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यहां मौजूद है संविधान निर्माता का अस्थि कलश, आज महू की मिट्टी पर शीश झुकाने पहुंचेंगे कई अनुयायी

14 अप्रैल को संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती है. आज के दिन देश के कई हिस्सों में बाबा साहेब की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है. वहीं बाबा साहेब की जन्मस्थली महू में भी अंबेडकर जयंती का आयोजन किया जा रहा है. यहां डॉ अंबेडकर का अस्थि कलश आज भी मौजूद है.

Ambedkar asthi kalash in Mhow of Indore
संविधान निर्माता का अस्थि कलश
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Published : Apr 13, 2023, 9:40 PM IST

Updated : Apr 14, 2023, 8:51 AM IST

संविधान निर्माता का अस्थि कलश

इंदौर। देश और दुनिया भर में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नाम से ख्यात दलितों के मसीहा और संविधान निर्माता डॉक्टर अंबेडकर आज भले इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन देशभर में फैले उनके करोड़ों अनुयायियों के बीच अंबेडकर का अस्थि कलश अंबेडकर की तरह ही पूजनीय है. यही वजह है कि इंदौर के महू जन्मस्थली पर मौजूद उनके अस्थि कलश को पूजने और महू की मिट्टी को प्रणाम करने हर साल 14 अप्रैल को उनकी जन्मस्थली पर हजारों लोग जुटते हैं, जो अपने बाबा साहब के समर्पण और उनके समाज सुधार के योगदान के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

Ambedkar asthi kalash in Mhow of Indore
महू में अंबेडकर जन्मस्थली

दोबारा जन्मस्थली पर आना नहीं हुआ: दरअसल डॉ बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को इंदौर के महू स्टेट काली पलटन आर्मी रेंज में हुआ था. उन दिनों उनके पिता रामजी मलोजी सकपाल की छोटी सी कुटिया, जो यहां मौजूद थी वहां रहते थे. हालांकि अंबेडकर के जन्म के बाद वे जब ढाई साल के थे, तब उनके पिता को ब्रिटिश आर्मी द्वारा नौकरी से निकाले जाने के बाद डाक्टर अंबेडकर का परिवार यहां से अपने पैतृक गांव महाराष्ट्र के रत्नागिरी अंबाबाड़ी चला गया था. इसके बाद वे सातारा एवं अन्य स्थानों पर रहे, लेकिन उनका अपनी जन्मस्थली पर आना नहीं हुआ. 1942 में एक केस के सिलसिले में डॉ अंबेडकर इंदौर पहुंचे थे, तब भी वह महू नहीं आ पाए थे, हालांकि लंबे समय तक अंबेडकर जन्मस्थली की यह जमीन महू आर्मी का कंटेनमेंट क्षेत्र होने के कारण आर्मी के अधीनस्थ रही, लेकिन बौद्ध धर्मगुरु भंते धर्मशील के प्रयासों से यह जमीन डॉक्टर अंबेडकर स्मारक के लिए मुहैया हो सकी. जहां आज भव्य अंबेडकर जन्मस्थली का स्मारक मौजूद है.

Ambedkar asthi kalash in Mhow of Indore
संविधान निर्माता का अस्थि कलश

स्मारक में अस्थि कलश की स्थापना: डॉ बाबा साहेब अंबेडकर जन्म भूमि एवं अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी द्वारा यहां डॉक्टर अंबेडकर का चांदी का अस्थि कलश स्थापित किया गया है. जिसके दर्शन के लिए अब हजारों अनुयायी यहां पहुंचते हैं. अस्थि कलश को रोचक स्मारक जैसे ही प्रतीक चिन्ह में सजाकर स्थापित किया गया है. अस्थि कलश के आसपास पंचशील के पांच रंग डॉक्टर अंबेडकर इच्छा के अनुरूप तय किए गए हाथी के चिन्ह भी बनाए गए हैं. अंबेडकर स्मारक के अंदर बीचो बीच मौजूद अस्थि कलश के चारों ओर परिक्रमा स्थल है. जहां डॉक्टर अंबेडकर के जीवनकाल और संविधान निर्माण से लेकर दलित उत्थान की घटनाओं को म्यूरल से बनी मूर्तियों के जरिए दर्शाया गया है, जो उनके अनुयायियों को बाबा साहब के त्याग, तपस्या और बलिदान की सीख भी देता है. स्मारक की प्रबंध समिति के पदाधिकारियों के अनुसार यहां आने वाले अंबेडकर के हजारों अनुयायी जन्म स्थल को पूजने के साथ महू के मिट्टी को भी प्रणाम करते हैं और बाबा साहब की आस्था में यहां रुक कर अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

संविधान निर्माता का अस्थि कलश

इंदौर। देश और दुनिया भर में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नाम से ख्यात दलितों के मसीहा और संविधान निर्माता डॉक्टर अंबेडकर आज भले इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन देशभर में फैले उनके करोड़ों अनुयायियों के बीच अंबेडकर का अस्थि कलश अंबेडकर की तरह ही पूजनीय है. यही वजह है कि इंदौर के महू जन्मस्थली पर मौजूद उनके अस्थि कलश को पूजने और महू की मिट्टी को प्रणाम करने हर साल 14 अप्रैल को उनकी जन्मस्थली पर हजारों लोग जुटते हैं, जो अपने बाबा साहब के समर्पण और उनके समाज सुधार के योगदान के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

Ambedkar asthi kalash in Mhow of Indore
महू में अंबेडकर जन्मस्थली

दोबारा जन्मस्थली पर आना नहीं हुआ: दरअसल डॉ बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को इंदौर के महू स्टेट काली पलटन आर्मी रेंज में हुआ था. उन दिनों उनके पिता रामजी मलोजी सकपाल की छोटी सी कुटिया, जो यहां मौजूद थी वहां रहते थे. हालांकि अंबेडकर के जन्म के बाद वे जब ढाई साल के थे, तब उनके पिता को ब्रिटिश आर्मी द्वारा नौकरी से निकाले जाने के बाद डाक्टर अंबेडकर का परिवार यहां से अपने पैतृक गांव महाराष्ट्र के रत्नागिरी अंबाबाड़ी चला गया था. इसके बाद वे सातारा एवं अन्य स्थानों पर रहे, लेकिन उनका अपनी जन्मस्थली पर आना नहीं हुआ. 1942 में एक केस के सिलसिले में डॉ अंबेडकर इंदौर पहुंचे थे, तब भी वह महू नहीं आ पाए थे, हालांकि लंबे समय तक अंबेडकर जन्मस्थली की यह जमीन महू आर्मी का कंटेनमेंट क्षेत्र होने के कारण आर्मी के अधीनस्थ रही, लेकिन बौद्ध धर्मगुरु भंते धर्मशील के प्रयासों से यह जमीन डॉक्टर अंबेडकर स्मारक के लिए मुहैया हो सकी. जहां आज भव्य अंबेडकर जन्मस्थली का स्मारक मौजूद है.

Ambedkar asthi kalash in Mhow of Indore
संविधान निर्माता का अस्थि कलश

स्मारक में अस्थि कलश की स्थापना: डॉ बाबा साहेब अंबेडकर जन्म भूमि एवं अंबेडकर मेमोरियल सोसायटी द्वारा यहां डॉक्टर अंबेडकर का चांदी का अस्थि कलश स्थापित किया गया है. जिसके दर्शन के लिए अब हजारों अनुयायी यहां पहुंचते हैं. अस्थि कलश को रोचक स्मारक जैसे ही प्रतीक चिन्ह में सजाकर स्थापित किया गया है. अस्थि कलश के आसपास पंचशील के पांच रंग डॉक्टर अंबेडकर इच्छा के अनुरूप तय किए गए हाथी के चिन्ह भी बनाए गए हैं. अंबेडकर स्मारक के अंदर बीचो बीच मौजूद अस्थि कलश के चारों ओर परिक्रमा स्थल है. जहां डॉक्टर अंबेडकर के जीवनकाल और संविधान निर्माण से लेकर दलित उत्थान की घटनाओं को म्यूरल से बनी मूर्तियों के जरिए दर्शाया गया है, जो उनके अनुयायियों को बाबा साहब के त्याग, तपस्या और बलिदान की सीख भी देता है. स्मारक की प्रबंध समिति के पदाधिकारियों के अनुसार यहां आने वाले अंबेडकर के हजारों अनुयायी जन्म स्थल को पूजने के साथ महू के मिट्टी को भी प्रणाम करते हैं और बाबा साहब की आस्था में यहां रुक कर अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

Last Updated : Apr 14, 2023, 8:51 AM IST
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