होशंगाबाद। गेहूं और धान की पारंपरिक खेती के लिए कृषि प्रधान जिले के नाम से मशहूर होशंगाबाद में अब किसान कुछ अलग कर आगे बढ़ रहे हैं. परंपरागत खेती के साथ-साथ आधुनिक खेती की ओर बढ़ते हुए किसान प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी नाम कमा रहे हैं. ऐसे ही होशंगाबाद के एक युवा किसान हैं, जिन्होंने चंदन की खेती कर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा चंदन फार्म (खेत) का खिताब अपने नाम किया है.
जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर बाबई ब्लॉक के बंसी खेरी में किसान गांव के किसान निलेश चौहान ने अपने तीन एकड़ के खेत में 675 चंदन के पौधों की खेती की है. उनका दावा है कि करीब 12 साल बाद पौधों से बनकर तैयार हुई चंदन को बेचकर वे 20 करोड़ रुपए कमाएंगे.
किसान नीलेश ने 10वीं तक पढ़ाई की है. उन्हें कुछ अलग करने की चाह थी. ऐसे में उन्होंने चंदन की खेती करने का फैसला लिया. इसके लिए वे महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु जैसे राज्यों में घूमने गए, जहां चंदन की खेती के गुण सीखें.
नीलेश ने बताया कि उनका दो साल का क्रिकेट में बहुत रुचि रखता है. उनका सपना है कि भविष्य में उनका बेटा एक मशहूर क्रिकेटर बने. लेकिन परंपरागत खेती में बेटे के सपने को पूरा नहीं किया जा सकता है, लिहाजा बेटे के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने परंपरागत खेती को छोड़ आधुनिक और नई पद्धति को अपनाया है ताकि आने वाले सालों में खेती से अर्जित होने वाली कमाई से उनके बेटे को क्रिकेटर बनाने का सपना पूरा किया जा सके.
नहीं करते रासयनिक का उपयोग
किसान नीलेश ने बताया कि बचपन में ही उनके पिता गुजर गए थे. जिसके बाद वे अपने नाना-नानी के घर पले-बढ़े. नीलेश जिले में एकमात्र ऐसे किसान हैं, जो चंदन की खेती के लिए पहचाने जाते हैं. नीलेश बताते हैं कि चंदन के पौधे लगाने की विधि आम पौधों की तरह होती है.
इन पौधों के लिए रासायनिक खाद का उपयोग न करते हुए गोबर की खाद का ही उपयोग किया जाता है. उन्होंने बताया कि दो साल पहले तीन एकड़ में 675 पौधे लगाने में करीब पांच लाख खर्च हुए थे. वहीं 14 साल की फसल में पांच लाख और खर्च होंगे. 14 साल बाद यह पौधे तकरीबन बाजार में 20 करोड़ रुपए की आय देंगे.
नीलेश ने बताया कि परंपरागत खेती से सिर्फ परिवार का भरण-पोषण हो सकता है. वहीं नीलेश की खेती को देखने समझने के लिए दूर-दूर से शोधार्थी उनके खेत पहुंच रहे हैं. वहीं नीलेश भी उनके पास आने वाले लोगों को खेती के बारे में बड़ी सहजता से समझा रहे हैं.
पेड़ों के बीच में करते हैं परंपरागत खेती
नीलेश चंदन की खेती के साथ परंपरागत खेती भी करते हैं. चंदन के पेड़ों के बीच पांच से छह फीट की जगह छोड़ी गई है. यहां पर वे परंपरागत खेती की तौर पर रबी और खरीफ की फसल लगाते हैं, जो की पूर्णता जैविक होती है. इससे नीलेश का घर आसानी से चल जाता है और घर के सभी तरह की आर्थिक खर्चे भी निकल आते हैं. इसके साथ ही चंदन के पेड़ों को भी नाइट्रोजन और सल्फर की पूर्ति हो जाती है.
नीलेश ने बताया कि उन्होंने अपनी पुश्तैनी चंदन की खेती के लिए एक एकड़ जमीन को बेचकर पौधे लगाए हैं. साथ ही सुरक्षा के लिए भी तमाम उपाय किए हैं, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक फेंसिंग, डॉग स्कॉट सहित कई सुरक्षा के कदम भी उठाए गए हैं, जिससे कि इन पौधों को सुरक्षित बड़ा किया जा सके.
किसान नीलेश चौहान बताते हैं कि चंदन की मांग पूरे भारत में है. चंदन एक ऐसा पेड़ है, जिसकी लकड़ी भारतीय संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी हुई है. वर्तमान समय में भारत में 5 से 6 हजार टन हर साल चंदन की लकड़ी की डिमांड है, लेकिन उपलब्धता महज 250 टन तक ही है. इस कारण चंदन की कीमत 12 हजार से लेकर 26 हजार प्रति किलो ही है. वहीं चंदन की कीमत हर ढाई साल में दोगनी हो जाती है. यदि चंदन के एक पौधे की बात की जाए तो एक पौधे में 20 से 30 किलो लकड़ी निकलती है.