इंदौर। मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी पुण्य सलिला नर्मदा नदी के साथ अन्य सहायक नदियां जल्द ही सूख सकती हैं, यह सनसनीखेज बयान मंगलवार को वॉटरमैन नाम से चर्चित पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह ने दिया है. मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित राजेंद्र सिंह मंगलवार को इंदौर के वैष्णव इंस्टीट्यूट में आयोजित सुंदरलाल बहुगुणा मेमोरियल ओरेशन कार्यक्रम को संबोधित करने पहुंचे थे, इस दौरान प्रदेश में नदियों के अस्तित्व के सवाल पर राजेंद्र सिंह ने कहा कि "नर्मदा में बड़े पैमाने पर हो रहे रेत उत्खनन ने नर्मदा जी को आईसीयू में पहुंचा दिया है, जिसकी कभी भी मौत हो सकती है, जबकि कई सहायक नदियां सूख चुकी हैं."
नर्मदा आईसीयू में भर्ती: देश की प्रमुख नदियों में घटते जलस्तर और कई नदियों के अस्तित्व से जूझने पर वॉटर मैन राजेंद्र सिंह ने कहा कि "मध्यप्रदेश में लगभग सभी नदियों की स्थिति अलार्म इन है, बड़ी नदियां मैला ढोने वाली मालगाड़ी बन चुकी हैं और छोटी नदियां सूख रही हैं. इसकी वजह हमारा बेतरतीब विकास है, लेकिन सिर्फ बातें करने से नदियां पुनर्जीवित नहीं होने वाली इसके लिए सरकार को आमजन के साथ बहुत सारे कदम उठाने होंगे तब नदी बच पाएगी. फिलहाल तो नर्मदा आईसीयू में भर्ती है, यदि नर्मदा नदी को बचाने के लिए अभी भी ठीक से काम नहीं किया गया तो इसकी मौत निश्चित है. फिलहाल नर्मदा नदी को बड़े इंटेंसिव केयर की जरूरत है. इसके लिए सिर्फ रिवर और सीवर को सेपरेट करना होगा. सरकार को नर्मदा नदी में गंदे पानी को जाने से रोकना होगा. इसके अलावा नदी का जो बहाव क्षेत्र है, उसे सुनिश्चित करना पड़ेगा तो ही नदी का अस्तित्व बचा रह सकता है. अन्यथा नर्मदा नदी भी अन्य सहायक नदियों की तरह भविष्य में सूख जाएगी." बता दें कि वॉटर मैन का कहना है कि नदियों की स्थिति बेहद खराब हो गई है. बड़ी नदियों में कचरा जमा हो रहा है, जिसकी वजह से वहां स्वच्छता खत्म हो रही है.
रेत के उत्खनन ने आईसीयू में पहुंचाया: मशहूर पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह नर्मदा नदी को बर्बाद करने के लिए नदी में जारी रेत खनन को जिम्मेदार मानते हैं. उन्होंने कहा कि "नर्मदा नदी और आसपास में जो रेत खनन जारी है उसने नदी में घाव पैदा कर दिए हैं. इसके कारण नदी का बहाव क्षेत्र प्रभावित हो चुका है और नदी के तटीय क्षेत्र सिमट चुके हैं. इसके अलावा नदी में जलस्तर भी अनियमित और असंतुलित हो चुका है, इसके कारण स्थितियां गंभीर हो रही हैं. ऐसे में सरकार को गंभीर प्रयास करने की जरूरत है."
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ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट बड़ी चुनौती: मध्यप्रदेश के बदलते मौसम और ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणामों के सवाल पर पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह ने कहा कि "वर्तमान दौर में अब मौसम के अनुसार बारिश का अंदाजा लगाना मुश्किल हो चुका है. ऐसी स्थिति में किसानों को भी अब मॉनसून और मौसम का अंदाजा लगाना मुश्किल हो चुका है. भविष्य में अगर किसानों को अपनी खेती बचानी है तो अब मध्य प्रदेश के ग्राम पैटर्न को भी रेन पैटर्न से जोड़ना पड़ेगा. इसके बिना खेती भविष्य में संभव नहीं होगी. किसानों को अपने फसल चक्र को अब नए सिरे से बारिश में आ रहे बदलाव के अनुसार निर्धारित करना जरूरी है. उसी के परिणाम स्वरूप पानी का उपयोग हो सकेगा, जिसके जरिए किसानों को अपनी फसल लेने में सुविधा मिलेगी."
वॉटर लेवल के रेड जोन में मालवा: पर्यावरणविद राजेंद्र सिंह ने मालवा के वॉटर लेवल को लगातार रेड जोन में जाने पर भी चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि "मध्यप्रदेश में सर्वाधिक पानी जिस क्षेत्र में था अब वहां की स्थिति चिंताजनक हो चुकी है, यदि मालवा अंचल में भूजल की स्थिति सुधारना है तो अब रिचार्ज को प्राथमिकता देनी पड़ेगी. उसी से भूजल संग्रहित हो सकेगा. रिचार्ज के अलावा हमारे फसल चक्र को बारिश के पैटर्न के अनुसार जोड़ना जरूरी होगा और वर्तमान में जो व्यवसायिक कृषि हो रही है उसको प्राकृतिक कृषि की दिशा में वापस ले जाना पड़ेगा. इससे किसानों को लाभ होगा अन्यथा अत्यधिक लाभ की स्थिति में जो कमर्शियल खेती अब इस अंचल में हो रही है, उससे भी किसान भविष्य में अपनी खेती और धरती का पोषण नहीं कर पाएंगे."