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111 सालों से नर्मदापुरम में चली आ रही गुरुकुल परंपरा, यहां के शिष्य विदेशों में कर रहे भारतीय संस्कृति का प्रचार

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Published : Apr 5, 2023, 4:39 PM IST

मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम में 111 साल से गुरुकुल की परंपरा चली आ रही है. इस गुरुकुल में बिना जाति बंधन के शिक्षा दी जा रही है. इस गुरुकुल के शिष्य दूसरे देशों में जाकर हमारी संस्कृति और सभ्यता का प्रचार करते हैं.

aarsh gurukul
आर्ष गुरुकुल
नर्मदापुरम में गुरुकुल परंपरा

नर्मदापुरम। करीब सौ वर्ष से अधिक पुराने नर्मदापुरम के आर्ष गुरुकुल में आज भी बिना जाति बंधन के भारतीय संस्कृति, उपनिषद, संस्कृत, एवं वेदों की शिक्षा दी जा रही है. इतना ही नहीं इस प्राचीन गुरुकुल के शिष्य आज विदेशों में जाकर भारतीय संस्कृति, वेदों,उपनिषदों की शिक्षा बाहरी देशों में देने जा रहे हैं. ताकि संस्कृति को बचाया जा सके. इस प्राचीन गुरुकुल में आज भी गुरु पुरानी तकनीक से ही शिष्यों को शिक्षा ग्रहण करा रहे हैं. सुबह 5 बजे से दिनचर्या, की शुरुआत योग, हवन, यज्ञ, भोजन जैसी संपूर्ण शिक्षा से इस गुरुकुल में हो रही है. भारतीय संस्कृति, उपनिषदों की शिक्षा धर्म पर्यावरण की शिक्षा पाकर यह शिष्य बाहरी देशों में जाकर प्रचार प्रसार करते हैं.

111 साल से चल रही गुरुकुल परंपरा: नर्मदापुरम के आर्ष गुरुकुल के आचार्य आयुष आर्य बताते हैं की सन 1912 में आर्ष गुरुकुल की स्थापना हुई. इसे 111 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं. अभी तक आर्ष गुरुकुल पूरे देश में शिक्षा के क्षेत्र में भारत की संस्कृति को संजोए रखा है. प्राचीन ऋषि मुनि जो वेद संस्कृत द्वारा संस्कृति का पालन किया जाता था, वैसे ही यह आर्ष गुरुकुल कर रहा है. पूरे भारतवर्ष के बच्चे यहां पर शिक्षा ग्रहण करते हैं. यहां किसी भी जाति का बंधन नहीं है. प्रत्येक जाति के बच्चों को यहां शिक्षा दी जाती है. गुरुकुल में संस्कृति और उपनिषदों की शिक्षा दी जाती है, गौ शिक्षा, यज्ञ शिक्षा की जो हमारी शिक्षाएं हैं.आचार्य आयुष ने बताया कि वर्तमान में भारत में हमारे आर्य संस्कृति को मानने वाले कई लोग हैं. आर्ष गुरुकुल नर्मदापुरम के शिष्य 24 देशों में जाकर प्रचार प्रसार और भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं. उस समय पंडित नंदलाल मुरलीधर जी ने इसकी स्थापना की थी. उसके बाद कई अन्य आचार्य यहां पर आए. वर्तमान में हमारे यहां निदेशक के रूप में आचार्य रसीपद हैं. वहीं आचार्य सिंधु सत आर्य गुरुकुल के प्रधानाचार्य सुशोभित हैं. उन्हीं के संरक्षण में यह गुरुकुल पूरी गतिविधियां एवं पूरे प्रचार का कार्य होता है.

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संसार के सभी लोग सुखी और स्वस्थ्य रहें यह हमारा लक्ष्य: आचार्य आयुष आर्य ने बताया समय-समय पर गोष्ठियां करके अनेक शिविर लगाकर बच्चों का चरित्र निर्माण किया जाता है. जो परिवार ग्रहस्थ जीवन में जी रहे हैं. उन्हें किस प्रकार से परिवार माता-पिता के प्रति, पति पत्नी के प्रति, भाई बंधु आपस में किस प्रकार से उनकी शिक्षा-दीक्षा होनी चाहिए, ऐसे शिविर लगा कर समय-समय पर आचार्य उन्हें संदेश देते हैं. हर दिन प्रातः एवं शाम योग से लेकर यज्ञ उपासना, ईश्वर प्रार्थना, अपने जीवन का निरीक्षण किस प्रकार करना है, किस प्रकार से अपने जीवन को आगे ले जाने का कार्य करें यह बताया जाता है. हम आयुर्वेद, वेद और गीता के उपदेशों को संदेशों को मानने वाले हैं, हमारा गुरुकुल इन्हीं क्षेत्रों में कार्य करता है. हम भारतीय लोग पूरे संसार को अपना परिवार मानते हैं. हम चाहते हैं कि इस संसार सभी लोग सुख समृद्धि और शांति पूर्वक अपना जीवन जिएं. ईश्वर की उपासना करें. यही हमारा अंतिम लक्ष्य और हम लोगों को यही सिखाने का कार्य करते हैं. हमारे पूरे गुरुकुल में अनेक समाज से पढ़ने वाले बच्चे आते हैं.

नर्मदापुरम में गुरुकुल परंपरा

नर्मदापुरम। करीब सौ वर्ष से अधिक पुराने नर्मदापुरम के आर्ष गुरुकुल में आज भी बिना जाति बंधन के भारतीय संस्कृति, उपनिषद, संस्कृत, एवं वेदों की शिक्षा दी जा रही है. इतना ही नहीं इस प्राचीन गुरुकुल के शिष्य आज विदेशों में जाकर भारतीय संस्कृति, वेदों,उपनिषदों की शिक्षा बाहरी देशों में देने जा रहे हैं. ताकि संस्कृति को बचाया जा सके. इस प्राचीन गुरुकुल में आज भी गुरु पुरानी तकनीक से ही शिष्यों को शिक्षा ग्रहण करा रहे हैं. सुबह 5 बजे से दिनचर्या, की शुरुआत योग, हवन, यज्ञ, भोजन जैसी संपूर्ण शिक्षा से इस गुरुकुल में हो रही है. भारतीय संस्कृति, उपनिषदों की शिक्षा धर्म पर्यावरण की शिक्षा पाकर यह शिष्य बाहरी देशों में जाकर प्रचार प्रसार करते हैं.

111 साल से चल रही गुरुकुल परंपरा: नर्मदापुरम के आर्ष गुरुकुल के आचार्य आयुष आर्य बताते हैं की सन 1912 में आर्ष गुरुकुल की स्थापना हुई. इसे 111 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं. अभी तक आर्ष गुरुकुल पूरे देश में शिक्षा के क्षेत्र में भारत की संस्कृति को संजोए रखा है. प्राचीन ऋषि मुनि जो वेद संस्कृत द्वारा संस्कृति का पालन किया जाता था, वैसे ही यह आर्ष गुरुकुल कर रहा है. पूरे भारतवर्ष के बच्चे यहां पर शिक्षा ग्रहण करते हैं. यहां किसी भी जाति का बंधन नहीं है. प्रत्येक जाति के बच्चों को यहां शिक्षा दी जाती है. गुरुकुल में संस्कृति और उपनिषदों की शिक्षा दी जाती है, गौ शिक्षा, यज्ञ शिक्षा की जो हमारी शिक्षाएं हैं.आचार्य आयुष ने बताया कि वर्तमान में भारत में हमारे आर्य संस्कृति को मानने वाले कई लोग हैं. आर्ष गुरुकुल नर्मदापुरम के शिष्य 24 देशों में जाकर प्रचार प्रसार और भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं. उस समय पंडित नंदलाल मुरलीधर जी ने इसकी स्थापना की थी. उसके बाद कई अन्य आचार्य यहां पर आए. वर्तमान में हमारे यहां निदेशक के रूप में आचार्य रसीपद हैं. वहीं आचार्य सिंधु सत आर्य गुरुकुल के प्रधानाचार्य सुशोभित हैं. उन्हीं के संरक्षण में यह गुरुकुल पूरी गतिविधियां एवं पूरे प्रचार का कार्य होता है.

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संसार के सभी लोग सुखी और स्वस्थ्य रहें यह हमारा लक्ष्य: आचार्य आयुष आर्य ने बताया समय-समय पर गोष्ठियां करके अनेक शिविर लगाकर बच्चों का चरित्र निर्माण किया जाता है. जो परिवार ग्रहस्थ जीवन में जी रहे हैं. उन्हें किस प्रकार से परिवार माता-पिता के प्रति, पति पत्नी के प्रति, भाई बंधु आपस में किस प्रकार से उनकी शिक्षा-दीक्षा होनी चाहिए, ऐसे शिविर लगा कर समय-समय पर आचार्य उन्हें संदेश देते हैं. हर दिन प्रातः एवं शाम योग से लेकर यज्ञ उपासना, ईश्वर प्रार्थना, अपने जीवन का निरीक्षण किस प्रकार करना है, किस प्रकार से अपने जीवन को आगे ले जाने का कार्य करें यह बताया जाता है. हम आयुर्वेद, वेद और गीता के उपदेशों को संदेशों को मानने वाले हैं, हमारा गुरुकुल इन्हीं क्षेत्रों में कार्य करता है. हम भारतीय लोग पूरे संसार को अपना परिवार मानते हैं. हम चाहते हैं कि इस संसार सभी लोग सुख समृद्धि और शांति पूर्वक अपना जीवन जिएं. ईश्वर की उपासना करें. यही हमारा अंतिम लक्ष्य और हम लोगों को यही सिखाने का कार्य करते हैं. हमारे पूरे गुरुकुल में अनेक समाज से पढ़ने वाले बच्चे आते हैं.

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