इंदौर। हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृतकों का श्राद्ध और पिंडदान करने से ही उनका मोक्ष होता है. लेकिन कोरोना के भीषण दौर का शिकार हुए ऐसे भी लोग है जिनकी मौत के बाद उनके परिजनों ने संक्रमण के डर से दाह संस्कार भी नहीं किया. इसके अलावा दर्जनों ऐसे हैं जिनका दाह संस्कार लावारिस मानकर कर दिया गया क्योंकि उनके परिजनों का कोई पता नहीं है. ऐसे तमाम लावारिस दिवंगतों को मोक्ष प्रदान कराने की पहल इंदौर की समाज सेविका भाग्यश्री ने की है. जिन्होंने कोरोना काल में मारे गए 51 लावारिस दिवंगतों का जूनी इंदौर मुक्तिधाम में विधि विधान से तर्पण और पिंड दान किया.
कोरोना काल में लोगों का सहारा बनीं भाग्यश्री
भाग्यश्री कोरोना काल में कई ऐसे बुजुर्गों का सहारा बनी थी, जिनके परिवार के लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया था. भाग्यश्री ने ऐसे लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाकर इलाज भी करवाया और जिनकी मौत हो जाने के बाद परिजनों ने अंतिम संस्कार तक से मना कर दिया, ऐसे मृतकों का अंतिम संस्कार भी भाग्यश्री ने किया था. सर्वपितृ अमावस्या के दिन भाग्यश्री ने ऐसे ही 51 दिवंगतों की की आत्मिक शांति के लिए तर्पण किया.
नर्मदा में विसर्जित की गई 51 मृतकों की अस्थियां
इस दौरान लावारिस मृतकों की अस्थियों को भी नर्मदा में विसर्जित करने के लिए भेजा गया. मौके पर मौजूद निगम कर्मचारी ने बताया कि कई लोग अपने परिजनों की अस्थियां नहीं ले गए. कोरोना काल के दौरान कई लोगों ने अंतिम संस्कार करने से भी मना कर दिया था. साथ ही इसमें कई ऐसे लोगों की अस्थियां भी है, जो लावारिस थे और उनके बारे में आज तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई. कुल मिलाकर 51 लोगों की अस्थियों को पूजन-पाठ के बाद नर्मदा में विसर्जित करने के लिए ले जाया गया.
भाग्यश्री ने तोड़ी समाज की धारणाएं
हिंदू मान्यताओं में प्राचीन दौर से ही अंतिम संस्कार की क्रियाएं पुरुष प्रधान मानी गई हैं. ऐसे में पुरुषों के द्वारा ही वारिस के रूप में अपने बुजुर्गों का अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन अब जबकि धीरे-धीरे यह मान्यता टूट रही है तो अधिकांश मामलों में ना केवल अंतिम संस्कार बल्कि तर्पण एवं पिंडदान भी बेटियां ही कर रही हैं. लावारिस मृतकों के परिजनों को खोज पाना बहुत मुश्किल था, ऐसी स्थिति में भाग्यश्री ने सभी का तर्पण किया.
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जब भाग्यश्री से इस बारे में पूछा गया, तो उनका कहना था कि "जन्म से कोई भी लावारिस नहीं होता. हर बच्चे को नारी ही जन्म देती है. ऐसी स्थिति में नारी अंतिम संस्कार की भी बराबर हकदार है, क्योंकि जो जन्म देती है वह मुक्ति भी दिला सकती है. इसी उद्देश्य को लेकर भाग्यश्री ने उन तमाम दिवंगत की अस्थियों के विसर्जन के साथ उनका तर्पण किया."