इंदौर। कहते हैं मां से बड़ा दुनिया में कोई हमदर्द, कोई मददगार और कोई हौसला देने वाला नहीं हो सकता. इसी मान्यता को साकार किया है दिव्यांग श्रेणी में पैर से कार चलाने के लिए देश के पहले लाइसेंस होल्डर विक्रम अग्निहोत्री ने. जिन्होंने अपने दोनों हाथ खो देने के बाद अपनी मां की मदद से वह सब कर गुजरने में महारथ हासिल कर रखी है जो सामान्य लोग भी हासिल नहीं कर पाते. इतना ही नहीं अपने बचपन से लेकर अपनी सफलता की कहानी में मां के त्याग और समर्पण को विक्रम ने अपने पैरों से लिखी अनूठी किताब में साकार किया है. संभवत प्रदेश में किसी दिव्यांग द्वारा अपने जीवन संघर्ष पर पैरों से लिखी गई पुस्तक है जो अपने हाथ नहीं होने की चुनौतियों से जूझने वाले दिव्यांगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है.
विक्रम की अनूठी किताब: Look Ma, No Hands नामक यह अनूठी किताब 7 साल के उस बच्चे की सफलता पर आधारित है जिसने बचपन में अपने दोनों हाथ खो देने के बाद भी जिंदगी के उन तमाम कार्यों को हाथ के बिना कर दिया, जिसके बारे में सोचना मुश्किल है. चाहे वह बिना हाथों के स्विमिंग पूल में तैरना हो, अपने तमाम घरेलू कामकाज हो या फिर मोबाइल चलाने से लेकर कार ड्राइव करने से लेकर कार रेसिंग में नंबर वन आना ही क्यों ना हो, दरअसल यह शख्स हैं इंदौर के विक्रम अग्निहोत्री हैं. जिन्होंने एक दुर्घटना में बचपन में ही अपने दोनों हाथ खो देने के बावजूद अपनी दिवंगत मां श्रीमती विजयलक्ष्मी अग्निहोत्री द्वारा बचपन से लेकर बड़े होने तक हौसला दिलाने से लेकर उन्हें आगे बढ़ाने में मां की तपस्या और त्याग को पुस्तक में सचित्र साकार किया है. आकर्षक इलस्ट्रेशन से सजी तूलिका पब्लिकेशन की इस किताब में खुद विक्रम अग्निहोत्री की मार्मिक कहानी है जो उन्होंने अपने पैरों से लिखी है.
विक्रम की दास्तां: पुस्तक में उल्लेख है कि जब वह 7 साल के थे तो रायगढ़ में अन्य तमाम बच्चों के साथ सामान्य रूप से तमाम खेलों के साथ कंचे खेलना, पतंग उड़ाने के शौक रखते थे लेकिन एक दिन अचानक अपने दोस्त के साथ छत से गुजर रहे तार पर झूलते हुए उनके दोनों हाथ हाईटेंशन लाइन के संपर्क में आ गए. लिहाजा बुरी तरह जख्मी विक्रम को उनकी मां ने संभाला, दोनों हाथ बुरी तरह जलने के कारण उन्हें रायगढ़ से तत्काल मुंबई करना पड़ा. मुंबई में करीब 3 महीने इलाज के बावजूद डॉक्टर उनके दोनों हाथों को बचा नहीं पाए. जले हुए हाथों को शरीर से अलग नहीं करने पर गैंग्रीन के संक्रमण के खतरे के मद्देनजर विक्रम के कंधों से दोनों हाथ काटने पड़े.
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हाथ कटे पर हौसला नहीं: दोनों हाथ कटने के बाद उन्हें अपनी जिंदगी का आगे का सफर बिना हाथों के ही तय करना था लेकिन अपनी मां की सतत देखभाल और हर पल मदद और हौसले के कारण उन्होंने जिंदगी को नए तरीके से जीना शुरु किया. हाथ नहीं होने के कारण मां ने उन्हें पैर से लिखना सिखाया. उन दिनों विक्रम पुस्तक में जिक्र करते हैं कि जब उनकी मां उनका बर्थडे मनाती थी तो वह अन्य दोस्तों के बीच अपना केक भी नहीं काट पाने के कारण खासे दुखी होते थे तो ऐसे तमाम कार्यों में उनकी मां उनका सबसे बड़ा सहारा साबित होती थी. उस दौरान खेल के समय भी उन्हें अन्य बच्चों के साथ खेलने के स्थान पर या तो रैफरी बनना होता था या फिर वह दूर से बैठकर अन्य बच्चों का खेल देख पाते थे लेकिन मेरी मां ने मेरी मनोस्थिति को हर-पल पर समझा हर दिन हर परेशानी में मां ने मुझे आत्मविश्वास से भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
स्कूल में दिए मौखिक परीक्षा: ऐसी ही स्थिति स्कूल जाते वक्त बनी जब परीक्षा में लिखने के स्थान पर कक्षा आठवीं तक उन्हें मौखिक एग्जाम देने पड़े लेकिन तब तक विक्रम अपने पैरों से लिखाई शुरू कर चुके थे. इसी दौरान स्विमिंग पूल में अन्य बच्चों को तैरते देख विक्रम भी तैरना चाहते थे लेकिन हाथ नहीं होने के कारण यह असंभव था लेकिन उनकी मां और भाई विवेक ने उन्हें हौसला दिलाते हुए बिना हाथों से अपनी निगरानी में कुछ ही महीनों में तैरना सिखाया उस दिन के बाद से विक्रम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
इंदौर के स्वच्छता एंबेसडर: विक्रम अग्निहोत्री आज इंदौर के स्वच्छता एंबेसडर और पहले ऐसे कार रेसर हैं जिन्हें भारत सरकार ने बाकायदा कार ड्राइविंग से लेकर रेसिंग कार रैली में अव्वल देने को लेकर कई खिताब दिए हैं. इतना ही नहीं अब वे देश भर के तमाम ऐसे दिव्यांग जिनके हाथ नहीं हैं उनके बीच रोल मॉडल बन कर उन्हें ड्राइविंग सिखाने के साथ लाइसेंस भी दिलाने में मदद कर रहे हैं. विक्रम अग्निहोत्री इंदौर के चर्चित बिजनेसमैन हैं जो अपने हौसले और कामकाज की बदौलत इंदौर की स्वच्छता के ब्रांड एंबेसडर भी हैं.