैं. लेकिन उस समय के गुण योद्धा जंगल में छुपकर वार करने में सक्षम थे. इसलिए आसिफ खान को नदी के पास जंगलों में फंसाने की चाल थी. लेकिन इसी दौरान रानी की सेना में शामिल बदन सिंह नाम के एक सहयोगी ने गद्दारी की और आसिफ खान को रानी की योजना के बारे में बता दिया. इसके बाद रानी की लड़ाई कमजोर हो गई.

पानी में फंस गई रानी : ऐसा कहा जाता है कि नरई में एक बांध को फोड़ दिया गया था, जिसमें पानी आ जाने की वजह से नाले में रानी फंस गईं. जब रानी को लगा कि अब वह नहीं बच सकती तो उन्होंने अपने सेनापति आधार सिंह से कहा कि वह तलवार से उसे खत्म कर दें. लेकिन आधार सिंह बुंदेला इसके लिए तैयार नहीं थे और उन्होंने रानी से कहा कि यहां से भाग चलते हैं. लेकिन रानी दुर्गावती भागने को तैयार नहीं हुईं. इसके पहले कि मुगल उनके शरीर तक पहुंच पाते रानी ने खुद की कटार निकाल कर अपनी गर्दन काट दी और वे शहीद हो गईं.

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गोंडवाना का इतिहास अभी भी रहस्य : हैरानी की बात यह है कि ये कहानी जबलपुर के आसपास जन सुर्खियों में लंबे समय तक जिंदा रही. जिसे अकबर ने भी अपने इतिहासकारों से लिखवाया और बाद में जो अंग्रेज जबलपुर आए उन्होंने भी इसे अपनी किताबों में लिखा. गौंड शासनकाल में इतिहास नहीं लिखा गया. इन राजाओं का जो भी इतिहास मिलता है, वह दूसरे इतिहासकारों की किताबों में है. इसलिए गोंडवाना का इतिहास अभी तक सही तरीके से लिखा ही नहीं गया और यह रहस्य बना हुआ है. जबलपुर में मदन महल का किला रानी दुर्गावती का अंतिम ठिकाना था, जिसे उन्होंने अपने इस्तेमाल के लिए तैयार करवाया था. उस समय की घुड़साल और बावड़ी के साथ किला अभी भी ठीक-ठाक हालत में है.

रानी दुर्गावती पर केवल सियासी घोषणाएं, स्कूली सिलेबस को सिर्फ इंतजार

जबलपुर। आज 24 जून को रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने पहले शासन काल से अब तक अपने भाषण में इस बात का जिक्र करते हैं कि रानी दुर्गावती की कहानी बच्चों को सुनाई जानी चाहिए. लेकिन अब तक यह कहानी मध्यप्रदेश के स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल नहीं हुई. मध्य भारत की सबसे प्रतापी महिला रानी दुर्गावती की कहानी, एक कहानी नहीं है बल्कि यह शौर्य और पराक्रम का ऐसा उदाहरण है, जिसे सुनकर किसी को भी जोश आ जाए. इतिहासकारों का कहना है कि गौंड राजाओं का इतिहास भारत के दूसरे राजाओं जैसा नहीं लिखा गया. लेकिन अलग-अलग किताबों में इसका थोड़ा उल्लेख है. जिसके आधार पर यह पता लगता है कि रानी दुर्गावती भारत की महान निडर और साहसी रानियों में से एक थीं.

चंदेल राजा की बेटी थी रानी दुर्गावती : रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के कालिंजर रियासत में राजा कीरत सिंह चंदेल के घर हुआ था. रानी दुर्गावती राजपूत चंदेल वंश की लड़की थी. दुर्गावती अपने पिता कीरत सिंह को राजकाज करने में पूरी मदद करती थीं और वह एक अच्छी योद्धा भी थीं. गोंडवाना साम्राज्य में उस समय राजा संग्राम शाह का शासन था. गोंडवाना साम्राज्य कालिंजर रियासत से सटा हुआ था. उस जमाने में राजा दूसरे राज्य के राजघरानों पर विशेष नजर रखते थे. संग्राम शाह गोंडवाना साम्राज्य के अब तक के सबसे प्रतापी राजा थे. इसलिए कीरत सिंह और संग्राम शाह ने मिलकर संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह की शादी दुर्गावती के साथ करवाई. हालांकि इसके पहले कि इन दोनों की शादी हो पाती, संग्राम शाह की मौत हो गई. संग्राम शाह की मौत के बाद दलपत शाह भी ज्यादा दिनों तक नहीं रहे. दलपत शाह का भी बीमारी के चलते निधन हो गया. उस समय रानी महज 24 साल की ही थीं. उनका 1 साल का बेटा वीरनारायण उनके साथ था.

16 साल तक किया राज : 24 साल की उम्र में रानी दुर्गावती विधवा हो गईं और गोंडवाना साम्राज्य की पूरी कमान उनके हाथ में आ गई. उनके पिता कीरत सिंह पहले ही शेरशाह सूरी को मारने के बाद शहीद हो गए थे. इसलिए कालिंजर से लेकर पूरे गोंडवाना साम्राज्य की कमान इस 24 साल की महिला के हाथ में थी. रानी दुर्गावती ने तय किया कि वे जबलपुर को अपनी राजधानी बनाएंगी. जिसे उनके ससुर संग्राम शाह ने विकसित किया था. मध्य भारत में गोंडवाना साम्राज्य में रानी दुर्गावती ने अपने मंत्रियों के साथ राजकाज शुरू किया. जबलपुर में गढ़ा और कटंगा के बीच में पूरा नगर विकसित किया गया.

जबलपुर में 52 तालाब बनवाए : लोगों के उपयोग के लिए शहरभर में बावड़ियां बनाई गई थीं, जो आज भी खुदाई के दौरान मिलती हैं. उनमें से कुछ ठीक-ठाक स्थिति में हैं और कुछ बर्बाद हो गईं. रानी के मंत्री आधार सिंह के नाम से जबलपुर का आधारताल खोदा गया था. रानी की सहेली के नाम से चेरीताल बनाया गया. इस तरह से शहर के अलग-अलग 52 ताल-तालाब बनाए गए. गोंडवाना साम्राज्य 52 गढ़ों में बटा हुआ था, जो मालवा से शुरू होकर महाराष्ट्र और मध्य भारत से शुरू होकर उत्तर प्रदेश तक जाते थे. इन सबकी राजधानी जबलपुर हुआ करती थी.

सेना में 2 हजार हाथी : इतिहासकार बताते हैं कि रानी दुर्गावती व्यापार करने में भी बहुत चतुर थीं. उन्होंने गोंडवाना साम्राज्य के हजारों गांवों में एक सी कर व्यवस्था लागू की थी, जिसमें कुल फसल का एक तिहाई राज्य को देना होता था और इसके एवज में राज्य उन लोगों को सुरक्षा देता था. रानी के पास में दो हजार हाथी थे. हाथी रानी की फौज में तो शामिल थे ही. इनके साथ ही इनका व्यापार भी किया जाता था. यहां से राजा हाथी खरीद कर ले जाते थे. रानी ने अपनी टकसाल बनाकर रखी थी, जिसमें सोने और चांदी की मोहर चला करती थी. उस समय रानी के पास टैक्स के रूप में पर्याप्त पैसा आता था.

रानी ने बाज बहादुर को खदेड़ा : रानी दुर्गावती ने अपने जीवन काल में 52 युद्ध लड़े. इसमें सबसे बड़ी शिकस्त उन्होंने बाज बहादुर को दी थी. बाज बहादुर मांडू के पास का मुगल शासक था और उसे पता था कि गोंडवाना राज में एक महिला राज कर रही है और उसको संरक्षण देने वाला भी कोई पुरुष नहीं है. रानी दुर्गावती को लेकर भी उसकी सोच गंदी थी. रानी ने बाज बहादुर को ना केवल हराया बल्कि राजस्थान की सीमा तक 300 किलोमीटर दौड़ाया. इस घटना के बाद से बाज बहादुर का पता नहीं लगा. बाज बहादुर के बाद इस रियासत पर अकबर ने अपनी दाई मां के लड़के आसिफ खान को राज करने के लिए भेज दिया. रानी ने भी इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई, क्योंकि वह राज्य जबलपुर से काफी दूर था. लेकिन बाद में आर्थिक रूप से पनपने वाले गोंडवाना साम्राज्य पर मुगल शासकों की निगाह भी टेढ़ी हो गई. कुछ दिनों बाद आसिफ खान ने रानी दुर्गावती पर 5 बार हमले किए और पांचों बार उसे हार का मुंह देखना पड़ा.

रानी के सहयोगी ने की गद्दारी : छठवीं बार जब आसिफ खान जबलपुर आया तब रानी दुर्गावती के पास तोप गाड़ी चलाने की सुविधा नहीं थी. इसलिए रानी ने अपनी रणनीति के अनुसार आसिफ खान को जंगल में फंसाने की रणनीति बनाई. रानी धीरे-धीरे लड़ाई में पीछे हटती गईं आसिफ खान को लग रहा था कि रानी हार की वजह से पीछे हट रही हैं. लेकिन उस समय के गुण योद्धा जंगल में छुपकर वार करने में सक्षम थे. इसलिए आसिफ खान को नदी के पास जंगलों में फंसाने की चाल थी. लेकिन इसी दौरान रानी की सेना में शामिल बदन सिंह नाम के एक सहयोगी ने गद्दारी की और आसिफ खान को रानी की योजना के बारे में बता दिया. इसके बाद रानी की लड़ाई कमजोर हो गई.

पानी में फंस गई रानी : ऐसा कहा जाता है कि नरई में एक बांध को फोड़ दिया गया था, जिसमें पानी आ जाने की वजह से नाले में रानी फंस गईं. जब रानी को लगा कि अब वह नहीं बच सकती तो उन्होंने अपने सेनापति आधार सिंह से कहा कि वह तलवार से उसे खत्म कर दें. लेकिन आधार सिंह बुंदेला इसके लिए तैयार नहीं थे और उन्होंने रानी से कहा कि यहां से भाग चलते हैं. लेकिन रानी दुर्गावती भागने को तैयार नहीं हुईं. इसके पहले कि मुगल उनके शरीर तक पहुंच पाते रानी ने खुद की कटार निकाल कर अपनी गर्दन काट दी और वे शहीद हो गईं.

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गोंडवाना का इतिहास अभी भी रहस्य : हैरानी की बात यह है कि ये कहानी जबलपुर के आसपास जन सुर्खियों में लंबे समय तक जिंदा रही. जिसे अकबर ने भी अपने इतिहासकारों से लिखवाया और बाद में जो अंग्रेज जबलपुर आए उन्होंने भी इसे अपनी किताबों में लिखा. गौंड शासनकाल में इतिहास नहीं लिखा गया. इन राजाओं का जो भी इतिहास मिलता है, वह दूसरे इतिहासकारों की किताबों में है. इसलिए गोंडवाना का इतिहास अभी तक सही तरीके से लिखा ही नहीं गया और यह रहस्य बना हुआ है. जबलपुर में मदन महल का किला रानी दुर्गावती का अंतिम ठिकाना था, जिसे उन्होंने अपने इस्तेमाल के लिए तैयार करवाया था. उस समय की घुड़साल और बावड़ी के साथ किला अभी भी ठीक-ठाक हालत में है.

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