इंदौर। प्रदेश की खेती किसानी में बढ़ते नवाचार के चलते अब मध्यप्रदेश की जलवायु में भी ठंडे प्रदेशों की सेब फल जैसी फसलें लेना आसान हो गया है यही वजह है कि इंदौर में पहली बार ग्रीन एप्पल की खेती हो रही है, शहर के एक उन्नत किसान द्वारा कुछ वर्ष पहले लगाए गए पौधों में पहली बार जो फल आए हैं उनका आकार स्वाद एवं अरोमा कश्मीर और हिमाचल से आने वाले सेब फल को भी मात कर रहा है. इंदौर समेत आसपास के कुछ इलाकों में सामान्य रेड एप्पल के पौधे लगाए गए थे जिनमें एक 2 सालों से फल आ रहे हैं लेकिन यह पहला मौका है कि जब ग्रीन एप्पल के पौधों से भी फल की शुरुआत हुई है.
पौधों में लगे ग्रीन एप्पल: सेव का उत्पादन आमतौर पर कश्मीर हिमाचल प्रदेश की वादियों में होता है. मध्यप्रदेश में भी एप्पल की पैदावार के लिए लंबे समय से प्रयास हो रहे हैं. कनाडिया रोड पर पिपलिया राव गांव में उन्नत किसान अमित धाकड़ ने अपने फार्म हाउस पर कुछ पौधे लगाए थे इन पौधों को विशेष तरह की देखभाल और आवश्यकतानुसार छांव एवं धूप के साथ खाद और देखभाल मिलने से इस साल से ही पौधों में फ्रूटिंग चालू हुई है, यहां एक साथ कई पौधों में ग्रीन एप्पल आ रहे हैं जिन्हें अपना संपूर्ण आकार और स्वरूप देने के लिए नेट से ढका गया है.
स्वादिष्ट है इंदौरी एप्पल: अमित धाकड़ बताते हैं कि बाजार में कश्मीर और हिमाचल प्रदेश से आने वाला जो ग्रीन एप्पल बिक रहा है उसका एरोमा और स्वाद इंदौर में पैदा हो रहे फल से कम है क्योंकि यहां पौधों को जैविक ट्रीटमेंट के साथ विशेष ध्यान देकर फ्रूटिंग ली जा रही है जिसके फलस्वरूप फलों का आकार एवं स्वाद अन्य स्थानों से आने वाले ग्रीन एप्पल से बेहतर है हालांकि अब इंदौर में भी एप्पल की खेती की शुरुआत हो गई है तो कोशिश की जा रही है कि क्षेत्र के अन्य उन्नत किसान जो इस तरह की फसल लेना चाहते हैं उन्हें भी ग्रीन एप्पल की पैदावार लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए.
जैविक खेती से फसल लेना आसान: राज्य सरकार और केंद्र सरकार लगातार किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है यही वजह है कि मध्यप्रदेश में ही करीब 7 लाख से ज्यादा किसान अब जैविक खेती को अपना रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि मध्य प्रदेश की 45% कृषि भूमि जैविक खेती के लिए उपयुक्त है. यह बात और है कि फिलहाल किसान अभी भी पारंपरिक फसलों की बुवाई कर रहे हैं इसकी वजह किसानों को जैविक खेती के लिए बाजार नहीं मिल पाना है. शासन स्तर पर भी जैविक खेती के लिए परामर्श एवं विशेषज्ञता प्रदान करने की भी व्यवस्था फिलहाल नहीं है जैविक खेती से जो उत्पादन हो रहा है उसके भी सर्टिफिकेशन के लिए एक जैसी व्यवस्था नहीं है.