इंदौर। आज देश भर में महात्मा गांधी की पुण्यतिथि मनाई जा रही है. इस अवसर पर गांधीवादी विचारक कीर्ति त्रिवेदी ने देश में खादी के संकट की ओर ध्यान खींचा है. सोमवार को इंदौर में कीर्ति त्रिवेदी ने कहा कि, देश के खादी भंडारों पर भी अब हाथ से बनी खादी मौजूद नहीं है. स्थिति यह है कि शुद्ध खादी गांधीवादी विचार रखने वालों को खादी पहनने को भी नहीं मिल रही है. उन्हें इस कारण पुराने कपड़े पहनने पड़ रहे हैं.
खादी हो गई विलुप्त: सोमवार को इंदौर में प्रेस से चर्चा के दौरान गांधीवादी विचारक कीर्ति त्रिवेदी ने दुख व्यक्त करते हुए कहा, "महात्मा गांधी देश में खादी के जरिए स्वरोजगार की व्यवस्था लाना चाहते थे. आजादी के 75 साल बाद उसी खादी का अस्तित्व खतरे में है. न खादी पहनने वालों को खादी मिल रही है और न ही स्वतंत्र खादी बुनकरों को खादी बेचने के लिए दुकान मिल पा रहा है. इसकी वजह है खादी ग्रामोद्योग और खादी भंडार ने प्रमाणित खादी रखना बंद कर दिया है. फिलहाल खादी भंडारों में कपड़ा मिलों की बनी खादी और पॉलिस्टर खादी रखी जा रही है. इन हालातों में करोड़ों खादी बुनकरों की आजीविका भी संकट में है".
असली खादी ग्रामोद्योग को नुकसान हो रहा: गांधी विचार प्रचारक कीर्ति त्रिवेदी ने कहा, "देश में पॉलिएस्टर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कपास उद्योग को कम किया जा रहा है. खादी को बढ़ावा देने के लिए जिन लोगों को टारगेट दिया गया है, वह खादी ग्राम उद्योग को बढ़ाने के बजाय मिल की खादी और पोलिस्टर खादी को बढ़ा रहे हैं. इससे असली खादी ग्रामोद्योग को नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा, खादी को विलुप्त होने के संकट से बचाने के लिए दो चीजों में बदलाव किया जाना चाहिए पहला, जो भी खाद्यी बनाए उसे खादी पहनने और उसे बेचने का अधिकार होना चाहिए. इसके अलावा खादी के मानीकरण कि जो प्रक्रिया है वह बहुत जटिल और महंगी कर दी गई है, उसे तुरंत हटा दिया जाना चाहिए. पहले हर कोई सूत कातकर खादी बनाता था, लेकिन अब 50 हजार रुपए की फीस 45 दिन का समय और ऑनलाइन आवेदन की प्रकिया यह आम खादी बनाने वाले लोग नहीं कर सकते हैं. इसलिए इस कानून में बदलाव जरूरी है, ताकि खादी ग्रामोद्योग को बचाया जा सके. खास बात ये है कि इसमें 25 लोगों का ग्रुप हो तभी खादी प्रमाणीकरण का प्रमाण पत्र मिलता है, जो गलत है."