इंदौर। दिल्ली पुलिस ने इंदौर के न्यूयार्क सिटी में रहने वाले सॉफ्टवेयर डेवलपर (bulli bai app case indore) को हिरासत में लिया है. एप्लीकेशन को लेकर कई तरह की संभावनाएं भी व्यक्त की जा रही हैं. आइये साइबर एक्सपर्ट गौरव से जानते हैं दिल्ली पुलिस ने ओंकारेश्वर को कैसे गिरफ्तार किया और कैसे बनता है एप.
न्यूयॉर्क सिटी से गिरफ्तार किया ओंकारेश्वर
दिल्ली पुलिस ने बुल्ली बाई और सुल्ली डील्स के माध्यम से महिलाओं की खरीदी को लेकर फोटो वायरल (Sulli Deal App Mastermind Arrested from Indore) करने वाले और उससे जुड़े हुए कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है. एक गिरफ्तारी इंदौर से भी हुई है. जिस आरोपी ओंकारेश्वर को इंदौर के न्यूयॉर्क सिटी से गिरफ्तार किया है, वह एप डेवलपर था. उसी ने एप को डिजाइन किया था. उसे पूरी जानकारी थी कि एप किस लिए बनाया जा रहा है. इसके बाद भी उसने पुलिस को किसी तरह की कोई जानकारी नहीं दी.
काफी आसान है एप बनाना
एप को बनाना काफी आसान हो चुका है. कोई भी व्यक्ति किसी भी जगह से बैठकर एक अच्छे एप को डिजाइन कर सकता है. बीसीए सेकंड ईयर में ही पढ़ाई कर रहे छात्रों को आसानी से एक अच्छा एप बनाने की अच्छी खासी जानकारी हो जाती है. वह आसानी से एक अच्छा एप बना लेते हैं. एक एप को बनाने के लिए कुछ ज्यादा रुपए नहीं चुकाने पड़ते हैं. मात्र 15000 रुपये में ही एक एप तैयार हो जाता है. हालांकि सिक्योरिटी फीचर्स को लेकर बाद में पैसों की बढ़ोतरी होती रहती है.
एप डेवलपर को रहती है जानकारी
एक एप डेवलपर को एप में क्या मटेरियल रहेगा, इसके बारे में भी जानकारी रहती है. उसके बाद ही डेवलपर एप तैयार करता है. वहीं डेवलपर कंडीशन के मुताबिक उस में विभिन्न तरह की एरर के कोडिंग भी करता है. अलग-अलग तरह की समस्या आने पर उस एरर के माध्यम से जानकारी देती है. यदि सर्वर डाउन रहता है तो 404 नाम की एरर सामने आती है. इसी तरह से अलग-अलग एरर की लिए अलग-अलग कोडिंग की जाती है.
एक महीने में बन जाता है एप
एक एप को बनाने में मात्र 15 दिनों का समय लगता है. 15 दिन उस एप्लीकेशन की चेकिंग की जाती है. यदि इस दौरान किसी तरह की खामियां आती हैं, तो उन्हें सुधारा जाता है. उसके बाद ही उसे बाजार में बेचने के लिए उतारा जाता है. एप बनाने के लिए कई लोगों ने अलग-अलग कंपनियां खोल रखी हैं. ये उपभोक्ताओं को उनकी डिमांड के मुताबिक एप्लीकेशन बनाकर उपलब्ध करवाती हैं. उपभोक्ता की डिमांड पर कंपनी एप बनाती है और उसे उसके मटेरियल के बारे में सब जानकारी होती है.
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दिल्ली पुलिस इस पूरे रैकेट पर तकरीबन चार से छह महीनों से निगाह रख रही थी. आईपी ऐड्रेस कहीं और का होने के चलते पुलिस ठीक तरह से कार्रवाई नहीं कर पा रही थी. जब पुलिस को सही आईपी ऐड्रेस मिला तो पुलिस ने कार्रवाई करते हुए आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.