इंदौर। नगर निगम पालिका के वार्ड आरक्षण ने कई सियासी समीकरण बदल दिए हैं. वार्ड आरक्षण का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा के 14 और कांग्रेस के 6 प्रमुख नेताओं पर हुआ है, इन्हें अब अपना वार्ड छोड़कर दूसरे वार्ड में संभावनाएं तलाशनी होंगी या फिर संगठन के लिए काम करना होगा. लेकिन इसकी वजह से आने वाले दिनों में दोनों ही पार्टियों में आपसी खींचतान जरूर बढ़ेगी.
इंदौर नगर पालिका निगम के 85 वार्डों का आरक्षण हो चुका है, लेकिन इस वार्ड आरक्षण ने भाजपा और कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया है. इन नेताओं को या तो दूसरे वार्डों से चुनाव लड़ने की संभावनाएं तलाशना होंगी या फिर संगठन के लिए काम करना होगा.
इस बार हुए आरक्षण से सबसे बड़ा झटका इंदौर में भाजपा नेताओं को लगा है. वार्ड आरक्षण से भाजपा के 14 और कांग्रेस के छह प्रमुख वार्ड प्रभावित हो रहे हैं. इनमें कुछ नामों की बात की जाए तो भाजपा के पूर्व निगम सभापति और एमआईसी सदस्यों में से 10 पार्षद अपने वार्ड से चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. नगर निगम के पूर्व निगम सभापति को भी अपना वार्ड छोड़ना होगा. इसी तरह के हालात कांग्रेस में भी हैं. वार्ड आरक्षण में हुए बदलाव की वजह से कांग्रेस के बड़े नेताओं को अब अपने वार्डों से बाहर निकलना होगा. वार्ड आरक्षण का सबसे ज्यादा असर विधानसभा क्रमांक 1 के वार्डों में हुआ है. यहां 18 वार्ड में से 11 वार्ड सामान्य से पिछड़ा वार्ड हो चुके हैं.
फिलहाल वार्ड आरक्षण की वजह से कई प्रमुख वार्डों को निराशा हाथ लगी है, उन्हें दूसरी जगह पर संभावना तलाशना होगी या फिर घर बैठना पड़ेगा. लेकिन, प्रमुख चेहरा मैदान से बाहर होने से उन युवा चेहरों को ज्यादा फायदा होगा जो कई सालों से वार्डों में अपनी दावेदारी कर रहे हैं.