इंदौर। कोविड से हो रही हजारों मौतों के बाद प्रदेश की जीवनदायिनी नदियों पर भी कोविड संक्रमण का संकट गहरा रहा है. इंदौर की शिप्रा नदी पर आलम यह है कि तमाम लॉकडाउन और पुलिस की सख्ती के बावजूद सैकड़ों लोग, यहां प्रतिदिन कोविड से मर रहे मरीजों का पिंडदान और तर्पण करने पहुंच रहे हैं. घाट पर स्थिति यह है कि संक्रमित और गैर संक्रमित तमाम लोग यहां पर मृतकों की अस्थियां, बाल, जूते, चप्पल और उनके कपड़ों तक का विसर्जन नदी के शुद्ध जल में कर रहे हैं. इसे लेकर सबसे चिंताजनक बात यह है कि इसी जल की सप्लाई देवास नगर निगम द्वारा पीने के पानी के बतौर शहर के लाखों लोगों को हो रही है. जिससे पानी के जरिए देवास में भी लाखों लोगों को संक्रमण फैलने का खतरा मंडरा रहा है.
शुद्ध पानी में मेडिकल उपकरण प्रवाहित
इन दिनों जिन लोगों की मौतें हो रही है. उनके परिवार में तर्पण और विसर्जन की परंपरा इन दिनों जाने अनजाने अन्य लाखों लोगों की जान से खिलवाड़ करके भी पूरी की जा रही हैं. इसकी बानगी है इंदौर-देवास के बीच शिप्रा तट के घाट जहां चुपचाप सुबह 3:00 बजे से लेकर 9:00 बजे तक लगातार पिंडदान किए जा रहे हैं. जिन घरों में मरीजों की मौत हो रही है, वह भी पॉजिटिव रहते हुए स्नान करने सामाजिक मान्यता के तहत चोरी छुपे शिप्रा नदी में डुबकी लगा रहे हैं. इस दौरान मान्यता के अनुसार लोग मृतक के कपड़े, जूते, फूल-मालाएं और दूसरी सामग्री नदी में ही छोड़कर लोग जा रहे हैं. इस सामग्री में संक्रमित मृतकों के कपड़ों और उपयोग की गई दवाओं के अलावा सैनिटाइजर और मास्क भी हैं, जिनसे मौके पर ही संक्रमण फैलने की आशंका जताई जा रही है.
दूषित पानी और फैलता संक्रमण
स्थानीय नागरिकों के मुताबिक बीते दिनों यहां प्रतिदिन 200 से ढाई सौ लोगों का तर्पण किया गया है. इसके अलावा मृतकों के कपड़े और अस्पताल की सारी सामग्री नदी में ही बहाई जा रही है. इतना ही नहीं मृतकों के मास्क और सैनिटाइजर से लेकर दवाइयां तक नदी के पानी में बहा दी गई हैं, जो लोग तर्पण करने पहुंच रहे हैं. उन्हें ना तो नदी की साफ सफाई की चिंता है. ना ही सोशल डिस्टेंसिंग और संक्रमण की, लिहाजा शिप्रा की करीब 5000 की आबादी वाले क्षेत्र में लोग संभावित संक्रमण को लेकर दहशत में हैं. इससे भी चौंकाने वाली स्थिति यह है कि शिप्रा के इसी प्रदूषित जल को नर्मदा क्षिप्रा लिंक प्रोजेक्ट के तहत पीने के पानी के बतौर देवास को बांटा जा रहा है. ऐसी स्थिति में दूषित पानी के जरिए देवास में भी संक्रमण फैलने की आशंका है.
अनुपयोगी सामग्री प्रवाहित पर कार्रवाई तय
अब जबकि ईटीवी भारत इस मामले का खुलासा कर रहा है तो नगर निगम की दलील है कि शिप्रा नदी का पानी ट्रीटमेंट के बाद ही शहर में सप्लाई किया जा रहा है नगर निगम के आयुक्त विशाल सिंह का कहना है कि नदी के घाट पर कोरोना काल में बड़ी संख्या में तर्पण हुए हैं लेकिन अब मौतें घटने से तर्पण भी कम हुए हैं जहां तक संक्रमित कपड़े अथवा सामग्री के विसर्जन का सवाल है तो वहां जिला पंचायत और नगर निगम द्वारा अब कर्मचारियों की तैनाती की जा रही है. जिससे कि नदी के जल को संक्रमण से बचाया जा सके. उन्होंने बताया कि जो भी अब नदी में अस्थियां और अन्य अनुपयोगी सामग्री प्रवाहित करता पाया जाएगा, उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी
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पानी की क्लीनिंग के बाद ही शहर में सप्लाई
15 लाख से ज्यादा की आबादी वाले देवास में पेयजल के रूप में शिप्रा नदी का पानी बांटा जा रहा है. यह पानी क्षिप्रा जल आवर्धन योजना के वाटर स्टोरेज पॉइंट से संपवेल तक पहुंचाया जाता है इसके बाद पानी की क्लीनिंग और जांच के बाद इसका शहर में वितरण किया जाता है. देवास नगर निगम के मुताबिक फिलहाल कहीं से भी दूषित पानी की शिकायत नहीं मिली है. लेकिन फिर भी संक्रमण की आशंका के चलते अब नदी में दूषित सामग्री डालने से लोगों को रोका जाएगा.
फिल्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद भी जीवित रहता है वायरस
मेडिकैप्स यूनिवर्सिटी के रिसर्च वायरोलॉजी विशेषज्ञ वैज्ञानिक डॉ. राम श्रीवास्तव के अनुसार. नगर निगम पानी को क्लीन करने के लिए जिस फिल्टर प्रक्रिया का सहारा लेती है. उसमें फिटकरी और क्लोरीन से पानी साफ किया जाता है. उन्होंने बताया फिटकरी से वायरस और बैक्टीरिया नहीं मरता है. इसके अलावा पानी में क्लोरीन मिलाने पर भी वायरस जिंदा रह सकता है. यदि कोरोना को नष्ट करने के लिए क्लोरीन की मात्रा पानी में बढ़ाई भी जाती है ऐसी स्थिति में क्लोरीन के कारण पानी पीने योग्य नहीं रहेगा. जहां तक शिप्रा नदी का सवाल है तो पानी के अधिक भंडारण के कारण फिलहाल वायरस का असर नहीं दिख रहा है. लेकिन फिर भी यह वायरस दूषित पानी के जरिए लोगों के लिए खतरा बन सकता है, इसके लिए फौरन प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है.
कलेक्टर सुस्ती में और जिला प्रशासन बेखबर
देवास जिले में कोरोना के नियंत्रण और संक्रमण रोकने की सबसे पहली जिम्मेदारी देवास जिला प्रशासन की है. लेकिन आज जब इस आशय की सूचना देवास कलेक्टर को देने का प्रयास किया गया तो पता चला कलेक्टर कोई भी अनजान नंबर का फोन रिसीव नहीं करते, इसके अलावा तब ईटीवी भारत की टीम कलेक्टर निवास पर पहुंची तो वहां तैनात सुरक्षा गार्डों ने बताया कि साहब लंच टाइम में खाना खाकर आराम कर रहे हैं. इसलिए उनसे किसी का भी संपर्क नहीं हो सकता, इसके बाद पूरे मामले की जानकारी नगर निगम आयुक्त को दी गई. जिन्होंने अब नदी को दूषित होने से बचाने की पहल की है.