इंदौर। गुरु नानक देव जयंती देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है. सिख समाज द्वारा सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी महाराज के कई संस्मरण भी इस दौरान याद किए जा रहे हैं. ऐसा ही एक संस्मरण इंदौर से भी जुड़ा हुआ है. लगभग 503 साल पहले गुरु नानक देव इंदौर बेटमा और ओंकारेश्वर पहुंचे थे. वो जिन स्थानों पर रुके थे, उनका महत्व सिख समाज में काफी पूज्यनीय है.
इंदौर का इमली साहिब गुरुद्वारा इतिहास के पन्नों में दर्ज है, शहर के मध्य में स्थित इस गुरुद्वारे पर रोजाना सिख समाज के लोग मत्था टेकने आते हैं. आज सिख समाज के द्वारा 551वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है. हर साल इस दिन धार्मिक आयोजन होते थे और नगर कीर्तन भी निकाला जाता था, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए नगर कीर्तन नहीं निकाला जा रहा है और ना ही हजारों की संख्या में संगत को एकत्रित की जा रही है. लंगर भी पैकेट में दिया जा रहा है. साथ ही कार्यक्रम स्थल पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और मास्क पहनने की अपील भी की गई है.
दूसरी यात्रा के दौरान गुरु नानक देव पहुंचे थे इंदौर
लगभग 503 साल पहले अपनी दूसरी यात्रा के दौरान गुरु नानक देव जी महाराज इंदौर आए थे. यहां पर इमली के पेड़ के नीचे उन्होंने शबद सुनाया था. ये इमली का पेड़ कान्ह नदी के किनारे हुआ करता था. यहां पर गुरुद्वारा बनाया गया, तो उसका नाम भी इमली साहिब गुरुद्वारा रखा गया. गुरु नानक देव जी करीब 2 सप्ताह तक यहां पर रुके थे. करीब 70 वर्ष पहले जब बिल्डिंग के लिए इमली के पेड़ को हटाना पड़ा, तो समाज के ही कुछ लोगों ने पेड़ की शाखाएं अपने पास रख लीं. आज भी ये पेड़ की शाखाएं समाज के लोगों के पास मौजूद हैं.
गुरु नानक जी ने बावड़ी के खारे पानी को किया था मीठा
गुरु नानक देव जी महाराज अपनी दूसरी यात्रा के दौरान बेटमा पहुंचे थे. इसका जिक्र समाज के पुरातन ग्रंथ तवारीख गुरु खालसा में भी है. इस ग्रंथ को सिख समाज के द्वारा भी मान्यता प्राप्त है. यहां पर उन्होंने अहिंसा का संदेश दिया था. बताया जाता है कि, उनके आगमन से यहां बावड़ी का खारा पानी मीठा हो गया था. इसके चलते यहां बने गुरुद्वारे का नाम बावड़ी साहिब पड़ा गुरु, खालसा के अनुसार 1517 में गुरु नानक देव 6 महीने तक यहां पर रुके थे.
कोरोना काल में सादगी से मनेगा प्रकाश पर्व
जहां-जहां गुरु नानक देव पहुंचे थे. अब वहां पर ऐतिहासिक महत्व के गुरुद्वारे बने हुए हैं और यह स्थान सिख समाज की आस्था के केंद्र है. हर साल इन स्थानों पर हजारों की संख्या में लोग दर्शन के लिए भी आते हैं. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते कई कार्यक्रम निरस्त कर दिए गए हैं.