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Consumer Price Index पहुंचा 6.3 फीसदी पर, महंगाई ने तोड़ी आम आदमी की कमर

एक तरफ कोरोना दूसरी तरफ महंगाई. दोनों ने ही आम आदमी के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाला है. अभी-अभी प्रदेश कोरोना कर्फ्यू से उबरा भी नहीं कि महंगाई महामारी बनकर लोगों को सताने लगी है. खाद्य तेल हो या पेट्रोल-डीजल की कीमत, दोनों ही आसमान छू रहे हैं.

Common man troubled by inflation
बढ़ती महंगाई ने बढ़ाई आम आदमी की मुसीबत
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Published : Jun 24, 2021, 12:09 PM IST

इंदौर। बढ़ती महंगाई और महामारी ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है. इसकी एक अहम वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल बताई जाती है तो दूसरी ओर खाद्य तेलों का उत्पादन घटने से भी फर्क पड़ा है. वहीं देश में महंगाई बीते 8 साल के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है. अर्थशास्त्री इसके पीछे की वजह भी बताते हैं और इससे पार पाने के तरीके भी सुझा रहें हैं. इंदौर के प्रख्यात अर्थशास्त्री जयंतीलाल भंडारी ने भी महंगाई से निपटने के तरीके सुझाए हैं. उनका मानना है कि इससे आम आदमी कि परेशानियों पर काफी हद तक ब्रेक लगेगा. भंडारी ने तेल उत्पादों को जीएसटी (GST) के दायरे में लाने की केंद्र सरकार से अपील की हैं.

आम आदमी पर पड़ी महंगाई की मार

एक देश एक कर, पेट्रोल-डीजल पर भी हो लागू

जयंतीलाल भंडारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक कर नीति को लागू कराने की बात कहते हैं. ने जो सुझाव दिए हैं उनके मुताबिक महंगाई पर नियंत्रण के लिए सर्वाधिक प्रभावी उपाय पेट्रोल-डीजल को जीएसटी (GST) के दायरे में लाना ही होगा. उन्होंने कहा मोदी सरकार ने देश में 'एक देश एक कर' की नीति की घोषणा की है, लेकिन पेट्रोल-डीजल को अब तक जीएसटी (GST) के दायरे में नहीं लाया गया है. ऐसी स्थिति में अलग-अलग राज्य पेट्रोल-डीजल पर मनमाने टैक्स वसूल रहे हैं. दरअसल इसकी वजह पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र और राज्य सरकार को होने वाली सबसे बड़ी आय हैं. इसलिए केंद्र और राज्य सरकारें उपभोक्ता हितों पर ध्यान देने की बजाए अपने खर्चों के लिहाज से पेट्रोल डीजल में आय को प्राथमिकता देती रही हैं जिसका खामियाजा महंगे पेट्रोल और डीजल के रूप में आम जनता को भुगतना पड़ रहा है.

अब तक 27 बार बढ़े Petrol-Diesel के दाम

गौरतलब है कि, बीते साल से ही कोरोना की मार झेल रहे देशभर के लोगों पर अब महंगाई की दोहरी मार पड़ रही है. महंगाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जनवरी से लेकर 20 जून तक देश में पेट्रोल डीजल की कीमतें 27 बार बढ़ी हैं. वहीं केंद्र सरकार के महंगाई के आंकलन करने वाले आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो बीते 8 सालों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) के हिसाब से 6.3% हो चुकी है. जो पिछले 8 साल के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. इधर महंगाई का सबसे व्यापक प्रभाव हर घर की रसोई पर पड़ रहा है,घर का बजट दम तोड़ रहा है. इधर भारत में दलहन और तिलहन फसलों की पैदावार कम होने के कारण भी बड़ी मात्रा में खाद्य तेल अन्य देशों से आयात करना पड़ रहा है जिसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ रहा है.

समझते हैं कीमत वृद्धि का गुणा भाग

अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इस समय कच्चे तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल हो चुकी है. ऐसी स्थिति में तेल उत्पादक देशों से तेल ऊंची कीमतों पर खरीदा जा रहा है. चूंकि केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को अंतरराष्ट्रीय बाजार से जोड़ रखा है सो दामों में वृद्धि देखने को मिल रही है. वहीं सरकार पेट्रोल-डीजल पर किसी प्रकार की सब्सिडी (Subsidy) भी नहीं देती है इस वजह से भी आम उपभोक्ताओं को पेट्रोल अत्यधिक महंगी दरों पर खरीदना पड़ रहा है. देश के अर्थशास्त्रियों के मुताबिक पेट्रोल डीजल पर प्रति लीटर के मान से 60 से 65 रुपए तक टैक्स लगाया गया है. जिसमें एक्साइज टैक्स (excise tax), वैट टैक्स (vat tax), लोकल टैक्स (local tax) जोड़ा गया है. फलस्वरुप पेट्रोल-डीजल की मूल कीमतों पर उपभोक्ताओं को दोगने से भी ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ रहा है.

पन्ना में पकड़ में आईं दो लुटेरी दुल्हनें, भोले-भाले लोगों को बनाती थीं शिकार, 14 लाख से ज्यादा का माल जब्त

लॉकडाउन से भी पड़ा असर

कोरोना महामारी के कारण बीते साल से देश भर में लगा लॉकडाउन (Lockdown) भी महंगाई की बड़ी वजह है. दरअसल लॉकडाउन के कारण देश में लॉजिस्टिक की समस्या बड़े पैमाने पर गहराई है. अंतर राज्य स्तर पर उपभोक्ता सामग्री एक दूसरे स्थान पर नहीं भेजे जाने के कारण उपभोक्ता सामग्री की कीमतों में उछाल आया है. इसके अलावा जरूरत की चीजों का परिवहन नहीं होने के कारण भी सीमित उपभोक्ता सामग्री को महंगे दामों पर बेचा गया. जिनकी कीमतें लॉकडाउन खुलने के बाद भी कम नहीं हो पाई हैं. इधर लॉकडाउन खुलने के बाद अब जबकि पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने से परिवहन की दरें भी 40 से 50 परसेंट तक बढ़ गई हैं. तो इस बात की उम्मीद कम ही है कि उपभोक्ता सामग्री के परिवहन के बावजूद भी उनकी कीमतों में कभी आएगी. ऐसे में तय माना जा रहा है कि आगामी दिनों में भी आम लोगों को महंगाई के भीषण दौर का सामना करना पड़ सकता है.

इंदौर। बढ़ती महंगाई और महामारी ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है. इसकी एक अहम वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल बताई जाती है तो दूसरी ओर खाद्य तेलों का उत्पादन घटने से भी फर्क पड़ा है. वहीं देश में महंगाई बीते 8 साल के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है. अर्थशास्त्री इसके पीछे की वजह भी बताते हैं और इससे पार पाने के तरीके भी सुझा रहें हैं. इंदौर के प्रख्यात अर्थशास्त्री जयंतीलाल भंडारी ने भी महंगाई से निपटने के तरीके सुझाए हैं. उनका मानना है कि इससे आम आदमी कि परेशानियों पर काफी हद तक ब्रेक लगेगा. भंडारी ने तेल उत्पादों को जीएसटी (GST) के दायरे में लाने की केंद्र सरकार से अपील की हैं.

आम आदमी पर पड़ी महंगाई की मार

एक देश एक कर, पेट्रोल-डीजल पर भी हो लागू

जयंतीलाल भंडारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक कर नीति को लागू कराने की बात कहते हैं. ने जो सुझाव दिए हैं उनके मुताबिक महंगाई पर नियंत्रण के लिए सर्वाधिक प्रभावी उपाय पेट्रोल-डीजल को जीएसटी (GST) के दायरे में लाना ही होगा. उन्होंने कहा मोदी सरकार ने देश में 'एक देश एक कर' की नीति की घोषणा की है, लेकिन पेट्रोल-डीजल को अब तक जीएसटी (GST) के दायरे में नहीं लाया गया है. ऐसी स्थिति में अलग-अलग राज्य पेट्रोल-डीजल पर मनमाने टैक्स वसूल रहे हैं. दरअसल इसकी वजह पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र और राज्य सरकार को होने वाली सबसे बड़ी आय हैं. इसलिए केंद्र और राज्य सरकारें उपभोक्ता हितों पर ध्यान देने की बजाए अपने खर्चों के लिहाज से पेट्रोल डीजल में आय को प्राथमिकता देती रही हैं जिसका खामियाजा महंगे पेट्रोल और डीजल के रूप में आम जनता को भुगतना पड़ रहा है.

अब तक 27 बार बढ़े Petrol-Diesel के दाम

गौरतलब है कि, बीते साल से ही कोरोना की मार झेल रहे देशभर के लोगों पर अब महंगाई की दोहरी मार पड़ रही है. महंगाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जनवरी से लेकर 20 जून तक देश में पेट्रोल डीजल की कीमतें 27 बार बढ़ी हैं. वहीं केंद्र सरकार के महंगाई के आंकलन करने वाले आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो बीते 8 सालों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) के हिसाब से 6.3% हो चुकी है. जो पिछले 8 साल के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. इधर महंगाई का सबसे व्यापक प्रभाव हर घर की रसोई पर पड़ रहा है,घर का बजट दम तोड़ रहा है. इधर भारत में दलहन और तिलहन फसलों की पैदावार कम होने के कारण भी बड़ी मात्रा में खाद्य तेल अन्य देशों से आयात करना पड़ रहा है जिसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ रहा है.

समझते हैं कीमत वृद्धि का गुणा भाग

अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इस समय कच्चे तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल हो चुकी है. ऐसी स्थिति में तेल उत्पादक देशों से तेल ऊंची कीमतों पर खरीदा जा रहा है. चूंकि केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को अंतरराष्ट्रीय बाजार से जोड़ रखा है सो दामों में वृद्धि देखने को मिल रही है. वहीं सरकार पेट्रोल-डीजल पर किसी प्रकार की सब्सिडी (Subsidy) भी नहीं देती है इस वजह से भी आम उपभोक्ताओं को पेट्रोल अत्यधिक महंगी दरों पर खरीदना पड़ रहा है. देश के अर्थशास्त्रियों के मुताबिक पेट्रोल डीजल पर प्रति लीटर के मान से 60 से 65 रुपए तक टैक्स लगाया गया है. जिसमें एक्साइज टैक्स (excise tax), वैट टैक्स (vat tax), लोकल टैक्स (local tax) जोड़ा गया है. फलस्वरुप पेट्रोल-डीजल की मूल कीमतों पर उपभोक्ताओं को दोगने से भी ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ रहा है.

पन्ना में पकड़ में आईं दो लुटेरी दुल्हनें, भोले-भाले लोगों को बनाती थीं शिकार, 14 लाख से ज्यादा का माल जब्त

लॉकडाउन से भी पड़ा असर

कोरोना महामारी के कारण बीते साल से देश भर में लगा लॉकडाउन (Lockdown) भी महंगाई की बड़ी वजह है. दरअसल लॉकडाउन के कारण देश में लॉजिस्टिक की समस्या बड़े पैमाने पर गहराई है. अंतर राज्य स्तर पर उपभोक्ता सामग्री एक दूसरे स्थान पर नहीं भेजे जाने के कारण उपभोक्ता सामग्री की कीमतों में उछाल आया है. इसके अलावा जरूरत की चीजों का परिवहन नहीं होने के कारण भी सीमित उपभोक्ता सामग्री को महंगे दामों पर बेचा गया. जिनकी कीमतें लॉकडाउन खुलने के बाद भी कम नहीं हो पाई हैं. इधर लॉकडाउन खुलने के बाद अब जबकि पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने से परिवहन की दरें भी 40 से 50 परसेंट तक बढ़ गई हैं. तो इस बात की उम्मीद कम ही है कि उपभोक्ता सामग्री के परिवहन के बावजूद भी उनकी कीमतों में कभी आएगी. ऐसे में तय माना जा रहा है कि आगामी दिनों में भी आम लोगों को महंगाई के भीषण दौर का सामना करना पड़ सकता है.

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