होशंगाबाद। बीते दिनों से प्रदेश सहित जिले में भारी बारिश का दौर जारी है. प्रदेश के कई जिले जलमग्न हो गए हैं. खासकर नर्मदा नदी के रौद्र रूप से लोगों को काफी समस्या हो रही है. हालांकि अब बाढ़ का पानी कम हो गया है, जिसके बाद तबाही का असली मंजर दिखने लगा है. बाढ कम होने के बाद लोग अपने आशियाने सजाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल तो प्रशासनिक लापरवाही के कारण लोगों को तंबू में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है.
भीषण बाढ़ ने अपने पीछे तबाही का मंजर छोड़ दिया है दर्द ऐसा है कि जिससे उभरना मुश्किल है. पानी की तेज धार ने पक्के मकानों को धराशाई कर दिया तो फिर कच्चे मकानों का क्या हुआ होगा आप सोच सकते है. फसले चौपट हो गई. कई स्थानों पर अभी भी पानी भरा हुआ है. इसलिए क्षति का आकलन करना मुश्किल है, लेकिन मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि करोड़ों का नुकसान हुआ है.
सड़कों पर रह रहे बाढ़ पीड़ित
नर्मदा और तवा नदी के बीचोबीच बसे गांव पूरी तरह डूब गए. इन गांव में नर्मदा और तवा दोनों नदियों का पानी भर गया और तेज बहाव में ग्रामीणों का सब कुछ बर्बाद हो गया. तकरीबन डेढ़ सौ से 200 परिवार सड़कों पर अस्थाई तंबू लगाकर रहने को मजबूर हैं. अनाज गीला हो चुका है तो अन्य समान बाढ़ में बह गया. लिहाजा इन लोगों को खाने तक की परेशानी हो रही है.
अभी तक नहीं पहुचा प्रशासन
लगभग दो दिन तक 10 से 12 फीट पानी में फंसे लोग ग्रामीणों ने निर्माणाधीन नेशनल हाईवे सहित सरकारी बिल्डिंग में जाकर किसी तरह अपनी जान बचाई. बाढ़ का पानी अधिक होने के चलते प्रशासन भी तीन दिन तक इन ग्रामीणों तक नहीं पहुंच पाया था. ऐसे लोगों ने किसी तरह से भूखे प्यासे रहकर ही गुजारा किया. सड़कों पर रह रहे लोग सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अभी तक सर्वे टीम ग्रामीणों तक नहीं पहुंच पाई हैं.
नहीं बच सका एक भी मकान सभी घर टूटे
होशंगाबाद मुख्यालय से सटे तवा और नर्मदा नदी के संगम के नजदीक बसे बांद्राबांध, घानावड़, बरखेड़ी गांव में एक भी घर बच नहीं सका है. ग्रामीणों ने अचनाक से तवा नदी से पानी से मुश्किल से बचकर सरकारी बिल्डिंग और मंदिरों की छत पर छिकाना बनाया और दो दिन गुजारे और जब पानी उतर गया तो पूरा गांव सड़क पर तंबू लगाकर रहने को मजबूर है.
प्रशासन जल्द कराएगा सर्वे
तबाही इतने बड़े पैमाने पर है कि प्रशासन के सर्वे आदि करने में समय लग रहा है, हालांकि राजस्व विभाग सहित अन्य विभाग की कई टीमें सर्वे के काम में लगी हैं, जिन्हें जल्द ही सर्वे की रिपोर्ट तैयार कर भेजे जाने के निर्देश दिए गए हैं.
1973 की बाढ़ के तरह था मंजर
ग्रामीणों ने बताया कि इससे पहले इस तरह की बाढ़ 1973 में आई थी. लगातार तेज बारिश और डैम खुलने से गांव मे तेजी से पानी भरता चला गया. वहीं फसलों में भी बाढ़ में आई से रेत जमा हो गई, जिससे खड़ी हुई फसल बर्बाद हो गई है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 1973 में भी ऐसा ही मंजर था जब सब कुछ बर्बाद हो गया था. उस समय पक्के मकान नहीं होते थे तो तबाही और भी भयावह होती थी.