होशंगाबाद। हरिद्वार में हर की पौड़ी पर बने विशाल घंटाघर को तो हम सभी ने देखा ही है. लेकिन यहां महाशिवरात्रि से आरंभ हो रहे शाही स्नान के पूर्व कुंभ के समय निर्धारण की गणना की विधि समझाने के लिए नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने एक नदी के किनारे घड़ी लगाई. उसमें घंटे के कांटे पर जुपिटर तो वहीं मिनट के कांटे पर सूर्य परिक्रमा को करते दिखाया है. उन्होंने यह भी बताया कि हर 12 साल में आने वाला कुंभ इस बार 11वें वर्ष में ही क्यों आ गया.
- हर 12 वर्ष में गृह बदलते है अपनी दिशा
कुंभ घड़ी के चलित मॉडल की मदद से सारिका ने जानकारी दी कि आमतौर पर हर 12 वर्ष बाद किसी एक स्थान पर लगने वाले कुंभ का निर्धारण आकाश में दिखने वाले बृहस्पति (जुपिटर) और सूर्य की स्थिति के आधार पर तय होता है. जिस प्रकार किसी घड़ी में घंटे और मिनट के दो कांटे समय तय करते हैं. इसके 12 घंटे बाद कांटे अपनी पहली अवस्था में आ जाते हैं. ठीक इसी प्रकार लगभग हर 12 वर्ष बाद जुपिटर और हर 12 माह बाद सूर्य आकाश में अपने पहले स्थान पर आ जाता है. इनके 12 वर्ष बाद लौटकर अपने स्थान पर आने पर हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक के कुंभ को तय किया गया था.
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- हरिद्वार में कुंभ के संयोग
हरिद्वार का कुंभ तब होता है जब आकाश में बृहस्पति कुंभ तारामंडल में और सूर्य मेष तारामंडल के सामने आते दिखते हैं. इस बार जुपिटर 11वें साल में ही कुंभ तारामंडल के पास पहुंच रहा है और अप्रैल माह में सूर्य मेष तारामंडल में रहेगा. इसलिए हरिद्वार में कुंभ का आयोजन 2010 में होने के बाद 11 वर्ष में ही 1 साल पहले होने जा रहा है.
- हर आठवां कुंभ आता है 11 वर्ष बाद
सारिका ने जानकारी दी कि जुपिटर को सूर्य की एक परिक्रमा करने में पूरा 12 साल नहीं लगते बल्कि 11.86 साल लगते हैं. इस तरह हर 12 साल में 47 दिन का अंतर आ जाता है. सातवें और आठवें कुंभ के बीच यह अंतर बढ़ते-बढ़ते लगभग 1 साल हो जाता है. ऐसे में हर आठवां कुंभ 11 वर्ष बाद ही हो जाता है.
- इसके पहले 11 साल में कब हुआ था कुंभ
इसके पहले 1927 में कुंभ होने के बाद अगला कुंभ इसके 12 साल बाद 1939 में होना था लेकिन वह 11 साल 1938 में ही हो गया था.