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पारंपरिक जल स्त्रोतों पर प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान, भू-जल स्तर प्रदूषित

जबलपुर के कई इलाकों में महज 20 फीट की गहराई पर पानी खोजा जा सकता है. इन सब का राज कहीं न कहीं जबलपुर में मौजूद बावड़ियां को जाता है.

Dry well
सूखा हुआ कुआं
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Published : Jun 7, 2020, 9:28 AM IST

जबलपुर। एक ओर गर्मी के सीजन में प्रदेश के कई इलाके जल संकट से जूझने लगते हैं तो वहीं जबलपुरवासियों को कभी भी भूमिगत जल की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. जबलपुर के कई इलाके में महज 20 फीट की गहराई पर पानी खोजा जा सकता है. इन सब का राज कहीं न कहीं जबलपुर में मौजूद बावड़ियों को जाता है जो हर साल बारिश की एक-एक बूंद को संजोकर भूजल को बढ़ा देती हैं.

पारंपरिक जल स्त्रोतों पर प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान

गोंडवाना काल में 400 साल पहले जबलपुर में कई बावड़ियां बनवाई गईं थीं इनमें से ज्यादातर में मिट्टी भर के उनके ऊपर घर बना दिए गए हैं लेकिन कुछ बावड़ियों अभी भी ठीक-ठाक हालत में हैं. पूरे शहर में सैकड़ों बावड़ियों का जिक्र सुनने में मिलता है. ऐसी ही एक बावड़ी है जिसे कोष्टा बावड़ी के नाम से जाना जाता है. शहर के गड़ा मोहल्ले के रामकृष्ण मंदिर के पीछे यह यह बावड़ी आज भी साढे़ 400 साल पुरानी होने के बाद भी अपने पुराने स्वरूप में जिंदा है.

बावड़ी के ठीक सामने रहने वाले जय कोस्टा बताते हैं कि अब बावड़ी के पानी का इस्तेमाल कोई नहीं करता है. एक बार इसे खाली भी करवाया गया इसकी सफाई भी करवाई गई इसमें नीचे तक सीढ़ियां हैं लेकिन जैसे ही यह दोबारा भरी तो इसमें गंदा पानी आया इसलिए जब पानी ही गंदा है तो उसका इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है. जबलपुर में पानी के दूसरे स्रोत कुए हुआ करते थे और हमने शहर के पुराने इलाकों में जाकर देखा है तो हर घर में एक कुआं हुआ करता था कुछ जगहों पर सार्वजनिक कुएं भी थे जबलपुर के तो कुछ मोहल्लों के नाम भी कुआं के नाम पर हैं.

शहर में कई बावड़ियों और कुएं का है वजूद

सरकारी कुआं, साठिया कुआं यह सब अब मोहल्ले हो गए हैं. इनमें कुआं के नाम पर गंदे पानी से भरा हुआ एक बड़ा सा टैंक बचा है. जबलपुर के पंचमट्ठा मंदिर आज से लगभग 500 साल पहले बनाए गए थे. मंदिर आज भी ठीक-ठाक हालत में हैं इनके प्रांगण में कुआं है. कुएं में मात्र 10 फीट पर पानी है. लेकिन इस पानी का इस्तेमाल अब कोई नहीं करता है.

जबलपुर। एक ओर गर्मी के सीजन में प्रदेश के कई इलाके जल संकट से जूझने लगते हैं तो वहीं जबलपुरवासियों को कभी भी भूमिगत जल की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. जबलपुर के कई इलाके में महज 20 फीट की गहराई पर पानी खोजा जा सकता है. इन सब का राज कहीं न कहीं जबलपुर में मौजूद बावड़ियों को जाता है जो हर साल बारिश की एक-एक बूंद को संजोकर भूजल को बढ़ा देती हैं.

पारंपरिक जल स्त्रोतों पर प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान

गोंडवाना काल में 400 साल पहले जबलपुर में कई बावड़ियां बनवाई गईं थीं इनमें से ज्यादातर में मिट्टी भर के उनके ऊपर घर बना दिए गए हैं लेकिन कुछ बावड़ियों अभी भी ठीक-ठाक हालत में हैं. पूरे शहर में सैकड़ों बावड़ियों का जिक्र सुनने में मिलता है. ऐसी ही एक बावड़ी है जिसे कोष्टा बावड़ी के नाम से जाना जाता है. शहर के गड़ा मोहल्ले के रामकृष्ण मंदिर के पीछे यह यह बावड़ी आज भी साढे़ 400 साल पुरानी होने के बाद भी अपने पुराने स्वरूप में जिंदा है.

बावड़ी के ठीक सामने रहने वाले जय कोस्टा बताते हैं कि अब बावड़ी के पानी का इस्तेमाल कोई नहीं करता है. एक बार इसे खाली भी करवाया गया इसकी सफाई भी करवाई गई इसमें नीचे तक सीढ़ियां हैं लेकिन जैसे ही यह दोबारा भरी तो इसमें गंदा पानी आया इसलिए जब पानी ही गंदा है तो उसका इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है. जबलपुर में पानी के दूसरे स्रोत कुए हुआ करते थे और हमने शहर के पुराने इलाकों में जाकर देखा है तो हर घर में एक कुआं हुआ करता था कुछ जगहों पर सार्वजनिक कुएं भी थे जबलपुर के तो कुछ मोहल्लों के नाम भी कुआं के नाम पर हैं.

शहर में कई बावड़ियों और कुएं का है वजूद

सरकारी कुआं, साठिया कुआं यह सब अब मोहल्ले हो गए हैं. इनमें कुआं के नाम पर गंदे पानी से भरा हुआ एक बड़ा सा टैंक बचा है. जबलपुर के पंचमट्ठा मंदिर आज से लगभग 500 साल पहले बनाए गए थे. मंदिर आज भी ठीक-ठाक हालत में हैं इनके प्रांगण में कुआं है. कुएं में मात्र 10 फीट पर पानी है. लेकिन इस पानी का इस्तेमाल अब कोई नहीं करता है.

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