होशंगाबाद। सनातन धर्म के अनुसार देवी के 52वें पीठों में से एक हिंगलाज माता का मंदिर है. जो पाकिस्तान की कराची के नजदीक बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है. पाकिस्तान में रह रहे हिंदू की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी मंदिर है. पाकिस्तान में मूल देवी के मंदिर के बाद मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में भी देवी की प्रतिमा स्थित है. जहां हिंगलाज देवी की उपासना की जाती है. माना जाता है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. इस मंदिर में साधना करने के लिए स्वामी विवेकानंद पहुंचे थे.
मंदिर के निर्माण का पौराणिक महत्व
हजारों सालों से नर्मदा नदी का तट, साधुओं और मुनियों की तपस्वी स्थल रहा है. जहां पर बैठकर साधुओं ने सालों साल तक तपस्या की है. साथ ही घाटों पर हजारों की संख्या में मंदिर भी स्थित है. ऐसे ही नर्मदा किनारे हिंगलाज देवी का मंदिर भी सैकड़ों सालों से स्थित था. जो यहां की एक गुफा में बना हुआ था, लेकिन जंगल के बीच होने के चलते कम ही लोगों को इसकी जानकारी थी.1970 की नर्मदा की बाढ़ में मंदिर मिट्टी और रेत से ढक गया था. तकरीबन 25 साल तक मंदिर का अस्तित्व नहीं मिल पा रहा था और लोगों को मंदिर की जानकारी नहीं मिल सकी.
बाढ़ में ढक गया था मंदिर
25 साल से सेवा करते आ रहे, भवानी शंकर तिवारी बताते हैं कि बात 1970 की है. शहर से करीब 4 किलोमीटर दूर नर्मदा नदी किनारे एक गुफा थी, जिसमें हिंगलाज देवी की मूर्ति विराजमान थी. इसकी पूजा की जाती थी. यहां रहने वाले बाबा इसकी मूर्ति की पूजा करते थे, इस दौरान नर्मदा में आई बाढ़ के बाद यहां पर सब कुछ नष्ट हो गया. गुफा भी नष्ट हो गई, और मूर्ति का भी पता नहीं चल सका.
ठेकेदार को आया था सपना
1993 में दिल्ली मुंबई रेलवे रूट के लिये रेलवे द्वारा दूसरी रेलवे लाइन का निर्माण कराया जा रहा था. इस दौरान नर्मदा नदी में रेलवे पुल का निर्माण कार्य शुरू किया गया. यहां पर पुल के लिए पिलर बनाने के दौरान काफी परेशानी का सामना ठेकेदार को करना पड़ा.
पंडित भवानी शंकर बताते हैं कि राजकुमार मालवी नाम के ठेकेदार द्वारा यहां पर कंस्ट्रक्शन का कार्य कराया जा रहा था. और पुल निर्माण के बाद बार-बार टूट जा रहा था और स्थापित नहीं होने के चलते परेशानी का सामना करना पड़ रहा था, कहा जाता है कि इसके बाद देवी जी ने एक दिन ठेकेदार को सपने में आकर यहां पर मंदिर होने की बात कहते हुए इसे बनवाने की बात कही. जिसके बाद ठेकेदार द्वारा उस जगह पर खुदाई का कार्य कराया गया. जहां पर हिंगलाज देवी की प्रतिमा उसी स्थान पर निकली ठेकेदार के माध्यम से उस जगह पर मंदिर का निर्माण किया गया.
पुल निर्माण के दौरान मिले थे मंदिर के अवशेष
इतिहासकार और लंबे समय तक नर्मदांचल पर रिसर्च करती आ रही इतिहास प्रोफसर हंसा व्यास बताती हैं, कि जब 1993 में ब्रिज का निर्माण किया जा रहा था. इसी दौरान खुदाई में मंदिर अस्तित्व में आया था और कहा जाता है कि ये मंदिर पहले ही रहा होगा. इसके अस्तित्व भी देखने को मिलते हैं.
साल भर चलता है भंडारा
शहर से करीब चार किलोमीटर दूर नर्मदा के खर्रा घाट के किनारे पर स्थित माता हिंगलाज देवी का मंदिर मौजूद है, जहां साल भर भंडारे का आयोजन किया जाता है. साथ ही यह शहर की आस्था का बड़ा केंद्र है. जहां पर सैकड़ों की संख्या में श्रदालु पहुंचते हैं. साथ ही यहां पर लोग सामुहिक रूप से पूजन करते हैं.
आज भी रेलवे करता है मंदिर का संरक्षण
हिंगलाज देवी मंदिर पर आज भी रेलवे के अधिकारियों द्वारा लगातार संरक्षण का कार्य किया जाता है. मंदिर के जीर्णोद्धार सहित अन्य कार्यों को रेलवे के अधिकारियों द्वारा निर्माण कार्य कराया जाता है. साथ ही आरपीएफ द्वारा भी यहां के असामाजिक तत्वों पर कार्रवाई की जाती है. वहीं मंदिर के परिसर में होने वाले धार्मिक कार्यों के लिए होशंगाबाद रेलवे के अधिकारियों से अनुमति ली जाती है. जिसे लेकर रेलवे विभाग द्वारा निर्देश भी लिखे हुए हैं,