इंदौर। "होनहार बिरवान के होत चिकने पात", यह कहावत इंदौर की समृद्धि जायसवाल पर बिल्कुल सही बैठती है.महज आठ साल की उम्र की यह बच्ची जब भरतनाट्यम करना शुरु करती है, तो देखने वाले दांतो तले उंगली दबा लेते हैं. उम्र तो छोटी है, लेकिन अभी से समृद्धि जिस तरह से चेहरे पर भाव भंगिमाएं लाती है, उसे देखकर सभी उसकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाते.
भारतीय संस्कृति की सबसे प्राचीन नृत्य कलाओं में से एक भरतनाट्यम, अब विलुप्त होता जा रहा है. देश के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से सबसे प्राचीन यह नृत्य़, अब अपना महत्व और मूल्य खो रहा है.लेकिन, जहां एक तरफ बच्चों में हिपहॉप और सालसा जैसे पाश्चात्य नृत्य सीखने की ललक बढ़ रही है. वहीं, दूसरी तरफ इंदौर में एक बालिका ऐसी भी है, जो देश की इस विरासत को संजो कर अपना नाम रोशन कर रही है.कई राष्ट्रीय पुरस्कारों को जीत चुकी समृद्धि जायसवाल सिंगापुर में भी भरतनाट्यम की प्रस्तुति दे चुकी है.
समृद्धि ने साढ़े तीन साल की उम्र में ही भरतनाट्यम सीखना शुरु कर दिया था. समृद्धि इसका श्रेय अपने माता-पिता और गुरु को देती है, जिन्होंने इतनी कठिन विधा में उसे महारत हासिल करवाई. समृद्धि के गुरु आशीष पिल्लई का कहना है कि भरतनाट्यम में लय और ताल का बहुत महत्व होता है. इसे सीखने में लगभग 7-8 साल लग जाते हैं.
समृद्धि ने 8 साल में जिस भरतनाट्यम को पूरी तरह से सीख लिया है, उसे पूरी तरह से समझने में ही काफी समय लग जाता है. पढ़ाई में भी अव्वल समृद्धि का ये हुनर आज भी भारतीय संस्कृति को जीवित रखे हुए