इंदौर। देश भर में हर साल किसानों द्वारा पराली जलाने से बढ़ते भीषण प्रदूषण और बढ़ते तापमान की समस्या से निजात पाई जा सकती है. दरअसल देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर की एक बायोटेक्नोलॉजिस्ट ने पराली पर मशरूम उगाने के बाद फसल के बचे हुए हर हिस्से से कोई ना कोई प्रोडक्ट बनाने में महारत हासिल कर ली है. इतना ही नहीं पूजा दुबे नामक यह बायोटेक्नोलॉजिस्ट देशभर के पराली जलाने वाले किसानों को पराली पर ही मशरूम उगाकर लाखों की कमाई की ट्रेनिंग भी दे रही है. हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट करके पूजा के इस प्रयास को पराली की समस्या से निजात पाने का साधन बताया है.
पढ़ाई के दौरान आया आइडिया: इंदौर में पढ़ाई के दौरान ही पूजा दुबे को पता चला कि मशरूम ही इकलौती ऐसी फसल है जिसमें उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन और पोषक तत्व मौजूद हैं और यह फसल एग्रीकल्चर के अवशिष्ट एवं कचरे पर आसानी से उगती है. मुंबई के टाटा कैंसर रिसर्च सेंटर में भी शोध करते हुए पूजा को यही ख्याल रहा कि जो पराली प्रदूषण और अन्य समस्या की वजह बन रही है लिहाजा जो किसान इसे अनुपयोगी मानकर खेतों में ही जला देते हैं वह पराली पर ही मशरूम की फसल लेकर पैसा बना सकते हैं. लिहाजा अपने इस प्लान को जल्द से जल्द जमीनी स्तर पर लागू कराने के लिए पूजा ने नौकरी छोड़ कर इंदौर लौटने के साथ इस स्टार्टअप को साकार करने की योजना बनाई.
बेटी को समर्पित स्टार्टअप: पूजा ने अपनी बेटी को समर्पित स्टार्टअप BETI (Biotech Era Trasforming India) नामक स्टार्टअप के जरिए एंटरप्रेन्योर के बतौर काम शुरू किया. देखते ही देखते पूजा का यह प्रयास अब सफल होता नजर आ रहा है. अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी पूजा के प्रयास की सराहना करते हुए उनके प्रयोग को पराली की भविष्य आधारित समस्या से मुक्ति का मार्ग बताया है. वही अब पूजा अपने पति प्रदीप पांडे के साथ मिलकर प्रदेश के किसानों को पराली पर मशरूम उगाने के साथ उसके बचे हुए अवशेष से फ्लावर पॉट शोर बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग मैटेरियल आदि चीजें बना रहे हैं.
पराली पर उग रहा मशरूम: पूजा दुबे ने टिशु कल्चर के जरिए पराली पर ओयस्टर किस्म का मशरूम उगाने की तकनीक विकसित की है जो मालवा की जलवायु में तेजी से विकसित होता है लिहाजा सोयाबीन गेहूं अथवा अन्य किसी भी फसल का जो भूसा और पराली बचती है उसे छोटे से कमरे में भरकर उस पर मशरूम उगाने के लिए 100 बैग लगाने पर 20 दिन में ही मशरूम उठकर तैयार हो जाता है. 45 दिन में इसकी तीन फसल ली जा सकती हैं जो एक बार में 80 से 100 किलोग्राम तैयार होता है. बाजार में इसकी कीमत 150 रुपए किलो है जिसे पाउडर बनाकर भी बेचा जा सकता है.
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पायलट प्रोजेक्ट के लिए मांग: बेटी नामक अपने स्टार्टअप के फाउंडर प्रदीप पांडे बताते हैं कि कृषि आधारित भारत देश में कुल फसल का 700 से 900 फ़ीसदी अवशेष पराली के नाम पर जला दिया जाता है जबकि उसका उपयोग 1 से 2 फ़ीसदी ही है क्योंकि फसल लेने के बाद देश में इस बात पर गंभीरता से विचार नहीं हुआ की फसल के अन्य उत्पाद का बेहतर उपयोग कैसे हो नाही कभी इसका कोई डेटा जनरेट किया गया. उन्होंने बताया अब वह अपने इस प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार अथवा राज्य सरकार से तहसील अथवा जिले में अपने प्रयास को पायलट प्रोजेक्ट के तहत लागू करना चाहते हैं जिससे कि संबंधित क्षेत्र की कुल पराली अथवा खरपतवार से मशरूम उगाने के साथ ही कंपोस्ट खाद एवं अन्य उत्पाद बनाकर उसका हंड्रेड परसेंट निस्तारण कर सकें.
कचरे से कंचन का नारा: पूजा दुबे के पराली से मशरूम की खेती करने के स्टार्टअप की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट करके प्रशंसा की. वही G20 समिति के दौरान इंदौर के सांसद शंकर लालवानी ने इस स्टार्टअप को प्रधानमंत्री के कचरे से कंचन के नारे को आगे बढ़ाने का प्रयास करार दिया, क्योंकि मशरूम उगाने के बाद भी जो हिस्सा बच रहा है उससे उच्च गुणवत्ता की कंपोस्ट के साथ विभिन्न प्रकार के कलात्मक आर्टिकल और पैकेजिंग मैटेरियल तैयार किया जा रहा है जिसे उनके स्टार्टअप द्वारा बाजार में बेचा भी जा रहा है.