ETV Bharat / state

अन्नदाताओं को मिला उम्मीद का सहारा, रामतिल से बनेंगे आत्मनिर्भर !

प्राकृतिक परिवर्तनों से परेशान किसान अब आत्मनिर्भर बन गए हैं, इसलिए आधुनिक खेती से अपना रुख मोड़ते हुए एक बार फिर पारंपरिक खेती की ओर रूझान बढ़ा दिया है. किसानों ने धान, सोयाबीन और मक्का से हटकर अब रामतिल की खेती करने का फैसला लिया है.

ramtil-crop
रामतिल से बनेंगे आत्मनिर्भर !
author img

By

Published : Jun 27, 2020, 12:20 PM IST

होशंगाबाद। दूसरों के लिए अन्न उगाने वाला अन्नदाता सालभर परेशान रहता है. कभी बारिश तो कभी ओलावृष्टि, कभी ठंड तो कभी भीषण गर्मी. सभी हालातों में अपनी फसल को बचाने क्या-कया जतन नहीं करता है किसान, उसके बावजूद प्राकृतिक आपदाओं की मार से किसान की माली हालत खराब रहती हैं. वहीं बची-कुची कसर इस साल कोरोना महामारी से बचाव के कारण किए गए लॉकडाउन ने भी पूरी कर दी. प्राकृतिक परिवर्तनों से परेशान किसान अब आत्मनिर्भर बन गए हैं और इसलिए अब आधुनिक खेती से अपना रूख मोड़ते हुए एक बार फिर पारंपरिक खेती की ओर रूझान बढ़ा दिया है.

रामतिल से बनेंगे आत्मनिर्भर !

हर मौसम के लिए फिट

कृषि प्रधान जिला होशंगाबाद में पिछले कुछ सालों से लगातार जलवायु में परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जिससे मक्का, सोयाबीन समेत कई फसलों में किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है. ऐसे में अब किसान रामतिल की खेती करने में रुचि दिखाने लगे हैं. रामतिल बंजर पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली पारंपरिक आदिवासी फसल है, जो सरसों की तरह दिखती है. इसके उत्पादन के लिए किसानों को मौसम के बदलने का डर नहीं सताता क्योंकि इस फसल को हर मौसम में उगाया जा सकता है. यही वजह है कि किसान अब रामतिल में रूझान बढ़ाते हुए पारंपरिक खेती की ओर मुड़ रहा है.

लाखों रुपयों का हुआ लाभ

जानकारी के मुताबिक इस साल जिले में कम लागत की फसल रामतिल को दो हजार हेक्टेयर में बोया जाना है. इस फसल को वैसे को बंजर जमीन और पहाड़ी इलाकों में लगाया जाता है, लेकिन इसके मुनाफे को देखते हुए अब इसे उपजाऊ भूमि में भी लगाया जा रहा है. पिछले साल बनखेड़ी ब्लॉक के माहेश्वरी में किसानों ने 250 एकड़ में रामतिल की फसल लगाई थी, जिसके उत्पादन से लाखों रुपए का लाभ हुआ था. साथ ही कई अनुसंथान सेंटर ने हाथों हाथ बीज खरीदा है.


औषधीय गुणों से भरपूर

आदिवासियों की खेती रामतिल औषधीय गुणों से भी भरपूर है. इसमें ओमेगा-3 जैसे कई लाभदायक विटामिन हैं. ये हार्ट के पेशेंट के लिए कापी लाभदायक मानी जाती है. गुणकारी राम तिल की विदेश में भारी मांग है. जिसे भारत निर्यात भी करता है. भारत में तीन से चार लाख हैक्टेयर में सिर्फ मध्य प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में इसकी खेती की जाती है. वहीं मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, मंडला, डिंडौरी में इसकी खेती की जाती है.


रामतिल से ग्रामीणों की मवेशियों की समस्या का निदान

ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को सबसे ज्यादा आवारा पशु सहित जंगली जानवर की समस्या का सामना करना पड़ता है. इसके चलते उन्हें फसल का 30 प्रतिशत से भी ज्यादा नुकसान होता है. साथ ही देखभाल में समय के साथ आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. ऐसे में रामतिल एक बेहतर विकल्प के तौर पर सामने आया है, जिसे जंगली या पालतू मवेशी खाते भी नही हैं.

जिले में बाजार का अभाव ,कृषि विभाग लगा खरीदी केन्द्र शुरू कराने की कोशिश में

रामतिल फसल की खरीद के लिए खरीददार और बाजार का मिलना एक बड़ी समस्या है. फिलहाल जबलपुर और नीमच मंडी में ही राम तिल की खरीदी की जाती है. ऐसे में किसानों को जिले से बाहर फसल बेचने के लिए जाना पड़ता है. वही सरकार ने भी सिर्फ 6 हजार 750 रुपए का सरकारी मूल्य तय किया हुआ है, जिसके लिए कृषि विभाग जिले में समर्थन मूल्य केंद्र शुरू कराने की कोशिश में लगा हुआ है.

खरीदी केंद्र शुरू करने के लिए करीब 500 हेक्टेयर में फसल लगाना जरूरी होता है, ऐसे में कृषि विभाग लगातार किसानों को जागरूक कर रहा है. फिलहाल एक हजार क्विंटल बीज किसानों को बांटा जा चुका है.

आत्मनिर्भर होगा किसान
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस कदम से किसान आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मजबूत होगा. इसके साथ ही उसे जहरीले रासायनिक उर्वरकों में लगने वाली फिजूल खर्ची से भी राहत मिलेगी. रामतिल की खेती के साथ ही किसान मधुमक्खी पालन कर अपनी बेहतर जीवन यापन कर सकते हैं. अब जरूरत है तो इस ओर सरकार के ध्यान की.

होशंगाबाद। दूसरों के लिए अन्न उगाने वाला अन्नदाता सालभर परेशान रहता है. कभी बारिश तो कभी ओलावृष्टि, कभी ठंड तो कभी भीषण गर्मी. सभी हालातों में अपनी फसल को बचाने क्या-कया जतन नहीं करता है किसान, उसके बावजूद प्राकृतिक आपदाओं की मार से किसान की माली हालत खराब रहती हैं. वहीं बची-कुची कसर इस साल कोरोना महामारी से बचाव के कारण किए गए लॉकडाउन ने भी पूरी कर दी. प्राकृतिक परिवर्तनों से परेशान किसान अब आत्मनिर्भर बन गए हैं और इसलिए अब आधुनिक खेती से अपना रूख मोड़ते हुए एक बार फिर पारंपरिक खेती की ओर रूझान बढ़ा दिया है.

रामतिल से बनेंगे आत्मनिर्भर !

हर मौसम के लिए फिट

कृषि प्रधान जिला होशंगाबाद में पिछले कुछ सालों से लगातार जलवायु में परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जिससे मक्का, सोयाबीन समेत कई फसलों में किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है. ऐसे में अब किसान रामतिल की खेती करने में रुचि दिखाने लगे हैं. रामतिल बंजर पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली पारंपरिक आदिवासी फसल है, जो सरसों की तरह दिखती है. इसके उत्पादन के लिए किसानों को मौसम के बदलने का डर नहीं सताता क्योंकि इस फसल को हर मौसम में उगाया जा सकता है. यही वजह है कि किसान अब रामतिल में रूझान बढ़ाते हुए पारंपरिक खेती की ओर मुड़ रहा है.

लाखों रुपयों का हुआ लाभ

जानकारी के मुताबिक इस साल जिले में कम लागत की फसल रामतिल को दो हजार हेक्टेयर में बोया जाना है. इस फसल को वैसे को बंजर जमीन और पहाड़ी इलाकों में लगाया जाता है, लेकिन इसके मुनाफे को देखते हुए अब इसे उपजाऊ भूमि में भी लगाया जा रहा है. पिछले साल बनखेड़ी ब्लॉक के माहेश्वरी में किसानों ने 250 एकड़ में रामतिल की फसल लगाई थी, जिसके उत्पादन से लाखों रुपए का लाभ हुआ था. साथ ही कई अनुसंथान सेंटर ने हाथों हाथ बीज खरीदा है.


औषधीय गुणों से भरपूर

आदिवासियों की खेती रामतिल औषधीय गुणों से भी भरपूर है. इसमें ओमेगा-3 जैसे कई लाभदायक विटामिन हैं. ये हार्ट के पेशेंट के लिए कापी लाभदायक मानी जाती है. गुणकारी राम तिल की विदेश में भारी मांग है. जिसे भारत निर्यात भी करता है. भारत में तीन से चार लाख हैक्टेयर में सिर्फ मध्य प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में इसकी खेती की जाती है. वहीं मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, मंडला, डिंडौरी में इसकी खेती की जाती है.


रामतिल से ग्रामीणों की मवेशियों की समस्या का निदान

ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को सबसे ज्यादा आवारा पशु सहित जंगली जानवर की समस्या का सामना करना पड़ता है. इसके चलते उन्हें फसल का 30 प्रतिशत से भी ज्यादा नुकसान होता है. साथ ही देखभाल में समय के साथ आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. ऐसे में रामतिल एक बेहतर विकल्प के तौर पर सामने आया है, जिसे जंगली या पालतू मवेशी खाते भी नही हैं.

जिले में बाजार का अभाव ,कृषि विभाग लगा खरीदी केन्द्र शुरू कराने की कोशिश में

रामतिल फसल की खरीद के लिए खरीददार और बाजार का मिलना एक बड़ी समस्या है. फिलहाल जबलपुर और नीमच मंडी में ही राम तिल की खरीदी की जाती है. ऐसे में किसानों को जिले से बाहर फसल बेचने के लिए जाना पड़ता है. वही सरकार ने भी सिर्फ 6 हजार 750 रुपए का सरकारी मूल्य तय किया हुआ है, जिसके लिए कृषि विभाग जिले में समर्थन मूल्य केंद्र शुरू कराने की कोशिश में लगा हुआ है.

खरीदी केंद्र शुरू करने के लिए करीब 500 हेक्टेयर में फसल लगाना जरूरी होता है, ऐसे में कृषि विभाग लगातार किसानों को जागरूक कर रहा है. फिलहाल एक हजार क्विंटल बीज किसानों को बांटा जा चुका है.

आत्मनिर्भर होगा किसान
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस कदम से किसान आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मजबूत होगा. इसके साथ ही उसे जहरीले रासायनिक उर्वरकों में लगने वाली फिजूल खर्ची से भी राहत मिलेगी. रामतिल की खेती के साथ ही किसान मधुमक्खी पालन कर अपनी बेहतर जीवन यापन कर सकते हैं. अब जरूरत है तो इस ओर सरकार के ध्यान की.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.