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औद्योगिक राजधानी के उद्योगों पर कोरोना का कहर, 20 फीसदी ही बचा व्यापार

लॉकडाउन और उसके बाद संक्रमण फैलने के नाम पर बाजारों को बंद रखने के तरह-तरह के कायदे कानून, इन हालातों में न केवल बाजार बल्कि व्यापारी छोटे दुकानदार और कामकाजी मजदूरों की कमर टूट चुकी है. जहां पहले जो व्यापार 100 फीसदी मुनाफे वाला था, उसमें अब 20 फीसदी ग्राहकी भी नहीं बची है.

corona effect on industries
उद्योगों पर कोरोना का कहर
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Published : Jul 31, 2020, 6:18 PM IST

इंदौर। देश और दुनिया में स्वच्छता और खानपान के लिए चर्चित इंदौर शहर पर कोरोना के कहर के बाद लॉकडाउन की ऐसी मार पड़ी है कि यहां के पारंपरिक और चमक दमक वाले प्रमुख बाजारों की रौनक गायब हो चुकी हैं, बीते 4 महीने से लॉकडाउन के कारण बाजार बंद रहने से जहां व्यापार ठप हो चुका है, वहीं अब नए सिरे से ग्राहकी जमने को लेकर भी महामारी के दौर में सबसे बड़ी चुनौती है. हालांकि फिर भी उद्योग और औद्योगिक संगठन नए सिरे से बाजार खड़ा करने को लेकर कमर कस चुके हैं.

उद्योगों पर कोरोना का कहर

बाजारों से रौनक गायब

इंदौर का 56 दुकान हो या सर्राफा बाजार, सियागंज हो या मारोठिया बाजार इन दिनों इन तमाम बाजारों से त्योहार के सीजन में भी रौनक गायब है, वजह है 4 महीने तक लंबा लॉकडाउन और उसके बाद संक्रमण फैलने के नाम पर बाजारों को बंद रखने के तरह-तरह के कायदे कानून, इन हालातों में न केवल बाजार बल्कि व्यापारी छोटे दुकानदार और कामकाजी मजदूरों की कमर टूट चुकी है. जहां पहले जो व्यापार 100 फीसदी मुनाफे वाला था, उसमें अब 20 फीसदी ग्राहकी भी नहीं बची है. नतीजतन मुनाफा तो अब दूर की बात है जो लागत लगी है वही निकालने को लेकर व्यापारी परेशान हैं.

औद्योगिक संगठन के सामने परेशानी

सबसे बड़ी परेशानी मजदूरों का पलायन, कच्चे माल की उपलब्धता और माल की डिलीवरी ना हो पाना है, लिहाजा उत्पादन 50 फीसदी ही हो पा रहा है, जो उत्पादन हो रहा है उसे देश के अन्य इलाकों में लॉकडाउन के कारण डिलीवर करना मुश्किल हो रहा है. इसके अलावा डीजल पेट्रोल के दाम बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन की दरें दोगनी हो चुकी हैं. इसके अलावा मजदूरों की कमी के चलते उद्योगों और मिलो में काम लगातार प्रभावित हो रहा है. इसके बावजूद औद्योगिक संगठन व्यवसाय को पटरी पर लाने के लिए हर संभव कोशिश में जुटे हैं.

व्यापारी बेहद परेशान

शहर के जो छोटे व्यापारी हैं उनका व्यवसाय लॉकडाउन से तो प्रभावित हुआ ही है इसके अलावा इंदौर में संक्रमण रोकने के लिए बाजारों को खोलने संबंधी बनाए गए लेफ्ट और राइट नियम के कारण प्रभावित हुए हैं, हालांकि कुछ इलाकों में जिला प्रशासन के इस फैसले से राहत भी मिली है, लेकिन लगातार बढ़ते संक्रमण के कारण फिर से व्यापार-व्यवसाय ठप होने की आशंका से व्यापारी अब भी परेशान हैं.

सरकारी मदद से भी राहत नहीं

केंद्र सरकार ने उद्योगों को पुन: शुरू करने के लिए 20 परसेंट जो राशि दी है, उससे बमुश्किल उद्योग, बिजली बिल, शासन का बकाया और कच्चा माल खरीद पा रहे हैं, इधर, डीजल और पेट्रोल के दामों पर भी कोई रियायत नहीं मिलने के कारण उद्योगों को भी इससे जुड़ी परेशानी झेलनी पड़ रही है.

साढ़े तीन हजार उद्योग 80 फीसदी चालू

एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज के मुताबिक इंदौर में साढ़े तीन हजार उद्योगों को चालू किया गया है, लेकिन व्यापारिक चेन नहीं बन पाने के कारण उद्योग 500 से ज्यादा उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं, जो माल भेजा जा रहा है उसको लेकर भुगतान में परेशानी आ रही है. उद्योगों की सबसे बड़ी परेशानी यह भी है की अगर उद्योग शुरू करने पर मजदूर या श्रमिक संक्रमित हुए तो पूरे उद्योग को ही बंद करना पड़ेगा. लिहाजा व्यापारियों को संक्रमण से खुद से बचाने के अलावा मजदूरों को भी संक्रमण से बचाना पड़ रहा है.

सरकारी सप्लाई और शासन का कामकाज भी अटका

प्राइवेट और निजी उद्योगों में सरकारी जरूरतों का जो सामान तैयार किया जा रहा है. उसकी सप्लाई शासन स्तर पर भी नहीं हो पा रही है, क्योंकि लॉकडाउन के बाद सरकारें भी वित्तीय संकट से जूझ रही हैं. लिहाजा शासकीय विभागों द्वारा जिस सामान की खरीदी होती थी, वह भी अभी पेंडिंग है. लॉकडाउन के पहले जो सामग्री शासन को भेजी गई थी, उसके पेमेंट में भी काफी दिक्कतें व्यापारियों को हो रही हैं.

खानपान के उद्योग में भी संकट

इंदौर के प्रसिद्ध 56 दुकान के अलावा सराफा चौपाटी समेत किराने और अन्य तमाम सामग्री के बाजार भी इन दिनों सूने पड़े हैं. संक्रमण की आशंका में कुछ बाजारों को जहां खोलने की इजाजत नहीं मिली है. वहीं जो खुले हैं वहां संक्रमण के डर से ग्राहक नहीं पहुंच पा रहे हैं. ऐसे में जरूरत के सामान का बाजार तो सामान्य स्थिति में आ रहा है, लेकिन खानपान की दुकानें और इससे जुड़े अन्य तमाम उद्योग अभी भी कोरोना की मार झेलने को मजबूर हैं.

इंदौर। देश और दुनिया में स्वच्छता और खानपान के लिए चर्चित इंदौर शहर पर कोरोना के कहर के बाद लॉकडाउन की ऐसी मार पड़ी है कि यहां के पारंपरिक और चमक दमक वाले प्रमुख बाजारों की रौनक गायब हो चुकी हैं, बीते 4 महीने से लॉकडाउन के कारण बाजार बंद रहने से जहां व्यापार ठप हो चुका है, वहीं अब नए सिरे से ग्राहकी जमने को लेकर भी महामारी के दौर में सबसे बड़ी चुनौती है. हालांकि फिर भी उद्योग और औद्योगिक संगठन नए सिरे से बाजार खड़ा करने को लेकर कमर कस चुके हैं.

उद्योगों पर कोरोना का कहर

बाजारों से रौनक गायब

इंदौर का 56 दुकान हो या सर्राफा बाजार, सियागंज हो या मारोठिया बाजार इन दिनों इन तमाम बाजारों से त्योहार के सीजन में भी रौनक गायब है, वजह है 4 महीने तक लंबा लॉकडाउन और उसके बाद संक्रमण फैलने के नाम पर बाजारों को बंद रखने के तरह-तरह के कायदे कानून, इन हालातों में न केवल बाजार बल्कि व्यापारी छोटे दुकानदार और कामकाजी मजदूरों की कमर टूट चुकी है. जहां पहले जो व्यापार 100 फीसदी मुनाफे वाला था, उसमें अब 20 फीसदी ग्राहकी भी नहीं बची है. नतीजतन मुनाफा तो अब दूर की बात है जो लागत लगी है वही निकालने को लेकर व्यापारी परेशान हैं.

औद्योगिक संगठन के सामने परेशानी

सबसे बड़ी परेशानी मजदूरों का पलायन, कच्चे माल की उपलब्धता और माल की डिलीवरी ना हो पाना है, लिहाजा उत्पादन 50 फीसदी ही हो पा रहा है, जो उत्पादन हो रहा है उसे देश के अन्य इलाकों में लॉकडाउन के कारण डिलीवर करना मुश्किल हो रहा है. इसके अलावा डीजल पेट्रोल के दाम बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन की दरें दोगनी हो चुकी हैं. इसके अलावा मजदूरों की कमी के चलते उद्योगों और मिलो में काम लगातार प्रभावित हो रहा है. इसके बावजूद औद्योगिक संगठन व्यवसाय को पटरी पर लाने के लिए हर संभव कोशिश में जुटे हैं.

व्यापारी बेहद परेशान

शहर के जो छोटे व्यापारी हैं उनका व्यवसाय लॉकडाउन से तो प्रभावित हुआ ही है इसके अलावा इंदौर में संक्रमण रोकने के लिए बाजारों को खोलने संबंधी बनाए गए लेफ्ट और राइट नियम के कारण प्रभावित हुए हैं, हालांकि कुछ इलाकों में जिला प्रशासन के इस फैसले से राहत भी मिली है, लेकिन लगातार बढ़ते संक्रमण के कारण फिर से व्यापार-व्यवसाय ठप होने की आशंका से व्यापारी अब भी परेशान हैं.

सरकारी मदद से भी राहत नहीं

केंद्र सरकार ने उद्योगों को पुन: शुरू करने के लिए 20 परसेंट जो राशि दी है, उससे बमुश्किल उद्योग, बिजली बिल, शासन का बकाया और कच्चा माल खरीद पा रहे हैं, इधर, डीजल और पेट्रोल के दामों पर भी कोई रियायत नहीं मिलने के कारण उद्योगों को भी इससे जुड़ी परेशानी झेलनी पड़ रही है.

साढ़े तीन हजार उद्योग 80 फीसदी चालू

एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज के मुताबिक इंदौर में साढ़े तीन हजार उद्योगों को चालू किया गया है, लेकिन व्यापारिक चेन नहीं बन पाने के कारण उद्योग 500 से ज्यादा उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं, जो माल भेजा जा रहा है उसको लेकर भुगतान में परेशानी आ रही है. उद्योगों की सबसे बड़ी परेशानी यह भी है की अगर उद्योग शुरू करने पर मजदूर या श्रमिक संक्रमित हुए तो पूरे उद्योग को ही बंद करना पड़ेगा. लिहाजा व्यापारियों को संक्रमण से खुद से बचाने के अलावा मजदूरों को भी संक्रमण से बचाना पड़ रहा है.

सरकारी सप्लाई और शासन का कामकाज भी अटका

प्राइवेट और निजी उद्योगों में सरकारी जरूरतों का जो सामान तैयार किया जा रहा है. उसकी सप्लाई शासन स्तर पर भी नहीं हो पा रही है, क्योंकि लॉकडाउन के बाद सरकारें भी वित्तीय संकट से जूझ रही हैं. लिहाजा शासकीय विभागों द्वारा जिस सामान की खरीदी होती थी, वह भी अभी पेंडिंग है. लॉकडाउन के पहले जो सामग्री शासन को भेजी गई थी, उसके पेमेंट में भी काफी दिक्कतें व्यापारियों को हो रही हैं.

खानपान के उद्योग में भी संकट

इंदौर के प्रसिद्ध 56 दुकान के अलावा सराफा चौपाटी समेत किराने और अन्य तमाम सामग्री के बाजार भी इन दिनों सूने पड़े हैं. संक्रमण की आशंका में कुछ बाजारों को जहां खोलने की इजाजत नहीं मिली है. वहीं जो खुले हैं वहां संक्रमण के डर से ग्राहक नहीं पहुंच पा रहे हैं. ऐसे में जरूरत के सामान का बाजार तो सामान्य स्थिति में आ रहा है, लेकिन खानपान की दुकानें और इससे जुड़े अन्य तमाम उद्योग अभी भी कोरोना की मार झेलने को मजबूर हैं.

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