इंदौर। देवी अहिल्या की संपत्तियां बेंची जा रही हैं. देवी अहिल्या बाई के खासगी ट्रस्ट की देशभर में 28 स्थानों पर फैली धार्मिक संपत्तियों की बिक्री करीब एक दर्जन से ज्यादा स्थानों पर हो चुकी है. इन संपत्तियों को वापस शासन के अधीन लाने के लिए हाई कोर्ट के आदेश पर अधिग्रहण की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. इस बीच ट्रस्ट के उन कर्ता-धर्ता के खिलाफ भी राज्य सरकार कठोर कार्रवाई के मूड में है, जिन की पहल पर उक्त संपत्तियां बेच दी गई हैं या फिर लीज पर देकर खुर्द-बुर्द की गई हैं.
देवी अहिल्याबाई होळकर के खासगी ट्रस्ट के अधीन देश के 28 स्थानों पर 246 संपत्तियां हैं. जिनमें 138 मंदिर, 18 धर्मशालाएं, 34 घाट, 12 छतरियां, 24 बगीचे कुंड और बावड़ियां हैं. इन संपत्तियों में से अधिकांश वो संपत्तियां हैं, जिन पर या तो कब्जे जैसी स्थिति थी या फिर उनको लेकर निर्धारित नाम मात्र का किराया भी ट्रस्ट को प्राप्त नहीं हो पा रहा था. इसके अलावा ऐसी संपत्तियां जिनका मंदिरों की तुलना में धार्मिक महत्व नहीं था, उन्हें ट्रस्ट द्वारा 1984 से लेकर 2012 के बीच हुए, अलग-अलग सौदों में बेच दिया गया. जबकि शेष बची हुई संपत्तियों की जानकारी इंदौर संभाग आयुक्त कार्यालय द्वारा बमुश्किल तीसरे दिन EOW को उपलब्ध कराई गई है, लिहाजा अब EOW की टीम द्वारा ऐसी तमाम संपत्तियों का भौतिक सत्यापन और मौका मुआयना किया जाएगा.
ये संपत्तियां बेची गईं-
- राजस्थान के पुष्कर में सरकारी नोहरा मकान में बनी दुकानें, गणेश मंदिर की छत और इससे जुड़े अन्य परिसर
- रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर के पास की जमीन, काट बाग और हनुमान मंदिर के पास की जमीन
- खंडवा में स्थित गोहद पुरा बगीचे की 3 एकड़ जमीन
- हरिद्वार में स्थित कुशावर्त घाट के पास स्थित अतिरिक्त जमीन
- महाराष्ट्र के जेजुरी में बगीचे और मंदिरों के संचालन के लिए निर्धारित जमीनें
- इंदौर के पंढरीनाथ मंदिर के पास स्थित दुकानों पर कब्जा
- इसके अलावा खजराना गणेश मंदिर की जमीनों पर कब्जा और अवैध तरीके से बिक्री
- शनि मंदिर की जमीन भी अवैध तरीके से बेच दी गई
ये हैं संपत्तियों की बिक्री के सूत्रधार
ऊषा राजे होलकर
1962 में ऊषा राजे होळकर संपत्तियों की मुख्य ट्रस्टी चुनी गईं थीं. जिन्होंने देश के 28 स्थानों पर फैले संपत्तियों का मनमाफिक संचालन किया. प्रेस को संचालित करने के लिए करीब 300 से ज्यादा कर्मचारियों और अन्य व्यवस्थाओं के लिए आर्थिक प्रबंध किया, लेकिन जब ट्रस्ट की वित्तीय स्थिति गड़बड़ाई तो धार्मिक रूप से कम महत्व की संपत्तियों की बिक्री की. ऊषा राजे होळकर अभी भी ट्रस्ट की मुखिया हैं.
सतीश मल्होत्रा
सतीश मल्होत्रा ऊषा राजे के पति और होळकर परिवार द्वारा नामित खासगी ट्रस्ट के मुख्य कर्ताधर्ता हैं. इनके द्वारा ही उन संपत्तियों को चुना गया जो बेची जा सकती थीं. इनके द्वारा तय किए गए बगीचे, घाटों के पास स्थित अतिरिक्त जमीने और अन्य संपत्तियों को अपने अनुसार तय दरों पर बेचा गया.
रंजीत मल्होत्रा
रंजीत उषा राजे और सतीश मल्होत्रा के पुत्र हैं. रंजीत मल्होत्रा ट्रस्ट में परिवार की ओर से ही नामित होने के कारण संपत्तियों की बिक्री के भागीदार बने. इनकी लिखित सहमति संपत्तियों को बेचने के लिए हुए प्रस्तावों पर है.
बी पी सिंह, तत्कालीन संभाग आयुक्त और पूर्व सीएस
ट्रस्ट में राज्य शासन के मुख्य प्रतिनिधि के तौर पर शामिल थे, जब-जब संपत्तियां बेचने का मौका आया, इन्होंने दोनों प्रस्तावों पर अपनी ओर से भी बिक्री की सहमति दी. जबकि इन्हें संपत्तियों को बचाना और संरक्षित रखना था.
बी एन श्रीवास्तव
लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन सुप्रिडेंट इंजीनियर, जिन्हें संपत्तियों के प्रबंधन और बचाव के लिए ट्रस्ट में शामिल किया गया था, लेकिन इनके द्वारा संपत्ति बेचने के लिए ऊषा राजे के पति सतीश को अधिकृत किया गया. हालांकि अब इनका कहना है कि सौदों से उनका कोई लेना देना नहीं है.
एमपी श्रीवास्तव
केंद्र शासन के प्रतिनिधि के बतौर इन्हें ट्रस्ट की संपत्तियों की देखरेख करना था, लेकिन 1969 में इन्होंने ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टियों को संपत्ति बेचने की छूट दी, हालांकि अब एमपी श्रीवास्तव का निधन हो चुका है.