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यूनेस्को धरोहर के रूप में शामिल हो सकती है इंदौर की गेर, इंदौर पहुंचेगी यूनेस्को की टीम - mp news

रंगपंचमी के दिन इंदौर में आयोजित होने वाली गेर इस बार खास होने वाली है. बताया जा रहा है कि गेर को परखने के लिए यूनेस्को से डेढ़ हजार लोगों की टीम इंदौर पहुंच रही है.

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यूनेस्को धरोहर के रूप में शामिल हो सकती है गेर
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Published : Mar 11, 2020, 11:26 PM IST

Updated : Mar 11, 2020, 11:56 PM IST

इंदौर। मालवा-निमाड़ में रंग-पंचमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. शहर में रंग और उत्सव के उल्लास के पर्व रंगपंचमी के दिन निकाली जाने वाली 'गेर' यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल की जा सकती है. इसके लिए यूनेस्को से डेढ़ हजार लोगों की टीम इंदौर पहुंच रही है. जिसके चलते जिला प्रशासन के साथ गेर के आयोजकों ने तैयारियां शुरू हो चुकी है.

यूनेस्को धरोहर के रूप में शामिल हो सकती है इंदौर की गेर

7 दशक से चली आ रही परंपरा

दरअसल इंदौर में बीते 7 दशकों से रंग पंचमी का त्योहार गेर के रूप में बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. जिसमें हुरियारों की अलग-अलग मंडलियों और उसमें शामिल बैंड बाजों के साथ रंग गुलाल उड़ान आने वाली गाड़ियां आकर्षण और मस्ती का केन्द्र होती हैं. इंदौर की गेर में शामिल होने के लिए देशभर से लोग आते हैं. इसे लेकर इस बार भी उत्साह का माहौल देखा जा रहा है.

रंगोत्सव को परखेगा यूनेस्को

खास बात यह है कि इस बार गेर को देखने के लिए यूनेस्को से डेढ़ हजार लोगों की टीम इंदौर पहुंच रही है. जो पारंपरिक गेर के आकर्षण और रंगोत्सव के उल्लास और परंपरा को परखेगी. इसके अलावा इस बार गेर को व्यवस्थित रूप देने के लिए कुछ आईआईटी के छात्रों को भी जिम्मेदारी दी गई है. देशभर के अलग-अलग महिला समूह हर्षोल्लास के पर्व में शामिल होने के लिए तैयार है. देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में आयोजित होने वाला रंगोत्सव का यह पर्व अब विश्व धरोहर का दर्जा पाने की तैयारी में है.

ऐसे हुई थी परंपरा की शुरुआत

इंदौर में इस परंपरा की शुरूआत 1947-48 में टोरी कॉर्नर चौराहे से हुई थी. रंग से भरे कड़ाव में लोगों को घेरकर डुबोने और फिर जुलूस में शामिल करने वाली इस परंपरा ने गेर के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई. इंदौर में गेर की शुरुआत बाबूलाल और छोटे लाल गिरि ने की थी, जो सभी को रंग से भरे कड़ाव में डालकर सबके साथ होली खेलकर शहर के राजवाड़ा तक पहुंचते थे. धीरे-धीरे इंदौर में रंगोत्सव का पर्व रतलाम, मंदसौर, नीमच, जावरा जैसे आसपास के शहरों में भी पहुंचा, तो वहां भी लोगों ने गेर निकालनी शुरू कर दी.

इंदौर रंग में रंगने के लिए देश-विदेश से आते हैं लोग

मालवा क्षेत्र में धीरे-धीरे गेर की प्रसिद्धि बड़ी तो इंदौर में इस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाने लगा. आलम यह है कि रंगोत्सव के इस आयोजन में देश और दुनिया से लोग यहां इंदौरी रंग में रंगने पहुंचते हैं. धर्म और मजहब की सीमाओं से बढ़कर लोग गेर के हर्षोल्लास के बीच आत्मीयता के रंग में रंग जाते हैं.

इंदौर। मालवा-निमाड़ में रंग-पंचमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. शहर में रंग और उत्सव के उल्लास के पर्व रंगपंचमी के दिन निकाली जाने वाली 'गेर' यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल की जा सकती है. इसके लिए यूनेस्को से डेढ़ हजार लोगों की टीम इंदौर पहुंच रही है. जिसके चलते जिला प्रशासन के साथ गेर के आयोजकों ने तैयारियां शुरू हो चुकी है.

यूनेस्को धरोहर के रूप में शामिल हो सकती है इंदौर की गेर

7 दशक से चली आ रही परंपरा

दरअसल इंदौर में बीते 7 दशकों से रंग पंचमी का त्योहार गेर के रूप में बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. जिसमें हुरियारों की अलग-अलग मंडलियों और उसमें शामिल बैंड बाजों के साथ रंग गुलाल उड़ान आने वाली गाड़ियां आकर्षण और मस्ती का केन्द्र होती हैं. इंदौर की गेर में शामिल होने के लिए देशभर से लोग आते हैं. इसे लेकर इस बार भी उत्साह का माहौल देखा जा रहा है.

रंगोत्सव को परखेगा यूनेस्को

खास बात यह है कि इस बार गेर को देखने के लिए यूनेस्को से डेढ़ हजार लोगों की टीम इंदौर पहुंच रही है. जो पारंपरिक गेर के आकर्षण और रंगोत्सव के उल्लास और परंपरा को परखेगी. इसके अलावा इस बार गेर को व्यवस्थित रूप देने के लिए कुछ आईआईटी के छात्रों को भी जिम्मेदारी दी गई है. देशभर के अलग-अलग महिला समूह हर्षोल्लास के पर्व में शामिल होने के लिए तैयार है. देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में आयोजित होने वाला रंगोत्सव का यह पर्व अब विश्व धरोहर का दर्जा पाने की तैयारी में है.

ऐसे हुई थी परंपरा की शुरुआत

इंदौर में इस परंपरा की शुरूआत 1947-48 में टोरी कॉर्नर चौराहे से हुई थी. रंग से भरे कड़ाव में लोगों को घेरकर डुबोने और फिर जुलूस में शामिल करने वाली इस परंपरा ने गेर के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई. इंदौर में गेर की शुरुआत बाबूलाल और छोटे लाल गिरि ने की थी, जो सभी को रंग से भरे कड़ाव में डालकर सबके साथ होली खेलकर शहर के राजवाड़ा तक पहुंचते थे. धीरे-धीरे इंदौर में रंगोत्सव का पर्व रतलाम, मंदसौर, नीमच, जावरा जैसे आसपास के शहरों में भी पहुंचा, तो वहां भी लोगों ने गेर निकालनी शुरू कर दी.

इंदौर रंग में रंगने के लिए देश-विदेश से आते हैं लोग

मालवा क्षेत्र में धीरे-धीरे गेर की प्रसिद्धि बड़ी तो इंदौर में इस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाने लगा. आलम यह है कि रंगोत्सव के इस आयोजन में देश और दुनिया से लोग यहां इंदौरी रंग में रंगने पहुंचते हैं. धर्म और मजहब की सीमाओं से बढ़कर लोग गेर के हर्षोल्लास के बीच आत्मीयता के रंग में रंग जाते हैं.

Last Updated : Mar 11, 2020, 11:56 PM IST
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