इंदौर। लॉकडाउन के करीब दो महीने बीत रहे हैं, ऐसे में इस तालाबंदी ने किसानों की कमर तोड़ दी है. आलम ये है कि खेतों में खड़ी फसलें मंडी तक नहीं ले जाने की मजबूरी और खेतों से फसलें खरीदी नहीं होने के चलते मालवा अंचल का किसान अपनी फसल को खुद ही नष्ट करने को मजबूर है. सबसे खराब स्थिति सब्जी उगाने वाले किसानों की है, जिन्हें अब दूसरी फसल की बोवनी की तैयारी करनी है, जिसके चलते अपनी फसल को खुद ही खेतों में नष्ट करना पड़ रहा है, ताकि खेत खाली हो जाएं.
मार्च और अप्रैल महीने में मालवा-अंचल में बड़े पैमाने पर कैश क्रॉप यानी टमाटर, गोभी, करेला, भिंडी और तुरई के अलावा तरबूज खरबूजा व गिलकी जैसी सब्जियों की पैदावार बड़े पैमाने पर होती है. इंदौर अंचल से ही बड़ी मात्रा में प्याज, आलू और दूसरी सब्जियां दिल्ली और मुंबई की मंडियों में पहुंचती हैं. इस बार मार्च महीने से ही लॉकडाउन और कर्फ्यू के चलते न तो खेतों में तैयार सब्जियां मंडियों तक पहुंच रही हैं और न ही व्यापारी इन सब्जियों को खरीदने के लिए खेतों तक पहुंच पा रहे हैं.
ऐसी स्थिति में हरी सब्जियां खेतों में ही खराब हो गईं. अब जबकि मई महीना गुजरने को है और किसानों को दूसरी फसलों की बोवनी करनी है तो खेतों में मौजूद सब्जियों की बची हुई फसलों को खुद ही नष्ट करना पड़ रहा है. नितिन पटेल ने खेत में गोभी की फसल लगाई थी. लेकिन फसल तैयार होने के बाद मंडी न ले जा पाने के चलते नितिन खुद ही अपनी फसल पर ट्रैक्टर चलाकर नष्ट कर दिए, ऐसे में प्रति बीघा 50 से 60 हजार रुपए के हिसाब से नुकसान उठाना पड़ा है और जो नष्ट करने में खर्च आया वो अलग.
कमोबेश अंचल के सभी किसानों को प्याज और गोभी जैसी फसलों में ही प्रति किसान को एक से डेढ़ लाख रुपए का घाटा हो चुका है. हालांकि एक बार फिर किसान मजबूरी में साहूकारों से उधार लेकर नए सिरे से बोवनी की तैयारी करने को मजबूर है.