इंदौर। देश में इंटरनेट और मोबाइल क्रांति की बदौलत अब हर घर में मोबाइल के साथ व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और तरह-तरह के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक्टिव लोगों की संख्या करोड़ों में है. इन प्लेटफार्म के जरिए मैसेज चैट और वीडियो कॉलिंग की सुविधा के कारण दुनिया भर के लोगों से एक दूसरे के सुलभ संपर्क और एक दूसरे तक पहुंच सुलभ होने के कारण डिवोर्स के मामलों में भी तेजी से वृद्धि हो रही है. स्थिति यह है कि पुरुषों की ही तरह घर की महिलाएं और कामकाजी युवतियों के तरह-तरह के नेटवर्क पर सक्रिय रहने के कारण अन्य लोगों से अंतरंगता और उनका सामाजिक दायरा तेजी से बढ़ा है.
40 फीसदी तलाक के लिए सोशल मीडिया जिम्मेदार: यही स्थिति पुरुषों को लेकर है. जिनके सोशल मीडिया नेटवर्क में घर परिवार की महिलाओं के अलावा अन्य महिलाएं और युवतियां होती हैं. नतीजतन पति और पत्नी के बीच न केवल मोबाइल के उपयोग बल्कि मोबाइल के जरिए अन्य लोगों से संबंध और संपर्क विवाद की वजह बनने के बाद ऐसे तमाम विवाद के प्रकरण फैमिली कोर्ट में पहुंच रहे हैं. इंदौर जैसे शहर में ही स्थिति यह है आने वाले 20 से 25 प्रकरणों में 40 फ़ीसदी मामलों में पति पत्नी के बीच विवाद की वजह है सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ही है. जिनके कारण या तो पत्नी के अन्य किसी से संबंध है या पुरुष अपनी पत्नी के अलावा अन्य महिला के साथ भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय है.
रोक-टोक दोनों ही पक्षों को मंजूर नहीं: इसमें भी चौंकाने वाली बात यह है कि सोशल मीडिया पर स्वच्छंदता अथवा रोक-टोक दोनों ही पक्षों को मंजूर नहीं है. लिहाजा ऐसे तमाम मामलों में अब दोनों ही पक्ष सहमति से तलाक ले रहे हैं. जिसके फलस्वरूप अब इंदौर फैमिली कोर्ट में ही कुल लंबित 8000 प्रकरणों में 40 फ़ीसदी प्रकरण इसी तरह के हैं. एडवोकेट प्रीति मेहना बताती हैं कि ''अब फैमिली कोर्ट में आपसी सहमति और रजामंदी से होने वाले डिवोर्स की संख्या इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि पति और पत्नी सोशल मीडिया के जरिए पहले से किसी और से जुड़े हुए होते हैं, जो एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स के मामले में बिना किसी विवाद के विवाह विच्छेद चाहते हैं. कोर्ट में इस तरह की धारा 13 बी के तहत दायर होने वाले प्रकरणों की संख्या बढ़ रही है. जो कहीं ना कहीं भारतीय समाज के सामाजिक ताने-बाने के लिहाज से उचित नहीं है.''
साक्ष्य में भी सोशल मीडिया का रिकॉर्ड: डिवोर्स और तलाक के मामलों में खास बात यह है जो साक्ष्य या प्रमाण पति-पत्नी एक दूसरे के खिलाफ प्रस्तुत कर रहे हैं, वह भी सोशल मीडिया का ही रिकॉर्ड है. फिलहाल विवाद के अधिकांश मामलों में साक्ष्य के रूप में पति-पत्नी की ओर से व्हाट्सएप चैट का रिकॉर्ड, वीडियो कॉलिंग, वीडियो सेक्स अथवा चैटिंग का रिकॉर्ड चिप के माध्यम सभी वकीलों अथवा कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता हैा या फिर इसी तरह के अन्य एविडेंस भी सबूत के रूप में प्रस्तुत होते हैं.
परस्पर उपेक्षा भी डिवोर्स का बड़ा कारण: पति-पत्नी के बीच विभिन्न कारणों से परस्पर उपेक्षा भी उन्हें सोशल मीडिया के जरिए अन्य लोगों से भावनात्मक तौर पर जुड़ने में सहायक होती है, जो अपने रिश्तों में उत्सुकता, डेटिंग अथवा भावनात्मक लगाव की कमी महसूस करने के कारण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में इंवॉल्व हो जाते हैं. इसके अलावा माता-पिता बनने के बाद शादीशुदा कपल के रिश्तों में आने वाले बदलाव और एक साथ कम समय बिताने के कारण भी ऐसी स्थिति बन जाती है, जो खुद को उपेक्षित मानकर अन्य किसी के साथ संबंध का विकल्प चुन लेते हैं. इसके अलावा इमोशनल अटैचमेंट की कमी, एक दूसरे की आदतें अलग होने और कई बार विभिन्न तरह की मुश्किल एवं परेशानी में लोग अपने जीवनसाथी को छोड़कर अन्य किसी का समर्थन पाने के कारण सहज महसूस करते हैं और उससे जुड़ जाते हैं.