इंदौर। जिला कोर्ट में पिछले दिनों आग लग गई थी, आग लगने की सुचना पर दमकल की गाड़ी मौके पर पहुंची, लेकिन आग बुझाने में टिन सेड बाधा बन रहे थे, जिसके बाद दमकल के कर्मचारियों ने टिन शेड तोड़ा और कोर्ट परिसर में लगी आग पर काबू पाया. लेकिन इसी टिन शेड का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. इस टिन शेड में वकील बैठते थे, लिहाजा वकीलों के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज की गई है. जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी.
वकीलों के खिलाफ केस दर्ज
पुलिस ने वकीलों के खिलाफ सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, बलवा करने और जान से मारने की धमकी देने का केस दर्ज किया है. वहीं इस पूरे मामले में नजीर व्यास ने एमजी रोड थाने में वकील दौलतराम डुमोलिया, विशाल रामटेक, अशोक कचोलिया सदाशिव खंडारे ,संजू बघेल सहित दस अन्य वकीलों के खिलाफ केस दर्ज किया है. पुलिस ने धारा 147 बलवा, 353 सरकारी काम में बाधा, 294 गाली गलौज करना और 506 जान से मारने की धमकी देना, सहित भारतीय दंड संहिता की धारा और सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 की धारा 384 के तहत मामला दर्ज किया है. पुलिस का कहना है कि जल्द ही वकीलों की गिरफ्तारी भी की जाएगी.
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वकीलों ने की CBI से जांच कराने की मांग
कोर्ट की रिकॉर्ड शाखा के मुताबिक आगजनी के बाद आग बुझाने के लिए 12 से अधिक वकीलों के शेड तोड़ दिए गए थे. कोर्ट के इस रिकॉर्ड को लेकर वकीलों में गुस्सा है. वहीं अब वकीलों की ओर से इस आगजनी और शेड को तोड़ने के मामले की सीबीआई जांच की मांग उठ रही है. राज्य अधिवक्ता परिषद के नरेंद्र जैन ,जय हार्डिया, जिला बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव सौरभ मिश्रा और सीनियर एडवोकेट रोशन सोनकर ने इसे लेकर आंदोलन की बात भी कही है.
चीफ जस्टिस से की गई शिकायत
जिला कोर्ट परिसर में बने शेड के अंदर करीब ढाई सौ वकीलों के बैठने की जगह थी, जहां से टेबल हटा दी गई, जिससे वकील नाराज हैं, उन्होंने पूरे मामले की शिकायत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, नई दिल्ली और प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश जबलपुर कोर्ट में की है. एडवोकेट पंकज वाधवानी ने बताया कि 15 और 16 अप्रैल की रात में कोर्ट की मुख्य बिल्डिंग के आसपास के वकीलों के बैठने की जगह को बिना नोटिस जानकारी के चोरी छिपे रातों-रात शेड, टेबल-कुर्सियां हटा दी गई. माननीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश के निर्देश पर की गई कार्रवाई से शहर में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है. वकीलों का कहना है कि न्याय व्यवस्था के मुखिया ही न्याय के आधारभूत ढांचे का पालन नहीं करेंगे, तो शहर के लोग ऐसी न्यायिक व्यवस्था से क्या उम्मीद करेंगे.