होशंगाबाद। शहर में प्रदेश का पहला आरओपी (रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योरिटी) सेंटर खोला गया है, इसके साथ ही पहले रेटिनोपैथी टेस्ट की शुरुआत की गई है, जिला अस्पताल में भोपाल से पहुंची टीम ने नवजात शिशुओं को आरओपी बीमारी को दूर करने के लिए कैम्प का आयोजन किया. जिसमें अस्पताल के सभी नवजात शिशुओं की जांच की गई. साथ ही कुछ बच्चों को अंधा होने से भी बचाया गया.
एमपी में पहला ROP सेंटर शुरू, अविकसित बच्चे अब नहीं होंगे अंधापन के शिकार
होशंगाबाद में मध्यप्रदेश का पहला ROP सेंटर खोला गया है, जिला अस्पताल में भोपाल से पहुंची टीम ने कैंप लगाकर नवजात शिशुओं की जांच की.
एमपी में पहला ROP सेंटर शुरू
होशंगाबाद। शहर में प्रदेश का पहला आरओपी (रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योरिटी) सेंटर खोला गया है, इसके साथ ही पहले रेटिनोपैथी टेस्ट की शुरुआत की गई है, जिला अस्पताल में भोपाल से पहुंची टीम ने नवजात शिशुओं को आरओपी बीमारी को दूर करने के लिए कैम्प का आयोजन किया. जिसमें अस्पताल के सभी नवजात शिशुओं की जांच की गई. साथ ही कुछ बच्चों को अंधा होने से भी बचाया गया.
Intro:होशंगाबाद में प्रदेश का पहला आर ओ पी सेंटर खोला गया है साथ ही पहला रेटिनोपैथी टेस्ट की शुरुआत की गई है जिसका जिला अस्पताल में भोपाल से आई टीम ने नवजात शिशुओं को आरओपी ( रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्यूरिटी) बीमारी को दूर करने केम्प का आयोजन किया जिसमे जिला अस्पताल के सभी नवजात शिशुओं की जांच की गई साथ ही कुछ बच्चों की आंखों को अंधा होने से भी बचाया गया।Body:राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र होशंगाबाद के एसएनसीयू में प्रदेश का प्रथम आर.ओ.पी क्लिनिक संचालित है जिसमें आरोपी के संभावित मरीजों का परीक्षण एवं उपचार हेतु भोपाल से डॉक्टर चाहा वीर बिंद्रा आते हैं तथा एसएनसीयू में भर्ती ऐसे बच्चे जिनका आर.ओ.पी टेस्ट होना है आर.ओ.पी क्लीनिक में एक नवाचार हुआ है जो कि प्रदेश में शासकीय चिकित्सालय में अपने आप में पहला नवाचार हैConclusion:डॉ बिन्द्रा ने बताया अगर कोई बच्चा 32 सप्ताह से पहले जन्म लेता है और उसका वजन दो किलो से कम रहता है उसमें यह बीमारी होने की अाशंका रहती है। इससे आंखों की रोशनी जाने का डर रहता है। नवजात के चार सप्ताह के होने पर उसकी आंखों की अवश्य जांच कराएं। अगर बीमारी की पहचान हो जाती है, तो तुरंत इलाज शुरू करा दें। इससे बच्चों की आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है। इसमें गायनी, शिशु रोग विभाग नेत्र विभाग की अहम भूमिका है। समय पर जांच कर ली जाय तो तो लेजर द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है।अगर तुरंत इलाज शुरू हो तो बच्चों के अंधापन को रोका जा सकता और वजन भी कम है तथा बच्चा बीमार है तो ऐसे में एक माह के बाद उसकी आंखों की जांच अवश्य कराएं। पहले इस तरह की बीमारी से 60 प्रतिशत बच्चे अंधापन के शिकार हो जाते थे। इसे अब इलाज से रोका जा सकता है।
बाइट विजेन्द्र सिंह प्रबंधक समर्पण
बाईट , डॉ चाहा वीर बिन्द्रा , आंख स्पेशलिस्ट
बाइट विजेन्द्र सिंह प्रबंधक समर्पण
बाईट , डॉ चाहा वीर बिन्द्रा , आंख स्पेशलिस्ट