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सोयाबीन को सोना बनाने वाले प्लांट में पसरा सन्नाटा, वीरान हो गया एशिया का नंबर वन प्लांट

कभी आवाम को खुशियों की सौगात देने वाला सोयाबीन संयंत्र आज खुद के दुख के नीचे दबा जा रहा है, दीवारों में पड़ती दरारें, झाड़ियों में गुम होते इस प्लांट में अब सन्नाटा पसरा है क्योंकि सालों से इस प्लांट पर ताला लगा है, जिसके चलते इस क्षेत्र के लोगों के पेट पर भी ताला लग गया है. सत्ता परिवर्तन के बाद लोगों को उम्मीद की एक किरण दिखी थी, लेकिन इस किरण की रोशनी भी फीकी होती जा रही है.

सोयाबीन प्लांट
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Published : Jul 23, 2019, 7:47 PM IST

होशंगाबाद। सोयाबीन को सोना बनाने वाला प्लांट आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है, कभी इसी प्लांट की कामयाबी पर सरकार भी इतराती थी, तब इस प्लांट को एशिया का सबसे बड़ा प्लांट होने का तमगा मिला था, जिससे हजारों लोगों की जीविका चलती थी. पर सियासी उदासीनता इस प्लांट पर ग्रहण की तरह छायी और देखते ही देखते इस प्लांट में सन्नाटा छाने लगा. आलम ये है कि करोड़ों की मशीनें धूल फांक रही हैं. लोग प्लांट के पास जाने से घबराते हैं क्योंकि चारो ओर दरकती दीवारें और झाड़ियां दिन में भी लोगों को डराती हैं.

बंद पड़ा सोयाबीन प्लांट

सिवनी मालवा तहसील में 45 एकड़ क्षेत्र में फैला ये प्लांट तब 14 करोड़ की लागत से तैयार हुआ था, जिससे निकलने वाली डीओसी का निर्यात विदेशों तक होता था. इस प्लांट का भूमि पूजन एक फरवरी 1982 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने किया था, फिर तीन अप्रैल 1984 को उन्होंने ही इस प्लांट का उद्घाटन किया था, तब इस प्लांट के जरिए क्षेत्र में खुशहाली ने दस्तक दी थी, पर ज्यादा दिनों तक ये खुशहाली यहां नहीं टिक सकी और लापरवाही के चलते ये प्लांट घाटे में डूबता गया और एक दिन इस प्लांट पर हमेशा के लिए ताला लग गया. सरकार बदलने के बाद लोगों में उम्मीद जगी कि शायद इस प्लांट की रौनक फिर लौट आये. पर अब तक ऐसा नहीं हो सका.

हजारों लोगों को रोजगार देने वाला प्लांट अब गोदाम बनकर रह गया है, जिसमें गेहूं का भंडारण किया जा रहा है. जहां सुरक्षा के लिए महज दो कर्मचारी तैनात हैं. पूरा प्लांट झाड़ियों में छिपता जा रहा है और इन्हीं झाड़ियों में स्थानीय लोगों की खुशियां भी खोती जा रही हैं. युवा रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं और व्यापारी मंडी पर ही आश्रित हो गये हैं, जबकि किसान सोयाबीन की खेती से किनारा करने लगा है.

होशंगाबाद। सोयाबीन को सोना बनाने वाला प्लांट आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है, कभी इसी प्लांट की कामयाबी पर सरकार भी इतराती थी, तब इस प्लांट को एशिया का सबसे बड़ा प्लांट होने का तमगा मिला था, जिससे हजारों लोगों की जीविका चलती थी. पर सियासी उदासीनता इस प्लांट पर ग्रहण की तरह छायी और देखते ही देखते इस प्लांट में सन्नाटा छाने लगा. आलम ये है कि करोड़ों की मशीनें धूल फांक रही हैं. लोग प्लांट के पास जाने से घबराते हैं क्योंकि चारो ओर दरकती दीवारें और झाड़ियां दिन में भी लोगों को डराती हैं.

बंद पड़ा सोयाबीन प्लांट

सिवनी मालवा तहसील में 45 एकड़ क्षेत्र में फैला ये प्लांट तब 14 करोड़ की लागत से तैयार हुआ था, जिससे निकलने वाली डीओसी का निर्यात विदेशों तक होता था. इस प्लांट का भूमि पूजन एक फरवरी 1982 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने किया था, फिर तीन अप्रैल 1984 को उन्होंने ही इस प्लांट का उद्घाटन किया था, तब इस प्लांट के जरिए क्षेत्र में खुशहाली ने दस्तक दी थी, पर ज्यादा दिनों तक ये खुशहाली यहां नहीं टिक सकी और लापरवाही के चलते ये प्लांट घाटे में डूबता गया और एक दिन इस प्लांट पर हमेशा के लिए ताला लग गया. सरकार बदलने के बाद लोगों में उम्मीद जगी कि शायद इस प्लांट की रौनक फिर लौट आये. पर अब तक ऐसा नहीं हो सका.

हजारों लोगों को रोजगार देने वाला प्लांट अब गोदाम बनकर रह गया है, जिसमें गेहूं का भंडारण किया जा रहा है. जहां सुरक्षा के लिए महज दो कर्मचारी तैनात हैं. पूरा प्लांट झाड़ियों में छिपता जा रहा है और इन्हीं झाड़ियों में स्थानीय लोगों की खुशियां भी खोती जा रही हैं. युवा रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं और व्यापारी मंडी पर ही आश्रित हो गये हैं, जबकि किसान सोयाबीन की खेती से किनारा करने लगा है.

Intro:आपको यह जानकार आश्चर्य होगा लेकिन ये सच है की मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले की सिवनी मालवा तहसील में वीरान और खंडहर में तब्दील हो चुका सोयाबीन प्लांट को कभी एशिया का सबसे बड़ा प्लांट होने का तमगा मिला था। 45 एकड क्षेत्र में फैला ये सोयाप्लांट तब 14 करोड़ की लागत से निर्मित हुआ था। कर्मचारी बताते हैं कि चालू रहने तक इस प्लांट से निकलने वाली डीओसी का निर्यात विदेशों तक होता था। डीओसी के निर्यात से विदेशी करंसी के रूप में करोड़ों रूपये की आय तिलहन संघ को होती थी।Body:इस सोयाबीन प्लांट का भूमिपूजन 1 फरवरी 1982 को मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह एवं गृह राज्य मंत्री हजारीलाल रघुवंशी की अध्यक्षता में किया गया था वही 3 अप्रैल 1984 को सोयाबीन प्लांट का उद्घाटन मुख्मंत्री अर्जुन सिंह के द्वारा किया गया। किसी समय यह प्लांट हजारों लोगो को रोजगार देता था। यहां काम करने वाले कर्मचारियों के परिवारों में खुशहाली हुआ करती थी, लेकिन नेताओं, अधिकारियों की भर्राशाही और भ्रष्टाचार की तिलहन संघ के इस प्लांट पर ऐसी काली छाया पड़ी कि फायदे के बावजूद ये सोयाबीन प्लांट कई सालों तक घाटे में चलने के चलते बंद हो गया। वही अब स्थिति यह है कि प्लांट में लगी महंगी मशीनें जंग खा रही है। वही प्लांट में कभी सुरक्षा कर्मियों का जमावडा लगा रहता था और 500 से अधिक कर्मचारी काम करते थे। लेकिन वर्तमान में दो कर्मचारी प्लांट की सुरक्षा के लिये तैनात हैं। और पूरा प्लांट किसी वीरान खंडहर से कम नजर नहीं आता अपनी बेबसी के आंसू रो रहे प्लांट की हालत यह है कि सभी जगह घनी झाड़ियां उग आई हैं और महंगी मशीने जंग खाकर कबाड़ में तब्दील हो रही हैं। पर्याप्त सुरक्षा नही होने से परिसर असुरक्षित है।Conclusion:सोया प्लांट बंद होने के बाद परिसर के एक हिस्से को गोदामों में तब्दील कर दिया गया है। इन गोदामों में पिछले कई सालों से गेहूं का भंडारण किया जा रहा है। जिससे तिलहन संघ को लाखों की आमदनी होती है और पदस्थ कर्मचारियों को वेतन उपलब्ध हो जाता है वही सोया प्लांट में पदस्थ कई कर्मचारियों को पर्याप्त आय नहीं होने के चलते अन्य विभागों में पदस्थ किया गया है। आपको बता दे की जहाँ सोया प्लांट संचालित होता था तब शहर के युवा, व्यापारी, किसान सभी खुश थे लेकिन अब प्लांट के बंद होने के चलते युवाओ को रोजगार के लिए अन्य शहरो की और रुख करना पड़ रहा है व्यापारी केवल मंडी पर आश्रित है वही किसान सोयाबीन की फसल का सही दाम नहीं मिलने के चलते अब धान मक्का सहित अन्य फसलों की पैदावार करने लगा है।


बाइट-1 दिनेश नामदेव सोया प्लांट प्रभारी
बाइट-2 आशुतोष शर्मा व्यापारी
बाइट-3 ब्रजमोहन पटेल किसान नेता
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