इंदौर। दुनिया भर में गाय को महज पशु माना जाता हो लेकिन भारत में गाय में ईश्वर का वास होने की मान्यता के फलस्वरूप पूजा होती है. यह बात और है कि आधुनिक दौर में गाय के प्रति लोगों के बीच सेवा और श्रद्धा का भाव कम हो गया है. लेकिन अब धीरे-धीरे लोग फिर से जागरूक होने लगे हैं. इंदौर के लालबाग पैलेस परिसर में भव्य पंडाल के नीचे गो ग्रास से लेकर काजू, बादाम, किशमिश, मैथी, अजवाइन. गुड. खाली मूंग और अन्य स्वास्थ्यवर्धक सामग्री सजाई गई. दरअसल, ये गायों की खुराक है.
गौपालन हर लिहाज से लाभकारी : गौपालन न केवल आध्यात्मिक बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से भी लाभकारी है. इसलिए इस महोत्सव में गायों के प्रति श्रद्धा जागृत करने के लिए छप्पन भोग के अलावा गोपुष्टि यज्ञ के साथ ही गौ माता पर विभिन्न आयोजन किए गए. गौ सेवा से जुड़े संतों और गोपालकों का मानना है कि गो मांस के लिए गायों की तस्करी और शहरीकरण जैसे अन्य कारणों से गायों की संख्या घटी है. वहीं नस्ल सुधार के नाम पर विदेशी गोवंश के कारण भारतीय वेदलक्षणा गाय की नस्ल भी प्रभावित हुई है. इसके अलावा अब गौपालन न केवल शहरों में सिमट चुका है बल्कि गांव में भी अब गोपालन एवं गौ सेवा लगातार घट रही है, जिसके फलस्वरूप वेदलक्षणा गाय के प्रति जन जागरण एवं श्रद्धा के लिए गौ श्रद्धा महोत्सव जरूरी है.
गायों के प्रति जागरूकता : ऐसे आयोजनों की अब जरूरत इसलिए भी है कि भारत जैसे देश में लोगों को नए सिरे से गायों के महत्व के बारे में जागरूक किया जाए. यही वजह है कि गौ माता के प्रति लोगों में श्रद्धा का भाव जागृत करने के लिए इंदौर में 9 दिनी गौ श्रद्धा महोत्सव का आयोजन किया गया. इस दौरान 9 दिन तक सिर्फ गायों से जुड़े धार्मिक आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन पूरे महोत्सव के दौरान किया गया. वहीं इस अवसर पर गायों को पहली बार छप्पन भोग अर्पित किए गए, जिन्हें देश भर से इंदौर में एकत्र हुए गोपालन से जुड़े गौ सेवकों और गौ सेवा से जुड़े संतों की ओर से प्रदान किया गया.
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ऐसा आयोजन पहली बार : यह पहला मौका था जब इतनी बड़ी मात्रा में गायों के लिए गोग्रास एवं छप्पन भोग की सामग्री गायों को खिलाने एकत्र की गई हो. कार्यक्रम में मौजूद संतों के मुताबिक छप्पन भोग भी गौ माता के प्रति श्रद्धा का भाव जागृत करने के महोत्सव का स्वरूप है. जो इंदौर में पहली बार 144 गायों के अलावा शहर की विभिन्न गौशाला में मौजूद गायों के लिए भेजा गया. दरअसल गौ सेवा से जुड़े गौ सेवकों की मान्यता है कि वेदों में भारतीय गाय के जो लक्षण बताए गए हैं उन गायों को वेद लक्षणा गाय कहा जाता है. जिसके कंधे पर ककूद या कूबड़ होता है जबकि गले में झालर नुमा गलकंबल होता है. वेदलक्षणा गाय की त्वचा मुलायम होती है. इन गायों के उत्पाद न केवल स्वास्थ्य के लिहाज से अमृत है बल्कि इनका आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व भी है.