इंदौर। देश के कई हिस्सों में तरह-तरह के मंदिर हैं, जिन की विभिन्न चमत्कारी मान्यताएं भी हैं, लेकिन इंदौर में एक ऐसा शिव मंदिर है, जिसके साथ कई चमत्कारी मान्यताएं तो जुड़ी ही हैं, साथ ही इस मंदिर का इंदौर से भी गहरा नाता है. इसी मंदिर के नाम पर शहर का नाम इंदौर रखा गया है. कहा जाता है कि भगवान इंद्र ने शहर के इस पहले मंदिर में पूजा की थी.
इंदौर के पंढरीनाथ में इंंद्रेश्वर शिव मंदिर करीब साढ़े 4 हजार साल पहले स्थापित हुआ था. पुजारी महेंद्र पुरी ने बताया कि उनकी 35 पीढ़ियां यहां सेवा कर चुकी हैं. मान्यता है कि भगवान को स्पर्श कर निकलने वाले जल को ग्रहण करने से कई बीमारियां दूर होती हैं. बारिश के लिए अभिषेक के बाद भगवान को जलमग्न करते हैं, इसलिए इंद्रेश्वर कहते हैं. इंद्रेश्वर मंदिर के नाम से इंदौर का नामकरण हुआ था. मंदिर का उल्लेख शिव महापुराण में भी है.
इंदौर का नाम था इंदूर
इंद्रेश्वर शब्द से बना था इंदूर, शहर का नाम पहले इंदूर हुआ करता था, जोकि इसी इंद्रेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर रखा गया था. इस मंदिर की स्थापना एक स्वामी ने की थी, इनके सपने में भगवान आये थे, जिसके बाद कान्ह नदी से मूर्ति निकलवा कर नदी किनारे स्थापित किया था. इंदौर के राजा तुकोजीराव ने मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया था और राज्य में किसी भी तरह की परेशानी आने पर वे इंद्रेश्वर महादेव की शरण में ही जाते थे.
भगवान इंद्र ने की थी तपस्या
मंदिर से जुड़ी ऐसी मान्यता है कि सफेद दाग से पीड़ित व्यक्ति अगर दर्शन कर मंदिर के अभिषेक का पानी उपयोग करता है तो उसे लाभ मिलता है. कई लोग सालों से यहां से पानी ले जाते हैं. पुजारी ने बताया कि देवताओं के राजा इंद्र जब सफेद दाग की परेशानी से पीड़ित थे, तब उन्होंने यहीं पर तपस्या की थी, जिसके बाद उन्हें इस समस्या से निजात मिली थी. यही वजह है कि मंदिर का नाम इंद्रेश्वर महादेव मंदिर रखा गया.
बारिश के लिए यहां होती है विशेष पूजा
मंदिर से जुड़ी कई मान्यताओं में एक मान्यता ये भी है कि जब शहर में बारिश नहीं होती है तो बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में पहुंचते हैं और बारिश के लिए भी विशेष पूजन किया जाता है, जिसके बाद शत प्रतिशत बारिश होने की भी मान्यता इस मंदिर से जुड़ी है. इतिहास के पन्नों में कई ऐसे किस्से कहानियां दर्ज हैं, जिससे इस मंदिर की मान्यताओं पर मुहर लगती है. इतिहास में अपनी अलग पहचान रखने वाला ये मंदिर सालों से जीर्णोद्धार की राह ताक रहा है. शहर का सबसे प्राचीन मंदिर होने के बावजूद इस ओर अभी तक प्रशासन का ध्यान नहीं गया है.